अस्थायी मजिस्ट्रेट

विधानसभा चुनाव अपने पूरे शबाब पर चल रहा था। बहुत सारे कर्मचारियों की ड्यूटी लगी थी, कोई वाहन चेक रहा है, कोई दारू, कोई ब्लैक मनी और कोई वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहा है, कोई मतदान के दिन की तैयारी। मैं बहुत खुश था कि चलो चुनाव की ड्यूटी से बच गए।
 एक दिन अचानक चुनाव से दस दिन पहले रात आठ बजे एक सज्जन का फोन आया-“आप प्रेम शुक्ला जी बोल रहे है।”
“हाँ,”
“आपकी विधानसभा चुनाव में वीडियो निगरानी टीम में ड्यूटी लगी है और कल सुबह नौ बजे आपकी ट्रेनिंग है, कलेक्ट्रेट में।”
“मुझे तो कोई जानकारी नहीं है।”
“अब मैं बता तो रहा हूँ।”
“आपका व्हाट्सएप नंबर यही है?”
“हाँ, व्हाट्सएप नंबर यही है।”
“व्हाट्सएप खोलकर देखिए, आपको लिखित में आदेश भेजा जा चुका है।”
“सर उच्चतम न्यायालय का आदेश है, ड्यूटी चौबीस घण्टे पहले बतानी चाहिए?”
“सर, मैंने ड्यूटी नहीं लगाई, मुझे तो केवल आपको सूचित करने के लिए बोला गया है। आप कल समय से कलेक्ट्रेट आ जाना।”
अगले दिन दिए गए समयानुसार मैं सुबह नौ बजे कलेक्ट्रेट में पहुँच गया। दो-तीन महानुभाओं द्वारा आधी-अधूरी जानकारी दी गई। हमें बताया गया कि आप लोगों को एक-एक गाड़ी और  एक-एक कुशल वीडियोग्राफर दिया जाएगा। आपको अपने विधानसभा में जनसभाओं की  रिकार्डिंग करवानी है। जनसभा में लगी कुर्सियों, बैनर्स, झण्डों आदि की रिकार्डिंग के साथ-साथ उनकी सही संख्या भी लिखित में देनी है।  
 वीडियोग्राफर्स और गाड़ी के ड्राइवरों के पहचान पत्र बनाए गए। हम लोगों ने भी माँग की, सर हमारा भी पहचान पत्र बनना चाहिए। प्रशिक्षण दाताओं ने कहा-
“अरे!आप लोग मजिस्ट्रेट बन गए हैं, आप लोगों को पहचान पत्र की आवश्यकता नहीं है।”
 हमारे कुछ जानकर साथियों ने कहा-“सर हमारा भी पहचान पत्र बनना चाहिए।”
 खैर हमारे भी पहचान पत्र बनाए गए। कुछ साथी पहचान पत्र पाकर ऐसे खुश हो रहे थे जैसे उन्हें हमेशा के लिए मजिस्ट्रेट बना दिया गया हो। सभी को एक-एक गाड़ी दी गई जिसमें तीन मजिस्ट्रेट, तीन वीडियोग्राफर और एक ड्राइवर था। 
हम लोग अपने-अपने विधानसभाओं में जाने के लिए तैयार हो गए। हमारी टीम में केवल एक वीडियोग्राफर था। 
मैंने पूछा-“और वीडियोग्राफर कहाँ मिलेंगे?”
मुझे एक सज्जन का फोन नंबर दिया गया और बताया गया कि आप लोग वीडियोग्राफर्स के लिए इनसे सम्पर्क कीजिए। वीडियोग्राफर्स की पूर्ति करने वाले का नाम था, सोहनलाल। 
मैंने फोन लगाया।
“हलो, सोहनलाल बोल रहे हैं।”
“हाँ, सोहनलाल बोल रहा हूँ।”
“मैं प्रेम शुक्ला, अस्थायी मजिस्ट्रेट बोल रहा हूँ।”
“जी सर बताइए।”
“मुझे दो वीडियोग्राफर्स चाहिए।”
“आ जाइए, परफेक्ट वीडियोग्राफर दुकान में। मैं आपको दो वीडियोग्राफर्स दे देता हूँ।”
हम लोग परफेक्ट वीडियोग्राफर दुकान पहुँच गए। एक रजिस्टर में दो व्यक्तियों के नाम और उनके फोन नंबर लिखे थे। उनके सामने ही हमने भी अपने हस्ताक्षर किए और दो लोगों को लेकर चलने लगे तो सोहनलाल ने कहा-“साहब, ये चपरासी हैं, इनको कोई जानकारी नहीं है, आप बता देना।” 
“अरे हम हिंदी के प्रोफेसर हैं, वीडियो कैमरा के नहीं, हमें भी कोई जानकारी नहीं है।”
हमारे एक साथी ने कहा-” चलो गुरूजी, हम कर लेंगे।”
हम लोग सीना तानकर मजिस्ट्रेटी पॉवर का पहचान-पत्र लिए चल दिए वीडियो रिकार्डिंग कराने। 
हमारे टीम में सबसे अनुभवी और पिछले पंद्रह दिनों से निर्वाचन कार्य में विभिन्न प्रकार के कार्यों को देख रहे कुशल कुमार, एडीओ, पंचायत, धामपुर थे। हमारी गाड़ी चल पड़ी। साठ किलोमीटर चलने के बाद हम पहुँचे, धामपुर ब्लॉक। 
ब्लॉक में अंदर पहुँचे तो कुशल कुमार अपना ऑफिस का काम निपटाने लगे। अब मेरी समझ में आया। हम बिना रूके क्यों चले जा रहे थे। कुशल कुमार ने अपने ऑफिस का काम निपटाया। अब हम चल दिए वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए। इधर-उधर घूम रहे थे, कहीं कोई नेताजी हमारे देश को पुनः सोने की चिरैया बनाने का भोली भाली जनता को सपना दिखाते मिल जाएं। कोई नेता जी नहीं मिल रहे थे। हम लोग मायूश होते जा रहे थे। लगता है आज मजिस्ट्रेटी पॉवर दिखाने का मौका नहीं मिलेगा।
अचानक हमें प्रशिक्षण देने वाले एक सज्जन का फोन आया। 
“आप लोग व्हाट्सएप ग्रुप देखो, आब्जर्वर साहब ने तीन-चार फ़ोटो भेजी हैं, ये बैनर कहीं लगे हैं, इनको तुरंत हटवाइये।”
“जी सर, हम खोजकर हटवा रहे हैं।”
हम लोगों ने बैनर खोजने शुरू कर दिए। एक पार्टी के कार्यालय के पास चार बड़े-बड़े बैनर दिखाई दिए। हमने उन दुकानदारों से पूछा- “आप लोगों ने ये बैनर क्यों लगाए है? आप लोग चुनाव आचार संहिता को भंग कर रहे हो। आप लोगों के खिलाफ कड़ी कारवाई की जाएगी।”
बेचारा दुकानदार डरकर कहने लगा-“साहब हमने नहीं लगाया, ये तो पार्टी वालों ने जबरन लगाया है।” 
हम लोगों ने किसी तरह बैनर हटवाए और इन सबकी वीडियो रिकार्डिंग की। अब शाम के छः बज चुके थे। मैंने कुशल कुमार से कहा-“सर, अब कहीं किसी नेताजी का कार्यक्रम नहीं होगा, अब चलें?”
“अरे अभी नहीं, हमारी ड्यूटी सुबह दस बजे से रात दस बजे तक है।”
लगभग आठ बजे हम लोग अपने विधानसभा क्षेत्र से जिला मुख्यालय की ओर निकले और लगभग दस बजे मुख्यालय पहुँच गए। सब लोग वहाँ से अपने-अपने घोंसलों की ओर चले गए।
 अगले दिन सुबह दस बजे कलेक्ट्रट में सभी लोग इकट्ठा हुए। हमारे ड्राइवर का नाम दामोदर था। दामोदर ने कुशल कुमार से कहा-“साहब पेट्रोल दिलवा दो। गाड़ी वहाँ तक पहुँच जाएगी,  वापस नहीं आ पाएगी।”
“अरे इधर से तो चल, उधर से देखा जाएगा।”
ड्राइवर चुपचाप गाड़ी चलाने लगा। करीब 2 घण्टे के बाद फिर हम धामपुर ब्लॉक पहुँच गए। कुशल कुमार को छोड़कर हम नेताजी की जनसभाओं को खोजने लगे। ड्राइवर दामोदर अपनी व्यथा बताने लगा। 
“साहब पिछले दस दिनों से मैं इनके साथ गाड़ी चला रहा हूँ। आज तक कभी एक कप चाय तक नहीं पिलाई। अगले हफ्ते मेरी बहन की शादी है। अब तक मैं अपने चार हजार रुपए खर्च कर चुका हूँ। दिनभर इनके साथ गाड़ी चलाता हूँ और ढाबे में अपने पैसों से खाना खाकर इतनी भयंकर ठण्ड में अपनी गाड़ी में सोता हूँ। मैं रोज कहता हूँ, साहब मुझे कम से कम खाने के पैसे तो दिलवा दो। कभी कहते हैं, कल दिलवा दूँगा, कभी कुछ बोलते ही नहीं। साहब अब मैं भाग जाऊँगा।”
“कहाँ?”
“यहीं पास में मेरा घर है। मैं वहीं चला जाऊँगा।”
 अचानक सूचना मिली कि एक बहुत बड़ी पार्टी के बहुत बड़े नेता जनसभा करने वाले हैं। हम लोग चल दिए वीडियो रिकॉर्डिंग करने को। सभा से एक किलोमीटर पहले ही हमें रोक दिया गया। हम लोग गाड़ी को वहीं छोड़कर जनसभा की ओर चल दिए। बरसात से सड़क में कीचड़ ही कीचड़ नजर आ रहा था। किसी तरह दौड़ते-भागते जनसभा में पहुँच गए। अपने जीवन में पहली बार किसी नेता की जनसभा इतने करीब से देखने जा रहा था। मैंने वीडियोग्राफर को वीडियो रिकार्डिंग करने के लिए कह दिया। पूरे जनसभा की रिकार्डिंग करनी थी, इसलिए बाहर से ही रिकार्डिंग शुरू करवा दिया। अब हम लोग पण्डाल के समीप जाने के लिए निकल पड़े। दो-तीन पुलिस वालों ने रोककर हमारे पहचान पत्रों को जाँचा परखा और हम दो लोगों को और एक कैमरे वाले को जाने दिया गया।
अभी नेता जी तो आए नहीं थे, लोकल नेता जी देश की जनता को सपने दिखाने शुरू कर दिए। कुछ देर में नेताजी आए। नेताजी अपनी चमचमाती गाड़ी से अभिनेता की स्टाइल में उतरे और लोगों की ओर देखकर मुस्कराने लगे। पता नहीं मुस्कराहट किस बात की, अपने आने में भयंकर ठण्ड में काँपते हुए लोगों की उत्सुकता को देखकर या अपने बनावटी रूप को देखकर। नेताजी को देखकर लोगों के हाव-भाव ऐसे हो रहे थे जैसे प्यासे को पानी, बेरोजगार को रोजगार, भूखे को रोटी का एक टुकड़ा मिल गया हो। जनसभा में बच्चे, बूढ़े, जवान सभी दिख रहे थे। जो थोड़ा पढ़े लिखे थे, वे  कुर्सियों पर बैठे थे, जो शिक्षा की डिग्री कहीं से बटोर लाए थे, वे सब खड़े थे और जो कभी स्कूल नहीं गए थे, वे पोस्टर, बैनर, फूल , माला आदि सामान लेकर नेताजी को अमर करने में लगे थे। सभी कार्यकर्ताओं की आत्मा तृप्त हो गई थी।
किसी तरह रिकार्डिंग पूरी हुई और हम अपनी गाड़ी के पास आ गए। हमने देखा गाड़ी वहाँ नहीं थी। हम लोगों ने ड्राइवर को फोन मिलाया।
 ड्राइवर ने कहा- “मैं अपने घर चला आया हूँ। अब मैं नहीं आऊँगा। साला, बहन……खाने तक को नहीं देते।”  
कहते हुए फोन काट दिया। मैंने दुबारा फोन मिलाया। फोन स्विच ऑफ।
मैंने कुशल कुमार को फोन मिलाया-“सर दामोदर हमें छोड़कर भाग गया।”
“अरे!कैसे भाग गया, आप लोगों ने रोका क्यों नहीं?”
“सर, वह कह रहा था कि उसे गाड़ी के तेल के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिया जाता। वह अपने पैसों से होटल में खाना खाता है और अपनी गाड़ी में सोता है।”
“अरे! सर ये लोग मुझे भी तो कुछ नहीं देते। मैं इसे कहाँ से दे दूँ।
“सर, आप सरकारी आदमी हैं, आपका खर्च चल जाएगा। वह प्राइवेट आदमी है। रोज कमाता है, रोज खाता है।”
हमने अपर जिलाधिकारी को सूचना दी। उन्होंने ने कहा- “अरे! कैसे भाग गया, आप लोगों ने रोका क्यों नहीं?” सर हम लोग नेताजी की जनसभा की रिकार्डिंग कर रहे थे और वह उसी समय भाग गया। करीब दो घण्टे तक गाड़ी का इंतजार करते रहे और जब कोई गाड़ी नहीं मिली तो सार्वजनिक वाहन बस से मुख्यालय की ओर निकल पड़े।


संदीप कुमार सिंह

असि0 प्रो0, हिंदी
देवनागरी स्नातकोत्तर महाविद्यालय
गुलावठी,बुलंदशहर, उ0प्र0
ईमेल-sandeepksingh1782@gmail.com
मोबाइल-9456814243

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