राम जन्मभूमि का ताला खुलने की कहानी, वकील की ज़ुबानी
जब 1984 में राम जन्म भूमि मुक्ति का आंदोलन शुरू हुआ तो अयोध्या निवासी वकील उमेश चंद्रा पांडेय ने पूरे विवाद का क़ानूनी अध्ययन शुरू किया. लेख लिखे. और फिर अपने “आराध्य भगवान राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने के लिए फ़ैज़ाबाद कोर्ट पहुँच गए.
उमेश चन्द्र पाण्डेय,
एडवोकेट, हाईकोर्ट
वर्ष 1986 के माह फरवरी की पहली तारीख अपना नाम विश्व के इतिहास में व भारतीय हिंदू समाज में स्वर्णिम अक्षरों में लिखने जा रही थी , यह शायद समय के अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं पता था। कारण – अयोध्या स्थित भगवान श्री राम जन्मभूमि में लगे अवैध ताले, , जिसे खोलने का प्रार्थना पत्र मेरे द्वारा 25 जनवरी 1986 को दिया गया . जिला न्यायाधीश फ़ैज़ाबाद ने मुन्सिफ सदर के न्यायालय के आदेश के विरूद्ध दायर अपील पर 31 जनवरी को पूरे दिन केवल इस बात पर कि ’’यह मामला अत्यंत आवश्यक वह तुरंत सुनवाई के लिए क्यों जरूरी है’’ पर इत्मीनान होने के बाद 1 फरवरी को जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को न्यायालय उपस्थित होने का आदेश दिया था।
1 फरवरी 1986 का दिन आज भी मेरी आंखों के सामने जीवित है जब जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक श्री इंद्र कुमार पांडे व श्री कर्मवीर सिंह जी के बयान पश्चात् मा0 जिला न्यायाधीश श्री के0 एम0 पांडे द्वारा समय तीसरे पहर 4.15 पर निर्णय दिया गया था.
न्यायालय में दिए गए प्रार्थना पत्र व उस पर हो रही कार्यवाही की जानकारी समाचार पत्रों में आ चुकी थी, इस कारण 1 फरवरी को जिला न्यायालय में लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी और अंततः शाम 4.30 पर जिला न्यायाधीश ने श्री राम जन्मभूमि पर लगे ताले को बगैर किसी आदेश के व गैर कानूनी पाते हुए प्रशासन को तत्काल ताला खोलने का आदेश पारित किया. इसके चलते प्रशासन द्वारा ताला खोलकर आम जनमानस के लिए अपने आराध्य की पूजा-अर्चना के लिए पूर्व के व्यवधान को समाप्त कर दिया गया।
बात सितंबर-अक्टूबर वर्ष 1984 की है जब राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद द्वारा विभिन्न गोष्ठियों का आयोजन शुरू किया गया था. उसी क्रम में सरयू तट धर्म संसद का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित तमाम धर्माचार्याें के साथ-साथ श्री एस0 एन0 काटजू भी थे जिन्होंने मंच से साफ कहा कि राम जन्मभूमि पर लगा ताला बगैर किसी आदेश के व गैर कानूनी है।
इसी क्रम में स्वामी रामचंद्र परमहंस (जिनके द्वारा वर्ष 1950 में इसी संबंध में दीवानी न्यायालय में वाद संख्या 25 सन् 1950 दाखिल किया गया था) के निवास स्थान पर महन्त अवैद्यनाथ जी की उपस्थित में , जिसमें सौभाग्य से मैं भी मौजूद था, पुनः इस पर चर्चा हुई.
उन्हीं दिनों परमहंस जी द्वारा यह घोषणा की गयी कि यदि श्री राम जन्मभूमि का ताला नहीं खोला गया तो वह आत्मदाह कर लेंगे, उनके इस संकल्प के चलते लोगों में भारी आक्रोश था।
मैं वर्ष 1980 से जनपद फैजाबाद में वकालत करने के साथ-साथ थोड़ा बहुत लेखन कार्य करता था और उसी क्रम में मेरे द्वारा लिखा श्री हनुमान गढ़ी अयोध्या पर लेख स्थानीय समाचार पत्र में छपा था. इसके बाद पत्र के संपादक ने मुझसे अन्य ऐतिहासिक स्थलों, मंदिरों आदि के बारे में लिखने का आग्रह किया .
इस क्रम में मैंने श्री राम जन्मभूमि से संबंधित दस्तावेजों, पुराने लेखों के साथ-साथ न्यायालय फैजाबाद में मौजूद पत्रावलियों का विधिक मुआयना किया गया. कुछ विषयों पर सवाल जवाब द्वारा प्रमाण पत्र भी प्राप्त किया गया. इसके चलते मुझे यह ज्ञात हुआ कि वास्तव में वहां पर ताला लगाने का कोई आदेश ही नहीं है.
संभवत वर्ष 1949-50 में हुए विवाद के चलते धारा 144 की प्रक्रिया के दरमियान किसी मौखिक प्रशासनिक आदेश से वहां ताला लगा कर ईश्वर की पूजा-अर्चना में व्यवधान पैदा कर दिया गया। मेरा लेख समाचार पत्र में ’’इतिहास के आईने में राम जन्मभूमि’’ शीर्षक से छपा था।
मन्दिर लगा ताला लगाने का कोई आदेश नहीं था और न ही वर्ष 1950 से लेकर 1961 के बीच में दायर मुकदमों यथा गोपाल सिंह विशारद, महंत रामचंद्र परमहंस, निर्मोही अखाड़ा तथा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, में न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध में कोई आदेश दिया गया था . इसलिए मेरे द्वारा इस याचना के साथ कि प्रशासन को आदेश दिया गया कि जाए कि गैर कानूनी ढंग से लगे ताले को अविलम्ब खोले, एक प्रार्थना पत्र दिनांक 25 जनवरी 1986 को मुन्सिफ सदर के समक्ष दिया गया. यह अन्ततः इस आदेश के साथ कि चूंकि मूल पत्रावली माननीय उच्च न्यायालय में लंबित है तथा आदेश पारित करने के पूर्व सभी पक्षकारों को सुनना होगा, प्रार्थना पत्र निस्तारित कर दिया गया. तत्पश्चात मेरे द्वारा जनपद न्यायाधीश के समक्ष अपील की गई जिस पर 1 फरवरी 1986 को तत्काल ताला खोलने का ऐतिहासिक आदेश पारित हुआ।
1 फरवरी 1986 को ताला खोलने के आदेश से जहां आम नागरिकों को अपने आराध्य का दर्शन पूजा का लाभ अत्यन्त नजदीक से करने का सौभाग्य मिला वहीं परमहंस रामचंद्र दास को आत्मदाह से भी मुक्ति मिली. इस आदेश के पश्चात 1986 से वर्ष 1992 तक चलने वाली राम भक्तों के प्रयास के फलस्वरूप न केवल राम जन्मभूमि बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर की नींव पूजा के रूप में साकार ले रहा है।
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https://mediaswaraj.com/ayodhya_history_of_long_dispute/
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