अटल व्यक्तित्व

शिव कुमार 

बाल मन की सरलता, ऋषि चित्त की सहजता और लोकतंत्र की सात्विक मर्यादाओं के मूर्तरूप, अद्भुत शब्द शिल्पी, ओजस्वी वक्ता, भारत रत्न श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी, 

आपका देवतुल्य जीवन, हम सभी देशवासियों के लिए एक महान प्रेरणा है।

अटल जी, जी भर के जिये, और सब को गले लगा कर जीवन पथ पे चलते रहे, वे अजातशत्रु थे, विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री होते हुए भी, उन्होंने कभी किसी पर कमर से नीचे वॉर नही किया, अटल जी मानव ही नही महा मानव थे, उनमें जहां तक मैं समझता हूं नेहरू जी के गुण भी समाहित थे, जब कभी अटल जी लोक सभा मे भाषण करते थे, और किसी खास विषय पर जब भाषण होता था, तब अपने दोहिते राजीव जी और संजीव जी को नेहरू जी कहते थे कि आज अटल जी लोक सभा मे भाषण देंगे, तुम दोनो जा कर उनका भाषण सुनना, अटल जी के भाषण लोक सभा मे या राज्य सभा मे दत्तचित्त हो कर सुने जाते थे, अटल जी शब्दो के जादूगर थे, वो शब्दो को अपने हिसाब से चयन किया करते थे, उनके भाषण तो विपक्ष भी तन्मयता से सुनने को आतुर रहता था।

अटल जी, का किसी से भी मन भेद नही था, मतभेद हो सकते थे, पर मर्यादित होते थे, ये है उनके बहुत से गुणों में से एक सबसे अच्छा गुण, वे सब की सुनते थे, चाहे सड़क पे काम करने वाला मजदूर हो, या टैक्सी ड्राइवर जिसमे वो बैठे हो या कोई बड़ा राजनेता उन सबकी बात धैर्य से सुनते थे, उनमें अहंकार नाम की कोई चीज नही थे, वे सरल थे, सहज थे सुगम थे और हर किसी से संवाद साध लेते थे, जो भी उनसे मिलता था, वो हमेशा खुश हो कर ही वहां से उनकी भूरी भूरी प्रशंसा करता हुआ ही निकलता था, और अटल जी की यही खूबी थी कि जो भी उनसे मिलता था, उसे ये महसूस होता था कि मैं ही अटल जी के सबसे निकट हूं।

दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते

सत्य का संघर्ष सत्ता से न्याय लड़ता निरंकुशता सेअंधेरे ने दी चुनौती है
किरण अंतिम अस्त होती है
मगर हम झुक नहीं सकते।

चाहे प्रधानमंत्री के पद पर रहे हों या नेता प्रतिपक्ष, बेशक देश की बात हो या क्रान्तिकारियों की, या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की, नपी-तुली और बेवाक टिप्पणी करने में अटल जी कभी नहीं चूके। सर्वतोमुखी विकास के लिये किये गये योगदान तथा असाधारण कार्यों के लिये 2014 दिसंबर में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
एक साधारण से परिवार में जन्‍मे वाजपेयी जी छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य भी कुशलता पूर्वक करते रहे।
वे भारतीय जनस करने वालों में से एक हैं और वे उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सन् 1955 में  लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सन् 1957 में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। सन् 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनायी।
1980 में जनता पार्टी से असन्तुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। 6 अप्रैल 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी को सौंपा गया। दो बार राज्यसभा के लिये भी निर्वाचित हुए। लोकतन्त्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1997 में प्रधानमन्त्री के रूप में देश की बागडोर संभाली 19अप्रैल 1998 को पुनः प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम स्थापित किए।

वे राजनीतिज्ञ  के साथ साथ साहित्यकार, ओर श्रेष्ठ कवि भी थे, कविता उनको विरासत में मिली थी, उनके पितामह भागवत के महापंडित थे उनके पिताश्री आशुकवि थे, जब तक राजा का राज रहा, तब तक उनकी बनाई हुई प्रार्थना सभी स्कूलों में प्रातः गाई जाती थी।

मेरे प्रभु !
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना.

शिव कुमार, नेता भाजपा

लेखक शिव कुमार भाजपा के नेता हैं और अटल बिहारी वाजपेयी के अनन्य सहयोगी रहे हैं. 

 

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