अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प : ‘तानाशाह’ अपनी हार अंत तक स्वीकार नहीं करते !
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प चुनाव हारने के बाद सत्ता हस्तांतरण में जिस तरह व्यवधान उत्पन्न कर रहे हैं, उस पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक -श्रवण गर्ग का यह लेख हमारी आँख खोलने वाला है.
अभी अंतिम रूप से स्थापित होना बाक़ी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प डॉनल्ड ट्रम्प हक़ीक़त में भी राष्ट्रपति पद का चुनाव हार गए हैं। इस सत्य की स्थापना में समय भी लग सकता है जो कि वैधानिक तौर पर निर्वाचित बायडन के चार वर्षों का कार्यकाल 2024 में ख़त्म होने तक जारी रह सकता है।संयोग से भारत में भी उसी साल नई लोकसभा के चुनाव होने हैं और मुमकिन है तब तक हमारी राजधानी के ‘रायसीना हिल्स’ इलाक़े में नए संसद भवन की भव्य इमारत बनकर तैयार हो जाए।ट्रम्प अभी सिर्फ़ सत्ता के हस्तांतरण के लिए राज़ी हुए हैं ,बायडन को अपनी पराजय सौंपने के लिए नहीं।ट्रम्प अपनी लड़ाई यह मानते हुए जारी रखना चाहते हैं कि उनकी हार नहीं हुई है बल्कि उनकी जीत पर डाका डाला गया है।मुसीबतों के दौरान ख़ुफ़िया बंकरों में पनाह लेने वाले तानाशाह अपनी पराजय को अंत तक स्वीकार नहीं करते हैं।
वर्ष 2020 के आख़िर में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प चुनावों को दुनिया भर में दशकों तक याद रखा जाएगा।वह इसलिए कि ऐसा पहली बार हो रहा है जब हारने वाला व्यक्ति अपने करोड़ों समर्थकों के लिए एक ‘पूर्व राष्ट्रपति’ नहीं बल्कि एक ‘विचार’ बनने जा रहा है।कल्पना करना कठिन नहीं कि एक हारने वाला उम्मीदवार अगर अपने हिंसक समर्थकों की ताक़त पर देश की संसद को बंधक बना लेने की क्षमता रखता है तो हक़ीक़त में भी जीत जाने पर दुनिया की प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं को वह किस तरह की आर्थिक ग़ुलामी में धकेल सकता था।
ट्रम्प ने पहला ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने का दर्जा हासिल कर लिया जिसने दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति को ‘विचारपूर्वक’ दो फाड़ कर दिया।ट्रम्प ने अमेरिका में ही अपने लिए एक नए देश का निर्माण कर लिया—उस अमेरिका से सर्वथा भिन्न जिसकी 528 साल पहले खोज वास्तव में तो भारत की तलाश में समुद्री मार्ग से निकले क्रिस्टोफ़र कोलंबस ने की थी। ट्रम्प की हार का बड़ा कारण यह बन गया कि उनके सपनों के अमेरिका में जगह सिर्फ़ गोरे सवर्णों के लिए ही सुरक्षित थी।उनके सोच में अश्वेतों, मुस्लिमों, ग़रीबों, महिलाओं ,नागरिक अधिकारों और मानवीय उत्पीड़न के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी।
ट्रम्प ने अपने राष्ट्रवाद के नारे को राजनीतिक उत्तेजना के इतने ऊँचे शिखर पर प्रतिष्ठित कर दिया है कि किन्ही कमज़ोर क्षणों में वे उससे अगर अपने को आज़ाद भी करना चाहेंगे तो उनके भक्त समर्थक ऐसा नहीं होने देंगे।इसीलिए अमेरिकी प्रशासन में इस समय सबसे ज़्यादा ख़ौफ़ इस आशंका को लेकर व्यक्त किया जा रहा है कि अपने शेष बचे बारह दिनों के बीच निवृत्तमान राष्ट्रपति कोई ऐसा कदम नहीं उठा लें जो देश की सुरक्षा को ही ख़तरे में डाल दे। इन आशंकाओं में उनके हाथ परमाणु बटन पर चले जाना भी शामिल है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प अगर मानकर चल रहे थे कि उनका विजयी होना तय है तो उसमें अतिशयोक्तिपूर्ण कुछ भी नहीं था।अमेरिका में बसने वाले कोई पचास लाख भारतीयों में अधिकांश की गिनती हार-जीत का ठीक से अनुमान लगाने वालों में की जाती है।ये अप्रवासी भारतीय अगर ट्रम्प की जीत के प्रति आश्वस्त नहीं होते तो देश के अड़तालीस राज्यों से पचास हज़ार की संख्या में ह्यूस्टन पहुँचकर ‘अबकी बार ,फिर से ट्रम्प सरकार ‘ का नारा लगाने की जोखिम नहीं मोल लेते।उप राष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस के नाम की घोषणा होने के पहले तक तो डेमोक्रेटिक पार्टी भी बायडन की उम्मीदवारी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी।
ट्रम्प की विजय सुनिश्चित थी अगर वे अपने प्रथम कार्यकाल में ही सभी लोगों को एकसाथ दुश्मन नहीं बना लेते। कुछेक लोगों और संस्थाओं को दूसरे कार्यकाल के लिए सुरक्षित रख लेते ; फिर से सत्ता में आने तक के लिए बचा लेते।सत्ता में आते ही उन्होंने ‘वैश्वीकरण’ का मज़ाक़ उड़ाते हुए ‘राष्ट्रवाद’ को अमेरिका का भविष्य घोषित कर दिया।जनता ने तालियाँ बजाते हुए स्वीकार कर लिया।अमेरिकियों के रोज़गार को बचाने के लिए उनके वीज़ा प्रतिबंधों का भी किसी ने विरोध नहीं किया।अवैध तरीक़ों से अमेरिका में प्रवेश करने वालों के लिए मेक्सिको के साथ सीमा पर दीवार खड़ी करने को भी मंज़ूरी मिल गई।कुछ मुस्लिम देशों के लोगों के अमेरिका आने पर लगी रोक का भी आतंकी हमले की स्मृति में जनता द्वारा स्वागत कर दिया गया।
पर हरेक तानाशाह की तरह ट्रम्प भी अपने अतिरंजित आत्म-विश्वास के चलते ग़लतियाँ कर बैठे।वे पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की ग़रीबों को मदद करने वाली ‘हेल्थ केयर योजना’ पर ताला लगाने में जुट गए ; देश के मीडिया को निरकुंश तरीक़े से तबाह करने लगे ;चुनावी साल होने के बावजूद क्रूरतापूर्ण तरीक़े से बर्दाश्त कर लिया कि किस तरह एक गोरे पुलिस अफ़सर ने बिना किसी अपराध के एक अश्वेत नागरिक की गर्दन को अपने घुटने के नीचे आठ मिनट से ज़्यादा तब तक दबाकर रखा जब तक कि उसकी मौत नहीं हो गई ।और उसके बाद उठे अश्वेत नागरिकों के देशव्यापी आंदोलन से उभरे क्रोध ने ट्रम्प को ‘व्हाइट हाउस’ में ज़मीन के भीतर बने बंकर में मुँह छुपाने के लिए बाध्य कर दिया।इतना ही नहीं, अपनी जीत के प्रति पूरी तरह से निश्चिंत राष्ट्रपति ने कोरोना से बचाव के सिलसिले में लाखों लोगों की जान की भी कोई परवाह नहीं की।वे अपने समर्थकों को मास्क न पहनने और किसी भी तरह के अनुशासन का पालन न करने के लिए भड़काते रहे।कहा जा सकता है कि ट्रम्प ने अपने ही समर्थकों को हरा दिया।
अमेरिका की प्रजातांत्रिक संस्थाएं और दुनिया के बचे-ख़ुचे प्रजातंत्र इसे अपने लिए तात्कालिक तौर पर सौभाग्य का विषय मान सकते हैं कि ट्रम्प जिस राष्ट्रवाद की स्थापना करना चाहते थे वह हिटलर के जर्मनी की तरह संगठित नहीं था।ट्रम्प के राष्ट्रवाद की अंदर की परतों में छुपी हुई हिंसा का ‘कैपिटल हिल’ पर हमले के रूप में शर्मिंदगीपूर्ण तरीक़े से दुनिया की आँखों के सामने विस्फोट हो गया।इस विस्फोट ने न सिर्फ़ आम अमेरिकी नागरिक को बल्कि ट्रम्प की पार्टी के लोगों को भी हिलाकर रख दिया।
ट्रम्प को बायडन के लिए विशाल ‘व्हाइट हाउस’ अंततः ख़ाली करना पड़ेगा।वे उसके बाद कहाँ रहने जाएँगे किसी को कोई जानकारी नहीं है ।पर वे जहां भी जाएँगे अपने लिए कोई न कोई बंकर ज़रूर तलाश कर लेंगे।पर तब तक के लिए तो दुनिया को अपनी साँसे रोककर ‘एक बीमार’ राष्ट्रपति के आख़िरी कदम की प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी।
- श्रवण गर्ग वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
Shravan Garg is a Senior Journalist of the print media.
His journalistic footprints — over more than five decades, with leading Hindi, Gujarati and English newspapers have afforded him a ringside view of India in action.
An alumnus of Thomson Foundation, London, UK and Salzburg Seminar, Salzburg, Austria — he has made forays into TV debates, mass media education, consulting, and teaching journalism at the university levels.
His time-line includes the who’s who of print media ranging from The Indian Express Group to Dainik Bhaskar Group to Dainik Jagran Group (NaiDunia) to Free Press Journal Group to Prestige Institute of Management and Research, Indore, amongst others.
He has been an editorial head for the better part of his career and has served as a member of the National Integration Council, Press Council of India, Editors Guild of India, Indian Institute of Mass Communication Society, etc. He was honoured with the prestigious Lokmanya Tilak National Award for Excellence in Journalism in 2012 in Pune.
His passion for excellence and his unstinted drive for creative journalism are well known hallmarks in the industry. His personal integrity and loyalty to journalism have afforded him a well earned stature as a national media person.
His website shravangarg.com has his writings, poetry and detailed CV.