मशीनी बुद्धिमता : क्या हमारी निजी आज़ादी के लिए घातक है?

 

हर नर्क की शुरुआत स्वर्ग के वादे के साथ होती है. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) द्वारा शुरू हुआ सर्वाधिकारवाद भी इससे अलग नहीं है.

व्यक्तिवादी पश्चिमी सभ्यताओं का ताना बाना इस विचार के इर्द गिर्द बुना गया है कि हमारी इच्छाओं, विचारों और खुशियों के बारे में हमसे बेहतर कोई नहीं जान सकता. हमारे जीवन पर सिर्फ हमारा अधिकार है, सरकार या सत्ता का नहीं. दार्शनिक इम्मानुएल कांट से प्रायः सभी सहमत हैं जिन्होंने कहा था कि किसी को यह अधिकार नही है कि अच्छा जीवन जीने के संबंध में अपने विचार वह हम पर थोपे.

किंतु मशीनी बुद्धिमत्ता (एआई) इसको बदल देगी. वह हमको हमसे ज्यादा समझने में सक्षम होगी. ए आई से युक्त सरकारें यह दावा कर सकती हैं कि उन्हें जनता की जरूरतों की समझ है. जरूरतों के पैटर्न को समझने से शुरू होने वाली इस प्रक्रिया के सर्वाधिकार सम्पन्न सत्ता में बदल जाने का जबरदस्त अंदेशा है.

इसीलिए कहा जा रहा है कि ए आई वह नरक है जो शुरुआत में स्वर्ग का आभास करा रहा है. लोगों की निजी स्वतंत्रता राज्य के आदेश पर निर्भर हो कर रह जायेगी. जो अपना स्वतंत्र मार्ग चुनना चाहेंगे वह अतार्किक, विनाशक और द्वेषपूर्ण व्यक्ति कहलायेंगे.

इस तबाही से बचने का एक मात्र उपाय है कि हम दूसरों को यह अधिकार न दें कि वह हमारे बारे में ‘हम’ से ज्यादा जान पाएं.

एआई और साम्यवाद

खरबपति पीटर थैल ने पिछले साल यह दावा करके खलबली मचा दी थी कि ‘ए आई वास्तव में कम्युनिस्ट है. उन्होंने लोगों का ध्यान इस तरफ आकृष्ट किया कि ए आई केंद्रीय सत्ता को अपने नागरिकों के परीक्षण की सुविधा देता है जिससे वह उनको ‘उनसे’ ज्यादा समझ सके. पीटर ने माना कि शायद यही कारण है कि चीन ने ए आई को हाथोंहाथ लेने में देर नही लगाई.

नागरिकों की निगरानी और उन पर नियंत्रण के साधन उपलब्ध कराने के कारण एआई सर्वाधिकारवादी सत्ता की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में सक्षम है. साथ ही यह अधिनायकवाद की स्वीकार्यता को भी बढ़ा रहा है. जब तक हम स्वयं के बारे में सरकार से अधिक जानते रहे, उदारवाद बचा रहा और अधिनायकवाद हाशिए पर पड़ा रहा.

किंतु एआई ने आकर सारा खेल ही बदल डाला. बड़ी-बड़ी तकनीकी कंपनियों ने हमारे व्यवहार पर आधारित हमारा डेटा इकट्ठा करना शुरू कर दिया. मशीनों ने इन्ही आंकड़ों के आधार पर न सिर्फ यह जान लिया कि हम ‘क्या करने वाले हैं’, बल्कि यह भी जान लिया कि ‘हम कौन हैं’.

इसी अंकगणित के आधार पर आज एआई यह भविष्यवाणी करने में सक्षम है कि हम कौन सी फ़िल्म देखने वाले हैं, कैसे समाचार पढ़ना पसंद करेंगे या फेसबुक में हम किसको फ्रेंड बनाना चाहते हैं. फेसबुक लाइक्स के आधार पर ही यहां तक पता चल सकता है कि कौन से युगल भविष्य में साथ साथ रह पाएंगे. हमारी धार्मिक, राजनैतिक विचारधारा हो, चाहे हमारा व्यक्तित्व, बुद्धिमत्ता, नशे की ओर झुकाव, आत्महत्या की प्रवृत्ति या भौतिक खुशियां सब की भविष्यवाणी आज संभव है.

यह भी सच है कि एआई द्वारा की जाने वाली इन भविष्यवाणियों में समय के साथ सुधार भी आएगा. यह और अधिक सटीक होती जाएगी. लेखक युवाल नूह हरारी का मानना है कि ऐसी स्थिति आ जायेगी कि हमसे पहले हमारे बारे में एआई बता दिया करेगा.

अब यह समझना कतई मुश्किल नही है कि इसके राजनीतिक पहलू कितने खतरनाक हो सकते हैं. यदि सरकार हमसे बेहतर हमको जान सके, तो वह हमारी जिंदगी में हस्तक्षेप करने को न्यायसंगत ठहराएगी. वह हमारे उत्पीड़न को हमारी भलाई के नाम पर उठाया गया एक सही कदम साबित कर पायेगी.

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निजता की आज़ादी

दार्शनिक इसैह बर्लिन ने 1958 में ही इस समस्या का अंदाज़ा लगा लिया था. वह आगाह करते हुए कहते हैं कि ‘स्वतंत्रता’ दो प्रकार की होती है, जिनमे से एक प्रकार उत्पीड़न का कारण बन जाता है.

इस को वह ‘नकारात्मक स्वतंत्रता’ कहते हैं. यह वह आज़ादी है जो अन्य व्यक्तियों या सरकार के आपके निजी मामलों हस्तक्षेप से मिलती है. आशय यह है कि जब तक आप किसी अन्य की आज़ादी में बाधा न पहुँचा रहे हों, कोई भी आपको रोकने का प्रयास न करे.

इसके विपरीत सकारात्मक आज़ादी वह है जिसमे आप अपने मालिक खुद होते हैं. आप को अपनी इच्छाओं को पूरा करने, एक अर्थपूर्ण जीवन जीने की आज़ादी होती है. इस प्रकार की आज़ादी को कौन नापसंद करेगा.

समस्या वहाँ आएगी जब कोई दूसरा आपसे बताए कि आप अपनी ही रुचि के अनुसार काम नहीं कर रहे. वह यह जाहिर करे कि आपके विषय मे वह आपसे अधिक जानता है. जब आप उसकी बात से सहमत न हों तो वह इसके लिए जोर जबरदस्ती करे कि आप अपना भला नही कर रहे. यह विचार ही डराता है. स्टॅलिन के सोवियत संघ, माओ के चीन में इस एक धारणा ने लाखों लोगों की बलि ले थी.

रूस के साम्यवादी नेता लेनिन ने कथित रूप से यह कहा था कि पूंजीवादी उन्हें एक रस्सी बेचेंगे, फिर उसी रस्सी से वह पूंजीवाद का गला घोंट देंगे. पीटर थैल इसी प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हैं. पूंजीवादी टेक फर्मों ने एआई के रूप में साम्यवाद के हाथ एक खतरनाक हथियार बेच दिया है जिससे वह गणतांत्रिक मूल्यों पर बने पूंजीवादी समाज के ऊपर बंदिशें लगाने में सक्षम है. एआई लेनिन की वही रस्सी ही तो है.

अपने हित के लिए लड़ना जरूरी है

हम इस तबाही से तभी बच सकते हैं जब किसी अन्य को यह अधिकार न हो कि वह हमको, हमसे बेहतर जान सके. भला करने के नाम पर शक्ति थोप सकने वाले तंत्र पर भावना में बह कर भरोसा बिल्कुल नही करना चाहिए. इतिहास के नज़रिए से देखें तो इस प्रवृत्ति ने अंत मे सदैव विनाश ही किया है.

हमें अपनी निजता का बचाव हर हाल में करना चाहिए. ए आई को कम्युनिस्टिक बताने वाले थैल का तर्क है कि, ‘निजता’ जरूरी है ताकि दूसरों को हमारे विषय मे जानकारी उतनी ही मिल सके जो आवश्यक हो. इससे वह हमारे ज्ञान को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल नही कर पाते.

हालांकि एआई के द्वारा स्वयं के बेहतर मूल्यांकन के बहुत फायदे भी हैं. इसके द्वारा हम यह पता लगा सकते हैं कि वह क्या चीजें हैं जो हमें बेहतर स्वास्थ्य, संपत्ति और खुशियां दे सकती हैं. यह कैरियर के प्रति हमारे सही चुनाव को निर्देशित कर सकता है. गला काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में यह हमारी आर्थिक संपन्नता मजबूत करने में मददगार है.

स्वयं के बारे में ज्ञान हमें ही शक्तिशाली बनाता है. समस्या हमारे विषय मे जानकारी दूसरों के हाथों में पड़ने से है. हमारी निजी जानकारी किसी अन्य के पास, विशेषकर जब वह हमसे ताकतवर हो, पूर्ण रूप से पहुच जाने पर वह हमारे ऊपर अपनी शक्ति आरोपित करने में सफल हो जाता है.

जिसके भी पास हमारा ऐसा निजी डेटा हो, जिसके उपयोग से वह हमारे बारे में अधिक से अधिक जान सके, को कानूनी तौर पर इस बात के लिए बाध्य होना चाहिए कि वह हमारे बारे में ज्ञान को वापस हमें ही लौटाए. एआई के इस दौर में यह शर्त होनी चाहिए कि ‘हमारे बारे में हमारी सहमति के बिना’ कोई विचार सामने नही आना चाहिए.

ए आई हमे बताता है कि हमारे विषय मे जो भी ज्ञान है वह हमारे लिए ही उपयोगी होना चाहिए. किसी अन्य के फायदे के लिए नहीं, जिससे वह हमारा उत्पीड़न कर सके. हमारी आत्मा के संचालन के लिए सिर्फ एक माध्यम होना चाहिए, और वह माध्यम है, स्वयं हम.

अनुपम तिवारी, स्वतंत्र, लेखक

(मद्रास कूरियर में प्रकाशित लेख)
(अनुवाद अनुपम तिवारी ने किया है)

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