अयोध्या राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद का समग्र इतिहास
बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी का विशेष लेख
अयोध्या का राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद सदियों पुराना है, जो पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से समाप्त हुआ था. अयोध्या स्थित विवादित बाबरी मस्जिद छह दिसम्बर 1992 को गिरायी गयी थी. क़ानूनी दाँवपेंच और जटिल प्रक्रिया के चलते यह मामला अट्ठाईस सालों से ट्रायल कोर्ट में ही लम्बित है.
प्रधानमंत्री मोदी नरेंद्र मोदी ने पाँच अगस्त को अयोध्या में एक भव्य समारोह में छह दिसम्बर 1992 को ध्वस्त हुई बाबरी मस्जिद के स्थान राम मंदिर का भूमि पूजन और शिलान्यास किया.
उन्होंने जय श्रीराम के बजाय सियापति राम चंद्र की जय के नारे लगाए.
इस अवसर पर आर एस एस के सर संघ चालक मोहन भागवत और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उपस्थित थे.
बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी पिछले चालीस सालों से अयोध्या पर रिपोर्ट करते रहे हैं. उन्होंने इस रिपोर्ट में राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद आंदोलन के इतिहास का सिलसिलेवार इतिहास प्रस्तुत किया है.
भगवान राम जब लंका विजय कर पुष्पक विमान से अयोध्या के निकट आए तो उन्होंने हनुमान जी और अपने अन्य सेनापतियों को जो कहा होगा उसकी कल्पना उनके सबसे बड़े भक्त संत तुलसीदास ने इन शब्दों में की :
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा।।
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी।।
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी।।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अयोध्या को उसी रूप में सजाया है. बिलकुल जैसे उस लंका से भगवान राम की वापसी के समय दीपावली मनायी गयी होगी.
अयोध्या में यह अवसर राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के बड़े लम्बे संघर्ष और विवाद के बाद आया है. सरयू तट पर बसी छोटी सी तीर्थ नगरी अयोध्या ने आज़ादी के बाद पिछले 75 वर्षों में लगातार उतार- चढ़ाव और उथल-पुथल देखा है, विशेषकर 1984 के बाद . इस दौरान वह भारत की राजनीति का केन्द्र बिन्दु बनी रही और दिल्ली तथा लखनऊ में सत्ता परिवर्तन का कारण . उसने कितने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनाये और बिगाड़े हैं . भारत की राजनीति और इतिहास को बदलते – बदलते अयोध्या का रूप भी बदलता रहा है .
पिछले चालीस सालों के दौरान सरयू के घाट , पुल, बाग- बगीचे और संकरी गलियाँ रण क्षेत्र बनीं . देश भर में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों ने जानें गँवायी, हज़ारों घर बर्बाद हुए. विवादित बाबरी मस्जिद की इमारत का निशान मिट गया, हालाँकि इतिहास के पन्नों में उसका ज़िक्र होता रहेगा. इस जद्दोजहद की चपेट में अयोध्या के अनेक मंदिर भी ध्वस्त हो गये. खबरें हैं कि राम मंदिर बनते- बनते अभी कई और ध्वस्त होंगे .
अयोध्या में इस सारी उथल पुथल का केंद्र बिन्दु था राम मंदिर बनाम बाबरी मसजिद विवाद , जिसे सत्तर साल तक चली लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद देश की सर्वोच्च अदालत ने संविधान में मिली विशेष शक्तियाँ इस्तेमाल करके सुलझाया . अदालत से बाहर सुलझाने के प्रयास तो बहुत हुए, पर राजनीति ने इस विवाद को इतना उलझाया था था कि सुप्रीम कोर्ट का अलावा कोई सुलझा नही पाया . अब पूरा विवादित परिसर भगवान राम लला विराजमान के हवाले है . सरकार ने एक नया ट्रस्ट बनाकर उसे “अपने लोगों” के हवाले कर दिया है. संघर्ष में शामिल अन्य लोग दूर कर दिए गए हैं.
मुसलमानों की नयी मस्जिद पचीस किलोमीटर दूर अयोध्या घन्नीपुर गॉंव में बनेगी . सुनी वक़्फ़ बोर्ड ने इसके लिए एक ट्रस्ट का गठन कर दिया है , जिसमें मुख्य रूप से वे लोग हैं जो सलाह समझौते की बातचीत में विवादित भूमि मंदिर के लिए देने के पक्ष में थे. इस ट्रस्ट में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के संयोजक ज़फ़रयाब जिलानी समेत उन तमाम लोगों को शामिल नहीं किया गया है, जिन्होंने मस्जिद की बहाली के लिए अदालत में और उसके बाहर संघर्ष किया. सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने अभी मस्जिद निर्माण शुरू होने का कोई प्लान नहीं बनाया है.
https://mediaswaraj.com/babri-_demolition-analysis-of-senior-journalist-ram-dutt-tripathi-planned-conspiracy-or-not/
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद परिसर
राम जन्म भूमि परिसर, अयोध्या के उत्तर पश्चिम छोर पर रामकोट मोहल्ले में एक ऊँचे पर टीले है।वहाँ से कुछ ही दूर सरयू नदी बहती है। शायद पहले और क़रीब रही होगी. किताबों में विवरण मिलता है कि हमलावर मुग़ल बादशाह बाबर ने पंद्रह सौ ईसवी में सरयू पार डेरा डाला था। बनी मस्जिद पर लगे शिलालेख और सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक़ बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाक़ी ने यह मस्जिद बनवायी थी।
लेकिन इसका रिकार्ड नहीं है कि बाबर अथवा मीर बाक़ी ने यह ज़मीन कैसे हासिल की और मस्जिद से पहले वहाँ क्या था ?मस्जिद के रखरखाव के लिए मुग़ल काल, नवाबी और फिर ब्रिटिश शासन में वक़्फ़ के ज़रिए एक निश्चित रक़म मिलती थी।
कहा जाता है कि इस राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर स्थानीय हिन्दुओं और मुसलमानों में कई बार संघर्ष हुए। ब्रिटिश इतिहासकारों ने लिखा है कि 1855 में नवाबी शासन के दौरान मुसलमानों ने,बाबरी मस्जिद पर एकत्र होकर अयोध्या के सबसे प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर क़ब्ज़े के लिए धावा बोला । उनका दावा था कि यह मंदिर एक मस्जिद तोड़कर बनायी गयी थी।
इस ख़ूनी संघर्ष में हिंदू वैरागियों ने हमलावरों को हनुमान गढ़ी से खदेड़ दिया जो भागकर बाबरी मस्जिद कैंपस में छिपे। मगर वहाँ भी तमाम मुस्लिम हमलावर क़त्ल कर दिए गए, जो वहीं कब्रिस्तान में दफ़्न हुए।
कई गजेटियर्स, विदेशी यात्रियों के संस्मरणों और पुस्तकों में उल्लेख है कि,हिंदू समुदाय पहले से इस मस्जिद की जगह को राम जन्म स्थान मानते हुए पूजा और परिक्रमा करता था।मुसलमान इसका विरोध करते थे, जिससे झगड़े फ़साद होते रहते थे।
माना जाता है कि इसी दरम्यान हिन्दुओं ने मस्जिद के बाहरी हिस्से पर क़ब्ज़ा करके चबूतरा बना लिया और भजन पूजा शुरू कर दी, जिसको लेकर वहाँ झगड़े होते रहते थे।कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मस्जिद के आहाते में हिन्दुओं को राम चबूतरा के लिए ज़मीन बादशाह अकबर ने दिलवायी थी।
1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद नवाबी शासन समाप्त होने पर ब्रिटिश क़ानून, शासन और न्याय व्यवस्था लागू हुई। शायद यह महज़ संयोग नहीं है कि अयोध्या में मस्जिद के स्थान पर झगड़ा 1857 में आज़ादी की पहली लड़ाई के आसपास ही शुरू होता है.
बाबरी मस्जिद के एक मुतवल्ली यानि प्रबंधक मौलवी मोहम्मद असग़र ने तीस नवम्बर 1858 को लिखित शिकायत की कि हिंदू वैरागियों ने मस्जिद से सटाकर एक चबूतरा बना लिया है और मस्जिद की दीवारों पर राम- राम लिख दिया है।
अयोध्या में लम्बे समय तक तैनात एक अधिकारी के अनुसार 1857 की ग़दर में अनेक ब्रिटिश अफ़सरों ने हिंदू वैरागी साधुओं के यहाँ शरण ली थी. बाद में वैरागियों ने उनसे कहा की हमने आपकी जान बचायी, अब आप हमारे राम की जन्म भूमि में हमारी मदद करें. तब अंग्रेज अफ़सरों ने राम चबूतरे और मस्जिद के बीच एक दीवार भी खड़ी करवा दी.
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद में ब्रिटिश अफ़सरों की भूमिका
ब्रिटिश अफ़सरों ने शांति व्यवस्था क़ायम करने के लिए चबूतरे और मस्जिद के बीच दीवार बनाकर अलग कर दिए थे , पर मुख्य द्वार एक रहा।इसके बाद भी मुसलमानों की तरफ़ से लगातार लिखित शिकायतें होती रहीं कि हिंदू वहाँ नमाज़ में बाधा डाल रहे हैं। अप्रैल 1883 में निर्मोही अखाड़ा ने डिप्टी कमिश्नर फ़ैज़ाबाद को दरखास्त देकर मंदिर बनाने की अनुमति माँगी। मगर मुस्लिम समुदाय की आपत्ति पर दरखास्त नामंज़ूर हो गयी।
इसी बीच मई 1883 में लाहोर निवासी गुरमुख सिंह पंजाबी राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद की जगह पर पत्थर वग़ैरह सामग्री लेकर आ गया और प्रशासन से मंदिर बनाने की अनुमति माँगी। मगर प्रशासन ने वहाँ से पत्थर हटवा दिए।
इसके बाद जनवरी अठारह सौ पचासी में निर्मोही अखाड़े के महँथ रघुबर दास ने चबूतरे को राम जन्म स्थान बताते हुए भारत सरकार और मोहम्मद असग़र के ख़िलाफ़ सिविल कोर्ट में पहला मुक़दमा दायर किया।मुक़दमे में 17 गुना 21 फ़ीट लम्बे चौड़े चबूतरा जनम स्थान पर मंदिर बनाने की अनुमति माँगी गयी, ताकि पुजारी और भगवान दोनों धूप, सर्दी और बारिश से निजात पाएँ।इसमें दावा किया गया कि वह इस ज़मीन के मालिक हैं और उनका मौक़े पर क़ब्ज़ा है।
सरकारी वक़ील ने जवाब में कहा कि वादी को चबूतरे से हटाया नहीं गया है, इसलिए मुक़दमे का कोई कारण नहीं बनता। मोहम्मद असग़र ने चबूतरा पर मंदिर की दरखास्त का विरोध किया।असग़र ने अपनी आपत्ति में याद दिलाया कि प्रशासन इससे पहले भी बार- बार मंदिर बनाने से रोक चुका है
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद पर जज पंडित हरी किशन का फ़ैसला
जज पंडित हरि किशन ने मौक़ा मुआयना किया और पाया की चबूतरे कि चबूतरे पर भगवान राम के चरण बने हैं और मूर्ति थी , जिनकी पूजा होती थी। इसके पहले हिंदू और मुस्लिम दोनों यहाँ पूजा और नमाज़ पढ़ते थे। बीच की दीवार झगड़ा रोकने के लिए खड़ी की गयी। जज ने मस्जिद की दीवार के बाहर चबूतरे और ज़मीन पर हिंदू पक्ष का क़ब्ज़ा भी सही पाया।
इतना सब रिकार्ड करने के बाद जज पंडित हारि किशन ने यह लिखा कि चबूतरा और मस्जिद बिलकुल अग़ल – बग़ल हैं । दोनों के रास्ते एक हैं ।और मंदिर बनेगा तो शंख, घंटे वग़ैरह बजेंगे, जिससे दोनों समुदायों के बीच झगड़े होंगे , लोग मारे जाएँगे। इसीलिए प्रशासन ने मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी थी।
जज ने यह कहते हुए निर्मोही अखाड़ा के महँथ को चबूतरे पर मंदिर बनाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया कि ऐसा करना भविष्य में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दंगों की बुनियाद डालना होगा।
इस तरह बाबरी मस्जिद के बाहरी कैंपस में राम मंदिर बनाने का पहला मुक़दमा निर्मोही अखाड़ा साल भर में हार गया.
डिस्ट्रिक्ट जज चैमियर की कोर्ट में अपील दाख़िल हुई। मौक़ा मुआयना के बाद उन्होंने तीन महीने के अंदर फ़ैसला सुना दिया. फ़ैसले में डिस्ट्रिक्ट जज ने कहा , “ हिन्दुओं द्वारा पवित्र मानी जानी वाली जगह पर मस्जिद बनाना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन चूँकि यह घटना 356 साल पहले की है इसलिए अब इस शिकायत का समाधान करने के लिए बहुत देर हो गयी है।”
जज ने लिखा कि , “ इसी चबूतरे को राम चंद्र का जन्म स्थान कहा जाता है।” साथ ही जज ने यह भी कहा कि अब यथास्थिति में बदलाव से कोई लाभ होने के बजाय व्यवस्था क़ायम रखने में नुक़सान ही होगा।
चैमियर ने सब जज हरि किशन के जजमेंट का यह अंश अनावश्यक कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि चबूतरे पर पुराने समय से हिन्दुओं का क़ब्ज़ा है और उसके स्वामित्व पर कोई सवाल नहीं उठ सकता।
निर्मोही अखाड़ा ने इसके बाद अवध के जुड़िशियल कमिश्नर डब्लू यंग की अदालत में दूसरी अपील की।जुड़िशियल कमिश्नर यंग ने 1 नवम्बर 1886 को अपने जजमेंट में लिखा कि अत्याचारी बाबर ने साढे तीन सौ साल पहले जानबूझकर ऐसे पवित्र स्थान पर मस्जिद बनायी जिसे हिंदू राम चंद्र का जनम स्थान मानते हैं। इस समय हिन्दुओं को वहाँ जाने का सीमित अधिकार मिला है और वे सीता रसोई और राम चंद्र की जन्मभूमि पर मंदिर बनाकर अपना दायरा बढ़ाना चाहते हैं।
लेकिन जजमेंट में यह भी कह दिया गया कि रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे ज़मीन पर हिंदू पक्ष का किसी तरह का स्वामित्व दिखे।
इन तीनों अदालतों ने अपने फ़ैसले में राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल के बारे में हिन्दुओं की आस्था, मान्यता और जन श्रुति का उल्लेख किया। लेकिन फ़ैसला रिकार्ड पर उपलब्ध सबूतों को आधार पर दिया। तीनों जजों ने और शांति व्यवस्था की तत्कालीन ज़रूरत पर ज़्यादा ध्यान दिया।इसलिए मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी।
हालाँकि अब पीछे मुड़कर देखने पर लगता है की अगर उस समय चबूतरे पर मंदिर बन गया होता तो शायद आज़ादी के बाद नए सिरे से विवाद नही पैदा होता। न लोगों को राजनीति करने का मौक़ा मिलता। न दंगा फ़साद होता।
सन 1934 में बक़रीद के दिन अयोध्या के पास के एक गाँव में गोहत्या को लेकर दंगा हुआ. बताते हैं कि उस समय अलवर की महारानी वहाँ कैम्प कर रही थीं. गोहत्या से नाराज़ रानी ने अयोध्या के वैरागियों से बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई करवा दी. मस्जिद के तीनों गुम्बद क्षतिग्रस्त हो गए. ब्रिटिश प्रशासन ने सामूहिक जुर्माना लगाकर इसकी मरम्मत करवा दी। यही वजह थी कि छह दिसम्बर को कारसेवकों को ऊपर से गुम्बद तोड़ने में काफ़ी मुश्किल हुई. फिर किसी जानकार ने दीवार्रें तुड़वायीं. गुम्बद गिरे तो मलवे में सन 1931 के बाद की ईंटें मिलीं, जो मरम्मत में लगायी गयी थीं.
मस्जिद को लेकर शिया सुनी झगड़ा
इस मस्जिद को लेकर मुसलमानों में आपस में भी झगड़ा हुआ है। 1936 में मुसलमानों के शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच इस बात पर क़ानूनी विवाद उठ गया कि मस्जिद किसकी है? वक़्फ़ कमिश्नर ने इस पर जाँच बैठायी।मस्जिद के मुतवल्ली अथवा मैनेजर मोहम्मद ज़की का दावा था कि मीर बाक़ी शिया था, इसलिए यह शिया मस्जिद हुई। लेकिन ज़िला वक़्फ़ कमिश्नर ए मजीद ने 8 फ़रवरी 1941 को अपनी रिपोर्ट में कहा की मस्जिद की स्थापना करने वाला बादशाह बाबर सुन्नी था। मस्जिद के इमाम तथा नमाज़ पढ़ने वाले सुन्नी हैं, इसलिए यह सुन्नी मस्जिद हुई। मामला यहीं नही थमा। इसके बाद शिया वक़्फ़ बोर्ड ने सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के ख़िलाफ़ सिविल जज फ़ैज़ाबाद की कोर्ट में मुक़दमा कर दिया।
सिविल जज एस ए अहसान ने 30 मार्च 1946 को शिया समुदाय का दावा ख़ारिज कर दिया। इसी बुनियाद पर शिया समुदाय के कुछ नेता इस अपनी मस्जिद बताते हुए मंदिर निर्माण के लिए ज़मीन देने की बात करते थे ।
जब अंग्रेज़ी राज ख़त्म होने को आया तो हिन्दुओं की तरफ़ से फिर चबूतरे पर मंदिर निर्माण की हलचल हुई। लेकिन सिटी मजिस्ट्रेट ए शफ़ी ने दोनो समुदायों से लिखित आदेश पारित किया कि न तो चबूतरा पक्का बनाया जाएगा, न मूर्ति रखी जाएगी और दोनों पक्ष यथास्थिति बहाल रखेंगे।इसके बाद भी मुसलमानों की ओर से लिखित शिकायतें आती रही कि हिंदू वैरागी नमाज़ियों को परेशान करते हैं।
देश विभाजन के बाद बड़ी तादाद में अवध के मुसलमान, विशेषकर प्रभावशाली मुसलमान पाकिस्तान चले गए। विभाजन के दंगों को रोकने और साम्प्रदायिक सौहार्द क़ायम करने की कोशिश में लगे महात्मा गांधी की हत्या कर दी गयी।
1952 में राम राज्य परिषद ने किया राम मंदिर के पुनर्निर्माण का वादा
1948 में स्वामी करपात्री जी महाराज ने कांग्रेस के खिलाफ अखिल भारतीय राम राज्य परिषद बनायी जिसका प्रथम अध्यक्ष अपने विश्वासपात्र प्रिय गुरु भाई स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को बनाया. 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में चुनावी घोषणा पत्र में राम राज्य परिषद ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के अध्यक्षता में यह घोषणा किया कि यदि भारत में परिषद की सरकार बनती है तो, अयोध्या, मथुरा और काशी सहित देश के तमाम उन मंदिरों का पुनरुद्धार कराया जाएगा, जिन्हें इस्लामिक काल मे नष्ट किया गया है। यानी मन्दिरों के पुनरुद्धार का सर्वप्रथम भारत मे, विचार बीज स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने बोया।
उधर स्वतंत्रता मिलने के बाद समाजवादियों ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनायी। आचार्य नरेंद्र देव समेत सभी विधायक विधान सभा से त्यागपत्र दे दिया।
आचार्य नरेंद्र देव अयोध्या उपचुनाव में उम्मीदवार बने।मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत अयोध्या उपचुनाव में समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव को हराना चाहते थे। इसलिए कांग्रेस ने एक बड़े हिंदू सन्त बाबा राघव दास को उम्मीदवार बनाया।
पहली बार अयोध्या में के इस उपचुनाव में राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद एक अहम मुद्दा बना। कांग्रेस प्रत्याशी बाबा राघव दास राम मंदिर का समर्थन करते हैं। मुख्यमंत्री पंत अपने भाषणों में बार – बार कहते हैं कि आचार्य नरेंद्र देव राम को नहीं मानते।इस अभियान के चलते भारत में समाजवाद के पुरोधा आचार्य नरेंद्र देव चुनाव हार गए।
बाबा राघव दास के अयोध्या विधान सभा चुनाव जितने से मंदिर समर्थक हिंदू वैरागी साधुओं के मनोबल काफ़ी बढ़ जाता है।
मंदिर निर्माण का प्रयास, वक़्फ़ इंस्पेक्टर की रिपोर्ट
वक़्फ़ इंस्पेक्टर मोहम्मद इब्राहिम ने 10 दिसम्बर 1948 को अपनी रिपोर्ट में प्रशासन को मस्जिद पर ख़तरे से सतर्क किया। वक़्फ़ इंस्पेक्टर ने लिखा लिखा कि हिंदू वैरागी वहाँ मस्जिद के सामने तमाम क़बरों मज़ारों को साफ़ करके रामायण पाठ कर रहे हैं और वे ज़बरन मस्जिद पर क़ब्ज़ा कर रहे हैं। उसने लिखा कि अब मस्जिद में केवल शुक्रवार की नमाज़ हो पाती है। हिन्दुओं की भीड़ लाठी फरसा वग़ैरह लेकर इकट्ठा हो रही है।
अयोध्या के साधुओं ने जुलाई 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर फिर से राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद के स्थान पर मंदिर निर्माण की अनुमति माँगी ।उत्तर प्रदेश सरकार के उप सचिव केहर सिंह 20 जुलाई 1949 को फ़ैज़ाबाद डिप्टी कमिश्नर के के नायर को पत्र लिखकर जल्दी से अनुकूल रिपोर्ट माँगी।
सरकार ने यह भी पूछा कि चबूतरे पर जहाँ मंदिर बनाने की माँग की गयी है वह ज़मीन नजूल की है अथवा नगरपालिका की।
सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह फ़ैज़ाबाद 10 अक्टूबर को कलेक्टर को अपनी रिपोर्ट में बताया कि वहाँ मौक़े पर मस्जिद के बग़ल में एक छोटा सा मंदिर है। इसे राम जन्म स्थान मानते हुए हिंदू समुदाय एक सुंदर और विशाल मंदिर बनाना चाहता है। सिटी मंज़िस्ट्रेट ने सिफ़ारिश किया कि यह नजूल की ज़मीन है और मंदिर निर्माण की अनुमति देने में कोई रुकावट नहीं है।
अयोध्या के हिंदू वैरागियों ने अगले महीने 24 नवम्बर से मस्जिद के सामने क़ब्रिस्तान को साफ़ करके वहाँ यज्ञ और रामायण पाठ शुरू कर दिया जिसमें काफ़ी भीड़ जुटी।झगड़ा बढ़ते देख प्रशासन ने वहाँ एक पुलिस चौकी स्थापित करके सुरक्षा में अर्ध सैनिक बल पी ए सी लगा दी।
पुलिस पहरे में राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद स्थान पर मूर्तियाँ प्रकट
पुलिस – पी ए सी तैनात होने के बावजूद , 22 / 23 दिसंबर 1949 की रात अभय राम दास और उनके साथियों ने दीवार फाँदकर राम जानकी और लक्षमण की मूर्तियाँ मस्जिद के अंदर रख दीं।मुख्य द्वार पर श्री राम जन्म भूमि लिख दिया गया. इन लोगों ने प्रचार किया कि चमत्कार से भगवान राम ने वहाँ प्रकट होकर अपने जन्म स्थान पर वापस क़ब्ज़ा प्राप्त कर लिया।बताते हैं कि मस्जिद के मूर्तियाँ स्थापित करने में शेर सिंह नाम के एक सिपाही का सहयोग था।
मुस्लिम समुदाय के लोग शुक्रवार सुबह की नमाज़ के लिए मस्जिद आए मगर प्रशासन ने विवाद टालने के लिए उनसे कुछ दिन की मोहलत माँगकर वापस कर दिया। कहा जाता है कि अभय राम की इस योजना को गुप्त रूप से फ़ैज़ाबाद के कलेक्टर के के नायर का आशीर्वाद प्राप्त था।कलेक्टर नायर कुछ साल बाद जनसंघ में शामिल होकर राम मंदिर समर्थक होने के नाम पर समीप के केसरगंज क्षेत्र से लोक सभा चुनाव जीते।
अयोध्या कोतवाली के इंचार्ज राम देव दूबे ने एक सिपाही माता प्रसाद की सूचना पर एक मुक़दमा क़ायम किया, जिसमें कहा गया कि पचास- साठ लोगों ने दीवार फाँदकर मस्जिद का ताला तोड़ा, मूर्तियाँ रखीं और जगह जगह देवी देवताओं के चित्र बना दिए। रपट में यह भी कहा गया कि इस तरह बलवा करके बाबरी मस्जिद को अपवित्र कर दिया गया।इसी पुलिस रिपोर्ट में आधार पर अतिरिक्त सिटी मजिस्ट्रेट ने उसी दिन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत कुर्की की नोटिस जारी कर दी।
प्रधानमंत्री नेहरू की चिंता
उधर दिल्ली में नाराज़ प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 26 दिसम्बर को मुख्यमंत्री पंत को तार भेजकर कहा, अयोध्या की घटना से मैं बहुत विचलित हूँ ,मुझे पूरा विश्वास है कि आप इस मामले में व्यक्तिगत रुचि लेंगे।प्रधानमंत्री नेहरू ने मुख्यमंत्री पंत से कहा क़ि मस्जिद में मूर्तियाँ रखकर एक ख़तरनाक मिसाल काम की जा रही है, जिसके परिणाम बुरे होंगे।
उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव भगवान सहाय ने कमिश्नर फ़ैज़ाबाद को लखनऊ बुलाकर डाँट लगायी और पूछा कि प्रशासन ने इस घटना को क्यों नहीं रोका और फिर सुबह मूर्तियाँ क्यों नहीं हटवाई . ज़िला मजिस्ट्रेट नायर ने इसका उल्लेख करते हुए चीफ़ सेक्रेटेरी भवान सहाय को लम्बा पत्र लिखा जिसमें कहा कि इस मुद्दे को व्यापक जन समर्थन है और प्रशासन के थोड़े से लोग उन्हें रोक नहीं सकते। अगर हिंदू नेताओं को गिरफ़्तार किया जाता तो हालात और ख़राब हो जाते।
बाग़ी तेवर में नायर ने लिखा कि वह और ज़िला पुलिस कप्तान मूर्ति हटाने से बिलकुल सहमत नहीं हैं और अगर सरकार किसी क़ीमत पर ऐसा करना ही चाहती है तो पहले हमें यहाँ से हटाकर दूसरा अफ़सर तैनात कर दे . कहा जाता है कि आर एस एस और हिंदू सभा के लोग सक्रिय रूप से क़ब्ज़े की कार्यवाही में सहयोग कर रहे थे। बाद में ख़ुलासा हुआ कि ज़िला कलेक्टर नायर और सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह दोनो आर एस एस के मेंबर थे।क़ब्ज़े को पुख़्ता शक्ल देने के लिए अतिरिक्त सिटी मजिस्ट्रेट मार्कण्डेय सिंह ने शांति भंग की आशंका में मस्जिद को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत कुर्क कर लिया।नगरपालिका चेयरमैन प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त कर उन्हें मूर्तियों की पूजा और भोग वग़ैरह की ज़िम्मेदारी दे दी गयी।
इस सबसे दुखी प्रधानमंत्री नेहरू गृहमंत्री सरदार पटेल को लखनऊ भेजते हैं और मुख्यमंत्री पंत को कई पत्र लिखते हैं। नेहरू स्वयं भी अयोध्या जाने की बात कहते हैं।उस समय देश विभाजन के बाद के दंगो, मारकाट और आबादी की अदलाबदली उबर ही रहा था और पाकिस्तान के हमले से कश्मीर के हालात भी नाज़ुक थे।
पंत को लिखे पत्र में नेहरू चिंता प्रकट करते हैं कि अयोध्या में मस्जिद पर क़ब्ज़े की घटना का पूरे देश विशेषकर कश्मीर पर बुरा असर पड़ेगा। नेहरू ने याद दिलाया क़ि कश्मीर की बहुसंख़यक मुस्लिम आबादी ने भारत के साथ रहने का फ़ैसला किया है। क़रीब- क़रीब लाचार नेहरू कहते हैं कि गृह राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में उनकी बात नहीं सुनी जा रही और स्थानीय कांग्रेस नेता साम्प्रदायिक होते जा रहे हैं।
फ़ैज़ाबाद कांग्रेस के महामंत्री अक्षय ब्रह्मचारी ने इस घटना के विरोध में लम्बे समय तक अनशन किया और सरकार को ज्ञापन दिए।लेकिन सरकार ने कुर्की की कार्यवाही में कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद दीवानी मुक़दमों का लम्बा सिलसिला
इसके बाद राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के दीवानी मुक़दमों का लम्बा सिलसिला शुरू होता है, जिस पर सत्तर साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम फ़ैसला पिछले साल नवम्बर में दिया. फ़ैज़ाबाद के एक वक़ील और हिंदू महासभा के नेता गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी 1950 को सिविल जज की अदालत में सरकार और जहूर अहमद तथा अन्य मुसलमानों के मुक़दमा दायर कर कहा कि जनम भूमि पर स्थापित श्री भगवान राम व अन्य मूर्तियों को हटा न जाए और उन्हें दर्शन और पूजा के लिए जाने से रोका न जाए।
सिविल जज ने उसी दिन यह स्थागनादेश जारी कर दिया, जिसे बाद में मामूली संशोधनों के साथ ज़िला जज और हाईकोर्ट ने भी अनुमोदित कर दिया।स्थगनादेश को हाईकोर्ट इलाहाबाद में चुनौती दी गयी, जिससे फ़ाइल पाँच साल वहाँ पड़ी रही।
सरकार की ओर से फ़ैज़ाबाद के नये जिला मजिस्ट्रेट जे एन उग्र ने सिविल कोर्ट में अपने पहले हलफ़नामे में कहा, “ विवादित सम्पत्ति बाबरी मस्जिद के नाम से जानी जाती है और मुसलमान इसे लम्बे समय से नमाज़ के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं। इसे राम चन्द्र जी के मंदिर के रूप में नहीं इस्तेमाल किया जाता था।22 दिसम्बर की रात वहाँ चोरी छिपे और ग़लत तरीक़े से श्री राम चंद्र जी की मूर्तियाँ रख दी गयीं थीं।” यह था ज़िला मजिस्ट्रेट का हलफ़नामा।
कुछ दिनों बाद दिग़म्बर अखाड़ा के महँथ राम चंद्र परमहंस ने भी एक और सिविल केस दायर किया। परमहंस मूर्तियाँ रखने वालों में से एक थे और बाद में विश्व हिंदू परिषद के आंदोलन में उनकी बड़ी भूमिका थी। इस मुक़दमे में भी मूर्तियाँ न हटाने और पूजा जारी रखने का आदेश हुआ।
कई साल बाद 1989 में विश्व हिंदू परिषद की ओर से रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने भगवान राम की बाल रूप मूर्ति को यानी राम लला न्यायिक व्यक्ति क़रार देते हुए विवादित मस्जिद की ज़मीन पर मालिकाना हक़ का नया मुक़दमा दायर किया। सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुक़दमे में विवादित मस्जिद के अलावा सारी अधिग्रहीत ज़मीन भगवान राम के पक्ष में दे दी. देवकी नंदन अग्रवाल के मुक़दमे के बाद परम हंस ने अपना केस वापस कर लिया।
मूर्तियाँ रखने के क़रीब दास साल बाद 1951 में निर्मोही अखाड़े ने जन्म स्थान मंदिर के प्रबंधक के नाते तीसरा मुक़दमा दायर किया। इसमें राम मंदिर में पूजा और प्रबंध के अधिकार का दावा किया गया।
दो साल बाद 1961 में सुनी वक़्फ़ बोर्ड और नौ स्थानीय मुसलमानों की ओर से चौथा मुक़दमा दायर हुआ। इसमें न केवल मस्जिद बल्कि अग़ल बग़ल क़ब्रिस्तान आदि की ज़मीनों पर पौने भी स्वामित्व का दावा किया गया।
फ़ैज़ाबाद ज़िला कोर्ट राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के इन चारों मुक़दमों को एक साथ जोड़कर सुनवाई करने लगी।दो दशक से ज़्यादा समय तक यह एक सामान्य मुक़दमे की तरह चलता रहा और इसकी वजह से अयोध्या के स्थानीय हिंदू मुसलमान अच्छे पड़ोसी की तरह रहते रहे। इतना ही नहीं मुक़दमे के दोनों मुख्य पक्षकारों परमहंस और हाशिम अंसारी ने मुझे बताया था कि वे एक ही गाड़ी में हँसते बतियाते कोर्ट जाते थे। बिना हिचक रात बिरात एक दूसरे के घर आते -जाते थे। मैंने दिगम्बर अखाड़े में एक साथ दोनों का इंटरव्यू लिया था। अब वे दोनों इस दुनिया में नहीं हैं।
इमर्जेंसी के बाद 1977 में जनसंघ और अन्य विपक्षी दलों के विलय से बनी जनता पार्टी इंदिरा गांधी को सत्ता से बाहर करती है, लेकिन इनकी आपसी फूट से सरकार तीन साल भी नहीं पूरी कर पाती। जनसंघ अलग होकर अटल वाजपेयी के नेतृत्व में गांधीवादी समाजवाद की राह पकड़ता है, पर सफलता नहीं मिलती। इंदिरा गांधी 1980 में वापस में सत्ता में आती है।
संघ परिवार में मंथन : हिंदू कैसे एकजुट हों
उधर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रुझान हिंदू धर्म के तीर्थों की ओर शुरू होता है, जिसे राजनीतिक टीकाकार नरम हिंदुत्व कहते हैं. उत्तर प्रदेश की श्रीपति मिश्र सरकार विवादित राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के परिसर से सटाकर बयालीस एकड़ भूमि राम कथा पार्क के लिए अधिग्रहीत कर ली जाती है. फिर पुराने घाटों की खुदायी कर राम की पैड़ी बनती है. इसी बीच तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह भी अयोध्या दौरा कर लेते हैं.
संघ परिवार में मंथन शुरू होता है कि अगले चुनाव से पहले हिन्दुओं को कैसे राजनीतिक रूप से एकजुट करें ?संघ अथवा आर एस एस के महराज विजय कौशल एवं कुछ अन्य लोग हिंदू जागरण मंच के नाम से मुज़फ़्फ़र नगर में 6 मार्च 1983 को विराट हिंदू सम्मेलन आयोजित करते हैं, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नंदा, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पूर्व मंत्री डॉ दाऊ दयाल खन्ना भी शामिल होते हैं. राम जन्म भूमि मुक्ति का प्रस्ताव पास होता है. हापुड़, एटा, सहारनपुर में भी इसी तरह के सम्मेलनों में काफ़ी भीड़ होती है.
संघ परिवार की सबसे बड़ी चिंता है कि सबसे विशाल उत्तर भारत में भाजपा के पैर नहीं जम रहे. इसी बीच दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर संघ और विश्व हिंदू परिषद अशोक सिंघल को आगे करके मुद्दा बनाते हैं. पर कोई बड़ा आंदोलन नहीं बनता.
1983 में ही जगद्गुरु शंकाराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती खुल कर सामने आए और आम हिन्दुओँ, विशेषकर संत समाज को के रूप में जोर देकर कहा कि राम जन्मभूमि की मुक्ति सबके सहयोग और सद्भावना से बिना किसी जय पराजय की भावना से हो और विधि विधान से भगवान राम का मन्दिर निर्मित हो.
दूसरी ओर विश्व हिंदू परिषद हिन्दुओं के तीन सबसे प्रमुख आराध्य राम कृष्ण और शिव से जुड़े स्थानों काशी, मथुरा और अयोध्या की मस्जिदों को केंद्र बनाकर आंदोलन की रणनीति बनती है। 7/8 अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में धर्म संसद का आयोजन कर तीनों धर्म स्थानों की मुक्ति का प्रस्ताव पास होता है। चूँकि काशी और मथुरा में स्थानीय समझौते से मस्जिद से सटकर मंदिर बन चुके हैं, इसलिए पहले अयोध्या पर फोकस करने के निर्णय होता है।
27 जुलाई 1984 को राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन होता है। गोरक्ष पीठाधीशवर महंत अवैद्यनाथ इसके अध्यक्ष और कांग्रेस के पूर्व मंत्री दाऊ दयाल खन्ना मंत्री बनते हैं. एक मोटर का रथ बनाया जाता है जिसमें राम जानकी की मूर्तियों को अंदर क़ैद दिखाया जाता है। 25 सितम्बर को यह रथ बिहार के सीतामढ़ी से रवाना होता है। 8 अक्टूबर तक अयोध्या पहुँचते -पहुँचते हिंदू जन समुदाय में अपने आराध्य को इस लाचार हालत में देखकर आक्रोश और सहानुभूति उत्पन्न होती है। विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल आंदोलन के नेता बनकर उभरते हैं.
मुख्य माँग यह है कि मस्जिद का ताला खोलकर ज़मीन मंदिर निर्माण के लिए हिन्दुओं के रामानंदी सम्प्रदाय के आचार्य शिव रामाचार्य को दे दी जाए। इसके लिए साधु संतों का राम जन्म भूमि न्यास बनाया गया।
इंदिरा गांधी की हत्या, राजीव प्रधानमंत्री बने
प्रबल जन समर्थन जुटाती हुई यह यात्रा लखनऊ होते हुए 31 अक्टूबर को दिल्ली पहुँचती है।उसी दिन इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उत्पन्न अशांति के कारण 2 नवम्बर को प्रस्तावित विशाल हिंदू सम्मेलन स्थगित कर दिए गए।
आम चुनाव में राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत मिलता है, पर वह राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से अनुभवी नहीं थे। इंदिरा गांधी की तरह वह भी नरम या सनातन हिंदू धर्म को तरजीह देने लगे. उनके मुख्य सलाहकार अरुण नेहरू थे जो उत्तर प्रदेश में वीर बहादुर सिंह के माध्यम से काम कर रहे थे. वीर बहादुर सिंह गोरखपुर के थे और हिंदू महा सभा नेता महंत अवैद्यनाथ से उनके अच्छे सम्बन्ध थे.
स्वरूपानन्द सरस्वती आज़ादी की लड़ाई में क़रीब दस साल जेल में रहे थे. राजनीतिक नेता उनका सम्मान करते थे. बताया जाता है कि शंकाराचार्य ने राजीव गाँधी को कहा कि रामायण और महाभारत का टीवी के माध्यम से प्रचार करो जिससे इस युवाओं में राम और कृष्ण का चरित्र स्थापित हो। राजीव गांधी की प्रेरणा से सरकारी चैनल दूरदर्शन ने रामानन्द सागर से रामायण सीरियल बनवाया ।जय श्री राम और हर हर महादेव का नारा शंकराचार्य स्वरूपानंद ने सुझाया था जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ । माना जाता है कि इन धारावाहिकों के प्रसारण से देश में रामजी का वातावरण बना जिसे बाद के दिनों में राजनीति वाले भुनाते रहे ।
जब जय श्री राम का नारा अत्यधिक प्रचलित हो गया तब विश्व हिंदू परिषद ने भी जय श्री राम का अपना लिया।शंकराचार्य के कहना है कि उन्होंने 1985 में राजीव गाँधी को राम मन्दिर का ताला खुलवाने के लिए कहा, जिसे वे गाँधी मान गए थे।
इसी बीच विश्व हिंदू परिषद ने विवादित राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद परिसर का ताला खोलने के लिए फिर आंदोलन तेज़ कर दिया है और शिव रात्रि 6 मार्च 1986 तक ताला न खुला तो ज़बरन ताला खोलने की धमकी भी दी गयी। आंदोलन धार देने के लिए आक्रामक बजरंग दल का गठन किया जाता है।
जन भावनाओं को संतुष्ट करने के लिए उत्तर प्रदेश की श्रीपति मिश्र सरकार पहले ही ने राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल के समीप क़रीब 42 एकड़ ज़मीन विशाल राम कथा पार्क के निर्माण के लिए अधिग्रहीत कर लिया था ।सरयू नदी से अयोध्या के पुराने घाटों की तरफ़ नहर निकालकर राम की पैड़ी बनाने का काम भी शुरू हो गया था. लेकिन संघ से जुड़े हिन्दुत्ववादी संगठन इतने से संतुष्ट नहीं होते।
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवादित परिसर का ताला खुला
अचानक फ़ैज़ाबाद ज़िला अदालत में एक वक़ील उमेश चंद्र पांडेय ने ताला खोलने की अर्ज़ी डाली , जबकि वहाँ लंबित मुक़दमों से संबंध नहीं था। वकील श्री पांडेय का कहना है कि अयोध्या निवासी होने के नाते राम जन्म भूमि में मेरी आस्था थी. मैंने इस पर लेख लिखे थे. अदालतों की फ़ाइलों का निरीक्षण करने पर मैंने पाया था कि विवादित मस्जिद में ताला लगाने का कोई लिखित आदेश पत्रावली पर न था.
उस समय विश्व हिंदू परिषद का राम जानकी रथ बिहार से होकर अयोध्या आने वाला था. परम हंस राम चंद्र दास ने ताला न खुलने पर आत्म दाह की धमकी दे रखी थी. इस लिव सरकार दबाव में थी. उनकी दरखास्त पर ज़िला जज ने तत्कालीन ज़िला मजिस्ट्रेट इंदू कुमार पांडेय और पुलिस कप्तान करमवीर सिंह का तलब किया. समझा जाता है कि इस पर फ़ाइलें खंगाली गयीं. लखनऊ – दिल्ली तक चर्चा हुई होगी . उसी हिसाब से सिग्नल दिए गए होंगे.
ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस कप्तान ने ज़िला जज के एम पांडेय की अदालत में उपस्थित होकर कहा कि ताला खुलने से शांति व्यवस्था क़ायम रखने में कई परेशानी नहीं होगी।इस बयान को आधार बनाकर ज़िला जज के एम पांडेय ने ताला खोलने का आदेश कर दिया। इस आदेश के कारण बाद में उनके ही कोर्ट जज बनाए जाने को लेकर काफ़ी खींच तान हुई.
ताला खोलने के आदेश पर घंटे भर के भीतर इस अमल करके दूरदर्शन पर प्रसारित भी कर दिया गया, जिससे यह धारणा बनी कि यह सब राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रायोजित था।राजीव गांधी को इसका बहुत राजनीतिक नुक़सान हुआ. वास्तव में इसके बाद ही पूरे हिंदुस्तान और दुनिया को अयोध्या के मंदिर मस्जिद विवाद का पता चला।
ताला खोलने के आदेश पर घंटे भर के भीतर इस अमल करके दूरदर्शन पर प्रसारित भी कर दिया गया, जिससे यह धारणा बनी कि यह सब राजीव गांधी सरकार द्वारा प्रायोजित था।हालाँकि कतिपय लोगों का कहना है कि राजीव गांधी का ताला खुलने के बाद जानकारी दी गयी. पर इसे कोई मांने को तैयार नहीं. कांग्रेस पार्टी को इसका बहुत राजनीतिक नुक़सान हुआ. वास्तव में इसके बाद ही पूरे हिंदुस्तान और दुनिया को अयोध्या के राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद का पता चला।
पढ़ें कैसे खुला ताला https://mediaswaraj.com/ayodhya_disputed_mosque_lock_opened/
अब बनी बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति
मुस्लिम समुदाय 1949.तक स्थानीय स्तर पर बाबरी मस्जिद की बहाली का मुक़दमा लड़ता रहा और अयोध्या में शांति बनी रही. लेकिन ताला खुलते की पूरे मुस्लिम जगत में तीखी प्रतिक्रिया हुई. जो मुस्लिम समुदाय पिछले 36 सालों से बाबरी मस्जिद की बहाली की लड़ाई अदालत की चौखट के भीतर लड़ रहा, उसमें अचानक खलबली मच गयी.1986 ताला खुलने की प्रतिक्रिया में मुस्लिम समुदाय ने मस्जिद की रक्षा के लिए बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन कर जवाबी आंदोलन चालू किया। नेता हुए मौलाना मुज़फ़्फ़र हुसैन किछौछवी,ज़फ़रयाब जिलानी, मोहम्मद आज़म खान और दूसरे के सैयद शहाबुद्दीन.
सांसद सैय्यद शहाबुद्दीन के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद समन्वय समिति का गठन हो गया। दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना बुख़ारी भड़काऊ बयान देने में उमा भारती, विनय कटियार, साक्षी महराज और साध्वी रितंभरा से एक क़दम आगे थे.
कहावत है ताली एक हाथ से नहीं बजती। अब आमने सामने दो प्रतिद्वंद्वी ताक़तें खड़ी हो गयीं.मुस्लिम समुदाय ने 14 फ़रवरी 1986 को बाबरी मस्जिद का ताला खोलने के विरोध में काला दिवस मनाया और उस दिन मेरठ में जो दंगे शुरू हुए तो फिर आगे हालात बद से बदतर होते गए. मेरठ, मुरादनगर, हाशिमपुरा और मलियाना के भयंकर दंगों, पुलिस पी ए सी की ज़्यादतियाँ, एकतरफ़ा कार्यवाही और निर्दोष लोगों की हत्या की ख़बरें सबको मालूम हैं.पीड़ित अब भी यदा कड़ा न्याय की गुहार लगाते हैं.
दंगों की जाँच करने वाले ज्ञान प्रकाश आयोग ने इन दंगों के पीछे अयोध्या में राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवादित परिसर का ताला खोलने की घटना को रेखांकित किया है. भावनाएँ भड़काने में इसका इस्तेमाल हुआ.
इस बीच मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के नेताओं ने राजीव गांधी को अर्दब में लेते हुए दबाव डाला कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाह बानो को गुज़ारा भत्ता देने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश संसद में क़ानून बनाकर पलट दिया जाए। राजीव गांधी सरकार इस फ़ैसले को उलटने के लिए संसद में क़ानून पारित करवा दिया।
राजीव गंधी मुस्लिम धर्म गुरुओं के आगे झुके तो मंदिर समर्थक हिंदू समुदाय और जुझारू तेवर दिखाने लगा।
फ़रवरी 1986 से जून 1987 के बीच केवल उत्तर प्रदेश में 60 छोटे बड़े दंगे हुए जिनमे 200 से ज़्यादा लोग मारे गए और क़रीब 1000 घायल हुए. बड़े पैमाने पर सम्पत्ति का भी नुक़सान हुआ. इसी दरम्यान दिल्ली, औरंगाबाद ( महाराष्ट्र), मुज़फ़्फ़रनगर, मुंबई , सूरत, बड़ोदा, हज़ारीबाग़, कोटा, , बदायूँ, इंदौर, भागलपुर , आदि में दंगे भड़के. भागलपुर के दंगे तो ग्रामीण क्षेत्राओं में भी फैले.
ग्रामीण क्षेत्रों में दंगे फैलने की सबसे बड़ी वजह थी क़रीब तीन लाख गाँवों से मंदिर के लिए ईंटें या शिलाएँ पूजित करके जुलूस निकाले गए थे. आडवाणी की रथ यात्रा के ठीक पहले और बाद में देश भर में साम्प्रदायिक हिंसा हुई. इसकी चपेट में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और बंगाल समेत 14 राज्य आ गए. सैकड़ों लोग मारे गए.
मुझे गोंडा के करनलगंज के दंगों की अभी तक याद है जब ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में छिपे लोगों को भी ढूँढ- ढूँढ कर मारा जलाया गया था. वह वीभत्स दृश्य याद कर आज भी माँ काँप उठता है. सत्ता की राजनीति कितनी निर्मम हो सकती है.
शहर में कर्फ़्यू पुस्तक के लेखक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी वी एन राय का कहना है कि ,”अयोध्या के मन्दिर – मस्जिद – विवाद ने आज़ादी के बाद भारतीय समाज में साम्प्रदायिक जहर फैलाने मे बड़ा योगदान किया है. जन्मभूमि आंदोलन के चलते देश के उन हिस्सों में भी साम्प्रदायिक दंगे हुए जहां विभाजन के दौरान भी नही हुए थे.”
दिल्ली, मेरठ, आगरा, वाराणसी, कानपुर, अलीगढ़, खुर्जा, बिजनौर , सहारनपुर, हैदराबाद, भद्रक ( उड़ीसा), सीतामढ़ी, सूरत, मुंबई , कलकत्ता, भोपाल आदि तमाम शहर साम्प्रदायिक हिंसा की चपेट में आए.
निर्मोही अखाड़ा ने शंकाराचार्य से मदद माँगी
विश्व हिंदू परिषद की बधी ताक़त देख जनवरी माघ मेला 1989 में निर्मोही अखाड़े के कुछ प्रतिनिधि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के यहाँ गए. इन लोगों ने कहा महाराज जी राम जन्मभूमि का विवाद अब अखाड़े से संभल नही रहा है। आप ज्योतिष एवं द्वारिकाशारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु है, अयोध्या आपके अधिकार क्षेत्र में आता है अतः आप हमारा सहयोग करें, और आप स्वयं इस विवाद को सुलझाने के लिए आगे आने का कष्ट करें।
निर्मोही अखाड़े बात मानकर स्वीकार कर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने सीधा हस्तक्षेप किया और 3 जून 1989 में चित्रकूट में भारी गर्मी में राम मंदिर के आंदोलन की शुरूआत किया। इस आंदोलन में उन्होंने देश भर के 1000 बड़े संतों को बुलाया। 108 संतों ने एक साथ भगवान रामलला के जन्मभूमि और मन्दिर के पुनरुद्धार के लिए शंखनाद किया. इस सम्मेलन में देश भर से लाखों राम भक्त शिष्य सम्मिलित हुए। हजारों सन्तों ने एकसाथ शंखनाद किया।
चित्रकूट सम्मेलन के बाद देश भर में श्रीराम जन्म भूमि पुनरुद्धार के लिए सन्त सम्मेलन का सिलसिला तेजी से आरम्भ किया। 1989 में उत्तर प्रदेश और केंद्र में राजीव गांधी के कांग्रेस की सरकार थी , दिसंबर 1989 में लोकसभा के चुनाव के शंकाराचार्य ने आंदोलन किया .
उनका कहना है कि अक्टूबर 1989 में भक्तों – बुद्धजीवियों के साथ अयोध्या में श्री जन्मभूमि में रामलला के दर्शन करके वास्तु और मन्दिर स्थापत्य के साक्ष्य एकत्र किए।19 अक्टूबर 1989 न्यायालय में राम जन्मभूमि का मजबूत पक्ष रखने के लिए शंकराचार्य ने अखिल भारतीय राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति गठित की.
आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा , भाजपा खुलकर सामने आयी
विश्व हिंदू परिषद का मंदिर आंदोलन अब ज़ोर पकड़ चुका था. सरकार से सुलह समझौते की बातें हुईं कि हिंदू मस्जिद पीछे छोड़कर राम चबूतरे से आगे ख़ाली ज़मीन पर मंदिर बना लें। मगर संघ परिवार इन सबको नकार देता है।
हिंदू और मुस्लिम दोनो के तरफ़ से देश भर में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति चलती है।स्टेज तैयार देख अब भाजपा खुलकर मंदिर आंदोलन के साथ आ जाती है। भारतीय जनता पार्टी ने 11 जून 1989 को पालमपुर कार्यसमिति में प्रस्ताव पास किया कि अदालत इस मामले का फ़ैसला नहीं कर सकती और सरकार समझौते अथवा संसद में क़ानून बनाकर राम जनम स्थान हिन्दुओं को सौंप दे।
उत्तर प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर अनुरोध किया कि चारों मुक़दमे फ़ैज़ाबाद से अपने पास मँगाकर जल्दी फ़ैसला कर दिया जाए। 10 जुलाई 1989 को हाईकोर्ट मामले अपने पास मंगाने का आदेश देती है। हाईकोर्ट 14 अगस्त को स्थागनादेश जारी करता है कि मामले का फ़ैसला आने तक मस्जिद और सभी विवादित भूखंडों की वर्तमान स्थिति में कोई फेरबदल न किया जाए।
1989 में ही राम मन्दिर के आंदोलन के समय शंकराचार्य ने काशी के पंडितों से राम मन्दिर के शिलान्यास का शुभ मुहूर्त निकलवाया जो कि उत्तरायण में 7 मई 1990 तय हुआ।
प्रतिस्पर्धा में शिलान्यास
बीजेपी यानी विश्व हिन्दू परिषद ने शंकराचार्य पहले ही शिलान्यास का कार्यक्रम बना लिया. इसी वर्ष दिसम्बर में केंद्र और राज्य में चुनाव भी होने वाले थे।विश्व हिंदू परिषद ने शंकाराचार्य को पीछे करने के लिए 9 नवम्बर को राम मंदिर के शिलान्यास और देश भर में शिला पूजन यात्राएँ निकालने की घोषणा कर दिया राजीव गांधी के कहने पर गृहमंत्री बूटा सिंह 27 सितम्बर को लखनऊ में मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के बंगले पर विश्व हिंदू परिषद से इन यात्राओं के शांतिपूर्ण ढंग से निकालने के लिए समझौता करते हैं।
समझौते में अशोक सिंघल , महँथ अवैद्य नाथ और उनके साथी शांति सौहार्द और हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक़ यथास्थिति बनाए रखने का लिखित वादा करते हैं।
राजीव गांधी राम राज्य की स्थापना के नारे के साथ अपना चुनाव अभियान फ़ैज़ाबाद से शुरू करते हैं।
उधर विश्व हिंदू परिषद मस्जिद से कुछ दूरी पर शिलान्यास के लिए झंडा गाड़ देती है।
सरकार इस बात को साफ़ करने के लिए हाईकोर्ट जाती है की क्या प्रस्तावित शिलान्यास का भूखंड विवादित क्षेत्र में आता है या नहीं। 7 नवम्बर को हाईकोर्ट फिर स्पष्ट करता है कि यथास्थिति के आदेश में वह भूखंड भी शामिल है।फिर भी उत्तर प्रदेश सरकार यह कहकर 9 नवम्बर को शिलान्यास की अनुमति देती है कि मौक़े पर पैमाइश में वह भूखंड विवादित क्षेत्र से बाहर है।माना जाता है कि संत देवरहा बाबा की सहमति से किसी फ़ार्मूले के तहत मस्जिद से क़रीब 200 फूट दूर शिलान्यास कराया गया।
शिलान्यास तो हो जाता है, पर मुस्लिम समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया देखकर सरकार आगे निर्माण रोक देती है।
याद दिला दें की इस बीच एक कांग्रेस से बाग़ी वी पी सिंह के नेतृत्व में जनता दल नाम की एक तीसरी राजनीतिक शक्ति का उदय हो चुका है। वी पी सिंह और जनता दल का रुझान स्पष्ट रूप से मुसलमानों की तरफ़ होता है।
शंकराचार्य का कहना है कि दरअसल वह शिलान्यास गर्भ गृह पर न होकर 192 फिट दूर सिंहद्वार पर किया गया । लेकिन शिलान्यास का लाभ चुनाव में भाजपा को मिल गया.
लोकसभा में भाजपा सीधे 2 सीट से 85 सीट पर आ गयी।कांग्रेस चुनाव हार जाती है और वी पी सिंह बाहर से बी जे पी के समर्थन से प्रधानमंत्री बनते हैं।उत्तर प्रदेश में जनता दल पुराने समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री चुनता है, जो पहले विश्व हिंदू परिषद के अयोध्या आंदोलन का विरोध कर चुके हैं।
शंकराचार्य स्वरूपानंद की गिरफ़्तारी
30 अप्रैल 1990 को, पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शंकराचार्य स्वरूपानंद द्वारिका से दिल्ली होते हुए राम जन्मभूमि का शिलान्यास करने के लिए निकल पड़े, वाराणसी होते हुए जैसे ही वो आजमगढ़ पहुँचे उसी समय रात को ही मुलायम सिंह की सरकार ने उनको गिरफ्तार करवा लिया. उनका आरोप है कि यह गिरफ्तारी बीजेपी के दबाव में आकर के मुलायम सिंह से वी पी सिंह ने करवाया था , क्योंकि बीजेपी के समर्थन से ही केन्द्र में जनता दल की सरकार चल रही थी और बीजेपी ने धमकी दिया था कि यदि उनको गिरफ्तार नहीं करोगे तो हम तुम्हारी सरकार गिरा देंगे.
पुलिस रात भर उन्हें मिर्जापुर के जंगलों में घुमाती रही, उन्हें उनका दैनिक पूजा संध्या भी नही करने दिया और अंत में रात भर जंगल मे घुमाने के पश्चात सुबह चुनार के किले में ले जाकर बंद कर दिया। यह खबर लीक हुई तो साधु संत विभिन्न धार्मिक संगठन आम नागरिक आंदोलन करने लग गए। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार बंगाल, इस प्रकार से सम्पूर्ण भारत में ही आंदोलन प्रदर्शन शुरू हो गए।
अन्त में जनता के दबाव के कारण 8 मई 1990 को 9 दिन चुनार जेल में रखने के बाद सरकार ने माफी मांगते हुए बिना शर्त शंकराचार्य को मुक्त किया ।उसी वर्ष 1990 में शंकराचार्य जी ने पूरे भारत मे दशरथ कौशल्या यात्रा निकाली जिसका हिन्दू समाज के जागरण में बहुत बड़ा योगदान साबित हुआ। इस अभियान में देश भर में लाखों लोगो के हस्ताक्षर लिए गए।
आडवाणी रथ यात्रा , अगड़ों – पिछड़ों का संघर्ष
अब बी जे पी राम मंदिर आंदोलन को खुलकर अपने हाथ में ले लेती है, जिसका नेतृत्व लाल कृष्ण आडवाणी को मिलता है।आडवाणी देश भर में माहौल बनाने के लिए 25 सितम्बर 1990 को सोमनाथ मंदिर से 30 अक्टूबर तक अयोध्या की रथयात्रा पर निकलते हैं। देश में कई जगह दंगे फ़साद होते हैं।लालू प्रसाद यादव श्री आडवाणी को बिहार में ही गिरफ़्तार कर रथ रोक लेते हैं।
मुलायम सरकार की तमाम पाबंदियों के बावजूद 30 अक्टूबर को लाखों कार सेवक अयोध्या पहुँचते हैं।लाठी गोली के बावजूद कुछ कर सेवक मस्जिद के गुंबद पर चढ़ जाते हैं। मगर अंत में पुलिस भारी पड़ती है।गोलीबारी में सोलह कार सेवक मारे जाते हैं, हालाँकि हिंदी अख़बार विशेषांक निकालकर सैकड़ों कारसेवकों के मरने और सरयू के लाल होने की सुर्ख़ियाँ लगाते हैं। मुलायम सिंह को मुल्ला मुलायम सिंह कहकर गाली दी जाती है वह हिन्दुओं में बेहद अलोकप्रिय हो जाते हैं और अगले विधान सभा चुनाव में उनकी बुरी पराजय होती है।
नाराज़ बी जे पी केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेती है। जनता दल के अंदर भी देवी लाल बग़ावत करते हैं।वी पी सिंह पिछड़े वर्गों को आरक्षण के लिए पुरानी मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू कर देते हैं।अब देश में अगड़ों – पिछड़ों अथवा मंडल कमंडल का खुला संघर्ष शुरू होता है।
नरसिम्हा राव और कल्याण सिंह सत्ता में
1991 के लोक सभा चुनाव के दौरान राजीव गांधी की हत्या हो जाती है और कांग्रेस के बूढ़े नेता नर सिम्हा राव प्रधानमंत्री बनते हैं।
उत्तर प्रदेश में मध्यावधि चुनाव में भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बनते हैं। सरकार बनते ही कल्याण सिंह सरकार मस्जिद के सामने की 2.77 एकड़ ज़मीन पर्यटन विकास के लिए अधिग्रहीत कर लेती है। राम कथा पार्क के लिए अधिग्रहीत 42 एकड़ ज़मीन लीज़ पर विश्व हिंदू परिषद को दे दी जाती है।
सरकार के निर्देश पर अधिकारी पुराने सिविल मुक़दमों में तथ्य बदलकर नए हलफ़नामे दाख़िल करते हैं।संघ परिवार चाहता है की मस्जिद के सामने पर्यटन के लिए अधिग्रहीत ज़मीन पर मंदिर निर्माण शुरू कर दिया जाए , जिसके लिए पत्थर तराशे जा चुके हैं।
मगर हाईकोर्ट ने आदेश कर दिया कि राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद परिसर के सामने की इस ज़मीन पर स्थायी निर्माण नहीं होगा। फिर भी जब जुलाई में निर्माण शुरू हो गया तो सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया।नरसिम्हा राव सरकार बड़ी मुश्किल से संतों को समझा बुझाकर यह निर्माण रुकवा पायी।
मस्जिद के साथ अदालत का आदेश संघ का अनुशासन भी टूटा
छह दिसंबर 1992 को फिर कार सेवा का ऐलान हुआ। कल्याण सरकार और विश्व हिंदू परिषद नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में वादा किया कि सांकेतिक कार सेवा में मस्जिद को क्षति नहीं होगी।कल्याण सिंह ने पुलिस को बल प्रयोग न करने की हिदायत दी।कल्याण सिंह ने स्थानीय प्रशासन को केंद्रीय बलों की सहायता भी नहीं लेने दी।आम कार सेवकों में आख़िरी क्षणों में सांकेतिक कर सेवा की घोषणा के ख़िलाफ़ रोष था। मस्जिद के साथ ही संघ परिवार का यह घमंड भी टूट गया कि वे भीड़ को जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकते हैं।
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आडवाणी, जोशी और सिंघल जैसे शीर्ष नेताओं, सुप्रीम कोर्ट के प्रेक्षक ज़िला जज तेज़ शंकर और पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में लाखों कारसेवकों ने छह दिसंबर को मस्जिद की एक- एक ईंट उखाड़कर मलवे के ऊपर एक अस्थायी मंदिर बना दिया। वहाँ पहले की तरह रिसीवर की देखरेख में दूर से दर्शन पूजा शुरू हो गया।
मुसलमानों ने केंद्र सरकार पर मिली भगत और निष्क्रियता का आरोप लगाया पर प्रधानमंत्री ने सफ़ाई दी कि संविधान के अनुसार शांति व्यवस्था राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी थी और उन्होंने क़ानून के दायरे में रहकर जो हो सकता है किया।उन्होंने मस्जिद के पुनर्निर्माण का भरोसा भी दिया।
मस्जिद ध्वस्त होने के कुछ दिनों बाद हाईकोर्ट ने कल्याण सरकार द्वारा ज़मीन अधिग्रहण को गैरकानूनी क़रार दे दिया।
राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवाद ज़मीन अधिग्रहण
नरसिम्हा राव ने “द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट, 1993” बनाकर 67 अकड़ जमीन अधिग्रहित की, जो हिन्दू और मुसलमानों दोनो से लिया गया ।
27 जून 1993 में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी ने श्रृंगेरी में चतुष्पीठ सम्मेलन बुलवाया, जिसमे स्वामी निश्चलानंद जी के अलावा, काँची के आचार्य को भी बुलवाया.चतुष्पीठ सम्मेलन में ये तय हुआ कि नया राम मन्दिर पहले से बहुत विशाल अंकोरवाट के तर्ज पर धर्माचार्य बनाएंगे न कि राजनैतिक लोग। स्वामी स्वरूपानंद जी ने अंकोरवाट के जैसे विशाल राम मन्दिर के लिए पहले ही सब सोचा हुआ था चतुष्पीठ सम्मेलन में यह घोषणा हुई कि राम मन्दिर के लिए देश के सभी प्रमुख आचार्य रामालय यानी राम का घर न्यास बनाएंगे जिसमे सभी शंकराचार्यों सहीत, सभी वैष्णवाचार्य, सभी अखाड़ो के आचार्य सहित कुल 25 लोग रहेंगे। जिसमें शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज स्वयं शामिल थे और उन्होंने बाकायदा हस्ताक्षर भी किया था।
इस बीच केंद्र सरकार ने मसले के स्थायी समाधान के लिए संसद से क़ानून बनाकर राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद विवादित परिसर और आसपास की लगभग 67 एकड़ ज़मीन को अधिग्रहीत कर लिया था । सरकार ने हाईकोर्ट में चल रहे मुक़दमे समाप्त करके सुप्रीम कोर्ट से राय माँगी कि क्या बाबरी मस्जिद का निर्माण कोई पुराना हिंदू मंदिर तोड़कर किया गया था।यानी विवाद को इसी भूमि तक सीमित कर दिया गया।
इस क़ानून की मंशा थी कि कोर्ट जिसके पक्ष में फ़ैसला लेगी उसे अपना धर्म स्थान बनाने के लिए मुख्य परिसर दिया जाएगा और थोड़ा हटकर दूसरे पक्ष को ज़मीन दी जाएगी। दोनों धर्म स्थलों के लिए अलग ट्रस्ट बनेंगे। यात्री सुविधाओं का भी निर्माण होगा।कमिश्नर फ़ैज़ाबाद को केंद्र सरकार की ओर से रिसीवर नियुक्त किया गया।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया कि क्या वहाँ मस्जिद से पहले कोई हिंदू मंदिर था।जजमेंट के कहा गया कि अदालत इस तथ्य का पता लगाने के लिए सक्षम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में चल रहे मुक़दमों को भी बहाल कर दिया, जिससे दोनों पक्ष न्यायिक प्रक्रिया से विवाद निबटा सकें।
शिलादान कार्यक्रम से विहिप और साकार की दूरियाँ बढ़ीं
इस बीच दिल्ली में भाजपा की सरकार आ जाती है. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री और आडवाणी गृह मंत्री. विश्व हिंदू परिषद और मंदिर समर्थकों की उम्मीदें काफ़ी बढ़ जाती हैं. सन् 2002 में विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या की अधिग्रहीत भूमि पर प्रतीकात्मक मंदिर निर्माण के लिए फिर देश भर से कारसेवकों को इकट्ठा किया .
लेकिन वाजपेयी – आडवाणी सरकार ने भारी फ़ोर्स लगाकर कारसेवकों को अयोध्या के बाहर खदेड़ दिया और अधिग्रहीत राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद परिसर में कोई कार्यक्रम नही हो सका. मंदिर आंदोलन के एक प्रमुख नेता रामचंद्र दास परम हंस की चेतावनी के चलते अधिकारियों ने उनके ही दिगम्बर अखाड़े में शिलाएँ प्राप्त कर लीन. ये शिलाएँ फ़ैज़ाबाद प्रशासन के कोषागार में जमा हैं.
सरकार की सख़्ती से अशोक सिंघल और परमहंस जैसे नेता अटल, आडवाणी से निराश हुए और आगे चलकर कटु आलोचक हो गए.
27 फ़रवरी को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर अयोध्या से वापस लौट रहे कारसेवकों की दो बोगियों में धू- धू करके आग लगी जिसमें अंदर बैठे लोग बुरी तरह जलकर मारे गये . आरोप है कि कारसेवकों से कुछ झगड़े के बाद स्थानीय मुसलमानों ने इन बोगियों को जलाया. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी जाँच पड़ताल इसे पाकिस्तानी आतंकवादियों की साज़िश क़रार दिया.
आरोप है कि इसके बाद संघ परिवार ने अपने समर्थकों को गोधरा का बदला लेने के लिए उकसाया और मुख्यमंत्री ने पूरे प्रशासन को ख़ामोश तमाशा देखने का निर्देश दिया. कुछ पुलिस अफ़सरों की चेतावनी को भी सरकार ने नज़रंदाज किया. अनेक लोगों का कहना है की भारत में यह पहला सुनियोजित दंगा था जिसकी साज़िश में सरकार शामिल थी.सरकारी आँकड़ों के अनुसार इन दंगों में कम से कम 850 लोग मारे गए। हालाँकि ग़ैर सरकारी तौर पर यह आँकड़ा 2000 तक जाता है.
उस समय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे लेकिन वह ज़बानी जमा ख़र्च के अलावा कुछ नहीं कर सके . नरेंद्र मोदी देश भर में हिंदुत्ववादियों की पसंद के पहले नेता बन गए और आडवाणी उनसे पीछे छूट गए.
पुरातत्व की खुदाई , हाईकोर्ट जजमेंट
हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से बाबरी मस्जिद और राम चबूतरे के नीचे खुदाई करवायी जिसमें काफ़ी समय लगा। रिपोर्ट में कहा गया कि नीचे कुछ ऐसे निर्माण मिले हैं जो उत्तर भारत के मंदिरों जैसे हैं। इसके आधार पर हिंदू पक्ष ने नीचे पुराना राम मंदिर होने का दावा किया, जबकि अन्य इतिहासकारों ने इस निष्कर्ष को ग़लत बताया।
लम्बी सुनवाई, गवाही और दस्तावेज़ी सबूतों के बाद 30 सितम्बर 2010 को हाईकोर्ट ने जजमेंट दिया। तमाम परिस्थिति जन्य साक्ष्यों के आधार पर तीनों जजों ने यह माना कि भगवान राम चंद्र जी का जन्म मस्जिद के बीच वाले गुंबद वाली ज़मीन पर हुआ होगा। लेकिन ज़मीन पर मालिकाना हक़ के बारे में किसी के पास पुख़्ता सबूत नहीं थे।
इसलिए दीर्घकालीन क़ब्ज़े के आधार पर भगवान राम, निर्मोही अखाड़ा और सुनी वक़्फ़ बोर्ड के बीच तीन हिस्सों में बाँट दिया।इसे एक पंचायती फ़ैसला भी कहा गया, जिसे सभी पक्षकारों ने नकार दिया।
अदालती विवाद महज़ आधा बिस्वा अथवा 1428 वर्ग गज ज़मीन का था , जिस पर विवादित बाबरी मस्जिद ज़मीन खड़ी थी। लेकिन धर्म, इतिहास, आस्था और राजनीति के घालमेल ने इसे जटिल और संवेदनशील बना दिया.
राम मंदिर के लिए क़ानून की माँग
शंकाराचार्य स्वरूपानंद ने 25,26,27 नवम्बर 2018 में काशी में धर्म संसद में प्रस्ताव पारित कराके, संसद से कानून बनाकर राम मन्दिर बनाने का प्रस्ताव भेजा. 28,29,30 जनवरी 2019 को परम धर्म संसद 1008 के दूसरे सम्मेलन में अयोध्या जाकर राम मन्दिर निर्माण करने की तारीख़ घोषित किया, पर उसके ठीक पहले पुलवामा हमले के कारण इस यात्रा को रद्द किया ।
उधर सुप्रीम कोर्ट ने अपील के मामले में तेज़ी से सुनवाई कर नौ नवम्बर को जजमेंट दे दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने मोटे तौर पर अयोध्या विवाद के अपने फ़ैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट का अनुमोदन किया . साथ ही साथ 1993 में केन्द्र सरकार द्वारा अयोध्या में ज़मीन अधिग्रहण क़ानून की स्कीम के मुताबिक़ विवाद के निपटारे का निर्देश दिया.
कोर्ट ने भगवान राम लला विराजमान का दावा मंज़ूर करते हुए केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह जजमेंट के तीन महीने के अंदर मंदिर निर्माण के लिए एक कार्य योजना प्रस्तुत करे.कोर्ट ने कहा कि यह कार्य योजना 1993 में बने अधिग्रहण क़ानून की धारा छह और सात के अंतर्गत होगी. धारा छह में मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट गठित करने की बात है जिसके संचालन के लिए एक बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ होगा.इसी ट्रस्ट को मंदिर के निर्माण और आसपास ज़रूरी व्यवस्थाएं करने का अधिकार दिया गया.
जजमेंट के पैरा 805 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के मुक़दमे को निश्चित मियाद के बाद दायर करने के कारण रद्द कर दिया.कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा का राम जन्मभूमि मंदिर का प्रबंधक होने का दावा भी ख़ारिज कर दिया है. लेकिन संविधान के अनुच्छेद 142 में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है कि परिसर में निर्मोही अखाड़ा की ऐतिहासिक भूमिका को देखते हुए उसे मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट के मैनेजमेंट में उचित स्थान दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फ़ैसले को पलट दिया है जिसमें सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के मुक़दमे को मियाद के बाहर बताया गया था.सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को नई मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन आवंटित करने का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केन्द्र सरकार 1993 में अधिग्रहीत 67 एकड़ ज़मीन में से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को आवंटित करेगी अथवा राज्य सरकार अयोध्या के किसी उपयुक्त और प्रमुख स्थान पर यह ज़मीन आवंटित करेगी.
कोर्ट ने यह भी कहा है कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड इस ज़मीन पर मस्जिद बनाने के लिए ज़रूरी क़दम उठाने को स्वतंत्र होगा अर्थात उस पर कोई बाधा नहीं डाली जाएगी.
जजमेंट में यह भी कहा गया है कि सबसे पहला मुक़दमा दायर करने वाले हिन्दू महासभा के नेता राम गोपाल विशारद को मंदिर में पूजा का अधिकार होगा. उन्होंने सन 1949 में मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद यह अधिकार मांगा था.विशारद अब इस दुनिया में नहीं रहे और उनके उत्तराधिकारी मुक़दमे में पक्षकार थे .
सुप्रीम कोर्ट जजमेंट के बाद ट्रस्ट की दावेदारी
शंकाराचार्य स्वरूपानंद का कहना है कि राम मंदिर निर्माण का मौका रामालय न्यास को मिलना चाहिए था क्योंकि “द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट, 1993” के हिसाब से एक मात्र रामालय न्यास ही है जो एक्ट के सारे शर्तो को पूरा करता है।
22 जनवरी 2020 को प्रयाग के संगम तट स्थित माघ मेले में भक्त सन्त सम्मेलन बुलाया गया जिसमे इस बात का प्रस्ताव पारित हुआ कि भगवान राम के लिए 25 फुट ऊँचा, स्वर्ण जटित एक अस्थायी बाल मन्दिर “स्वर्णालय” का निर्माण किया जाएगा और भगवान राम को शीघ्र तम्बू से मुक्त कर एक भव्य चन्दन के लकड़ी से बने विशाल सिंहासन पर विराजमान करके स्वर्णालय में तब तक रखा जाएगा जब तक कि भगवान राम का दिव्य भव्य स्थायी मन्दिर नही बन जाता।स्वर्णालय बनकर तैयार हो चुका था और वह शीघ्र अयोध्या के लिए लेकर जाना था.
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इस बीच नरेंद्र मोदी सरकार ने पाँच फ़रवरी को राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास का गठन कर फटाफट सारी ज़मीन हस्तांतरित कर दी. प्रधानमंत्री ने स्वयं इसकी घोषणा संसद में की. ट्रस्ट ने जल्दी जल्दी भगवान राम की मूर्ति को पास में एक अस्थायी मंदिर में स्थानांतरित करके प्रधानमंत्री पाँच अगस्त को नरेंद्र मोदी के हाथों शिलान्यास – भूमि पूजन करवा दिया . दूसरी ओर शंकाराचार्य स्वरूपानंद एवं ज्योतिष के जानकार अन्य विद्वानों का कहना है कि पाँच अगस्त को कोई मुहूर्त था ही नहीं. उनका सुझाव है कि राम मंदिर निर्माण कार्य देवोत्थानी एकादशी के बाद शुरू करना चाहिए. पर उनकी सुनता कौन है?
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लेखक राम दत्त त्रिपाठी, लगभग चालीस वर्षों से राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद अयोध्या विवाद का समाचार संकलन करते रहे हैं. वह क़ानून के जानकार हैं. लम्बे अरसे तक बीबीसी के संवाददाता रहे. उसके पहले साप्ताहिक संडे मेल और दैनिक अमृत प्रभात में काम किया.
ये लेखक के निजी विचार हैं.
सर,
अनुसंधान और अनुभव के साथ तैयार की गयी रिपोर्ट, अन्यत्र प्लेटफार्म पर मिलना असम्भव है, बहुत बहुत धन्यवाद 💐🙏
रिपोर्ट क्या यथार्थ है। वर्तमान परिवेश मे राष्ट्रीय धरोहर जैसी है। नई पीढी भी इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से जागरूक हो इस बहत्तर रिपोर्ट के यथार्थ को पुस्तक का स्वरूप मिलना चाहिए। यह लेख पत्रकार समाज के लिए नजीर है ही बल्कि सर्व समाज के लिए उपयोगी साबित है। सहयोगी होने के नाते मै गौरवान्वित हूँ।
A comprehensive note indeed but skewed summation and the way analysis has been conjectured is evident of a conclusion made before examining the facts. One example is that of….” no such riot in such a planned way has ever happened in the country”. On what basis the author has come to this conclusion is not known and he neither has given any reference to it. I can say this confidence that this statement is not a truth. There are many other instances where writer states that …” it is alleged or reported while describing about Karsewaks burnt in the train but saying as if he was a witness to the instructions being issued to police to remain away. Such biased reporting is not a norm of media I believe. So, this essay needs to be read with a pinch of salt.