अग्निपथ योजना : सैनिक इतिहास एवं समाजशास्त्र
*डा.आर.अचल पुलस्तेय
युवकों को रोजगार देने के उद्देश्य से पार्ट टाइम सैनिकों की नियुक्ति की अग्निपथ योजना आयी है,जिसकी आलोचना के साथ सरकार और मीडिया द्वारा सराहना भी हो रही है।उधर सेना में भर्ती होने की तैयारी करने वाले लाखों युवक का आंदोलन अराजक हो गया है।इन युवकों के साथ वे युवक-युवतियाँ भी है जो अन्य सिविल सेवाओं की परीक्षा परीणामों की प्रतीक्षा कर और पेपर लीक से हताश परेशान है।
अनेक ट्रेनें जला दी गयी है, पटरियाँ उखाड़ी गयी है।थाने व पार्टी कार्यालयों को जलने,सत्तापक्ष के नेताओं,मीडिया टीम पर हमले के समाचार भी आ रहे हैं।देश की अरबों की सार्वजनिक सम्पत्तियाँ स्वाहा हो चुकी हैं ।पब्लिक परेशान है। इस स्थिति के बावजूद सरकार,मीडिया व सत्ताधारी दल के समर्थक, कार्यकर्ता योजना के फायदे गिना रहे हैं।
लोकतांत्रिक भारत में विगत कुछ सालों से ऐसा देखने को मिल रहा है कि सरकारी फैसलों,नीतियों को लेकर जनता दो धड़ो में बँटी नजर आ रही है।जनता में एक समूह ऐसा है जो सरकार के हर नीति को मास्टरस्ट्रोक बताते हुए,अभियान बनाकर उसके फायदे गिनाने लगता है।यहाँ तक तो ठीक पर जनसंचार माध्यमों का एक धड़ा उसकी समीक्षा करने,जनपक्ष दिखाने के बजाय पैरोकारी करते दिखते हैं,दूसरा धड़ा आलोचना कर रहा है।
भारत के इतिहास में ऐसी स्थितियाँ स्वतंत्रता पूर्व देखी जाती थी जब ब्रिटिश सरकार की योजनाओं,कानूनों का जनता विरोध करती थी। स्वतंत्र भारत में इमरजेंसी के समय नसबंदी की अनिवार्यता एवं मण्डल कमीशन समर्थन और विरोध में जनता को लामबंद होते देखा गया था,तब दोनों ही सरकारों को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।सरकारी सिस्टम नसबंदी के फायदे गिना रहा थी,जनता विरोध कर रही थी।मण्डल कमीशन के समय लाभार्थी पिछड़ी जातियाँ समर्थन में खड़ी थी तो सवर्ण जातियाँ आंदोलन कर रही थीं।परन्तु इस समय की स्थिति बिल्कुल अलग है,समर्थन करने वाला समूह बिना लाभ का समर्थन कर रहा है,प्रभावित होने वाला समूह आंदोलन कर रहा है।
विकसित देशों से तुलना ग़लत
योजना समर्थक इसकी तुलना विकसित देशों के अल्पकालिक सैन्य भर्ती प्रक्रिया से कर रहे हैं।यहाँ वे यह भूल जाते हैं कि विकसित देशों आर्थिक, सामाजिक, जनसंख्या, विकास दर की तुलना भारत से बिल्कुल नहीं की जा सकती है। विकसित देशों की सामाजिक संरचना व रोजगार के अवसर के मामले में हम कहीं नहीं ठहरते है।यह वैसा ही जैसे एक गरीब आदमी अमीर की नकल करने के चक्कर खुद को बर्बाद कर लेता है।
विकसित देशों जनसंख्या में भारत जैसी विविधता नहीं हैं,रोजगार के अनेक विकल्प होने के कारण वहाँ लोग कठिन जीवनशैली वाले सैनिक जॉब को चुनना नहीं चाहते हैं।दूसरी स्थिति यह है उनकी सारी जिम्मेदारियाँ सरकार वहन करती है,इसलिए वे स्वैच्छिक रुप से सेना को समय देते हैं,सेना से सेवानिवृत होने के बाद सम्माजनक रोजगार की गारंटी होती है।जो भारत ने फिलहाल संभव नहीं दिखता हैं। जनसंख्या कम होने के कारण सैनिक बनाना सरकारों की आवश्यकता होती है।इसलिए तमाम सुविधायें देकर चार साल के लिए सेना में भर्ती करनी पड़ती है।
फिलहाल हम यहाँ नयी सैनिक भर्ती नीति की कर रहे हैं।इस पर बात करने से पहले भारतीय सेना के इतिहास और समाजशास्त्र पर कुछ बातें समझनी जरूरी हैं।
प्राचीन काल में सेना की व्यवस्था
सबसे पहले देखे तो प्राचीन काल में वर्ण व्यवस्था के अनुसार एक जाति विशेष लोग ही सैनिक रहे है,हाँलाकि इसके विपरीत मौर्यकाल व आदिवासी राजाओं के समय सेना का आधार वर्ण नहीं रहा हैं।मुगल काल में लूट के लिए लोग सेना में भर्ती हुआ करते थे।वेतन के बजाय लूट का अवसर होता था।
ब्रिटिशकाल ने सेना का वर्ण कुछ हद तक खत्म हुआ।हाँलाकि यहाँ भी जातियों के आधार पर रेजिमेंट बनाये गये, जो आज तक चल रहा है, हाँलाकि अब इसमें हर जाति को लोग होते हैं।अंग्रेजों का पहला प्रयोग पेशावाओं के खिलाफ महार रेजिंमेंट की स्थापना के रुप में था, जिसमें पेशवा राज से प्रताड़ित महारों की सेना बनी, जिसके बल पर अंग्रेजी शासन ने पेशवाओं को पराजित किया।
स्वतंत्र भारत में सेना
स्वतंत्र भारत में सेना जातियों के लिए सेना का द्वार खुला,फिर भी शहरी इलाके में रोजगार की उपलब्धता के कारण शहरी युवकों की नाम मात्र की संख्या है।रोजगार विविध उपलब्धता वाले राज्यों की भागीदारी भी सेना में कम है।सेना की सर्वाधिक संख्या पंजाब, हरियाणा,उत्तराखण्ड,हिमाचल,उत्तरप्रदेश,बिहार,बंगाल की है। इसमें भी अधिकतम भूमिहीन, छोटे किसान एवं मजदूर परिवारों के युवक हैं, जिनके घर के आर्थिक हालात आज भी अच्छे नहीं है, जिसके कारण वे अपने बच्चों को उच्च व तकनीकी शिक्षा नहीं दे सकते हैं, उनकी तात्कालिक आर्थिक जरूरतें होती हैं। वे अधिक समय तक किसी अन्य नौकरी के लिए इन्तजार नहीं कर सकते हैं।शारीरिक बल के आधार पर एक सुरक्षित-सम्मानजनक रोजगार के साथ देश के लिए सुरक्षा में भागीदार का गर्व का भाव भी रहता है।गाँव का वह एक परिवार गरीबी से उबर जाता है।शहीद होने पर उसके परिवार की आर्थिक संबल मिलता है,इसलिए वह मरने जीने की चिंता छोड़ कर ड्यूटी पर मुस्तैद रहता है। हाँलाकि उनका यह सम्मान भी बस गाँवों तक सीमित रहता है,इलिट क्लास के लिए वे गार्ड से अधिक कुछ नहीं है।सेवाकाल में भी अफसर सेवादार के रुप में घरेलू नौकरी कराते है।इस तरह इमोशनल तौर पर देश सेवा का जज्बा कह सकते है,कहते रहिए परन्तु वास्तविक मामला रोजगार का भी होता है।
वर्तमान सैनिक संरचना
अग्निपथ योजना के चार साला अग्निवीरों की भविष्य समझने के लिए वर्तमान के 17 साला भारतीय सैनिकों का वर्तमान और भविष्य को जानना जरूरी हैं। वर्तमान सैनिक संरचना के अनुसार एक सैनिक यदि प्रमोशन नहीं लिया तो 18 से 22 साल की उम्र में भर्ती होकर 15-17 साल में रिटायर हो जाता है।उसके बाद अमूमन 25 की उम्र की विवाह होता है।रिटायरमेंट की उम्र 33 से 38 साल होती है।सामान्यतःये युवक गाँव के श्रमिक या छोटे किसान परिवारो के होते हैं,15 साल की नौकरी मे माँ-बाप के कर्जे,घर-मकान,छोटे भाई-बहनो की पढ़ाई,विवाह की जिम्मेदारी निभानी विविशता होती है,जिससे लगभग पूरा वेतन खर्च हो जाता है।रिटायर मेंट के बाद अपनें बच्चो की जिम्मेदारी आती है।जो 15-10 हजार की पेंशन,आठ-दस लाख फण्ड के पैसो से निभाना मुश्किल होता है,इसलिए उन्हें दुबारा नौकरी तलाश करनी पड़ती है।सन् पचासी के पहले अनेक विभागों में इन्हें आरक्षण मिलता था, सामान्यतः इनकी पुनर्नियुक्ति हो जाती थी।लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं रह गयी है।अंततःकिसी नीजी सिक्योरिटी कम्पनी में 10-15 हजार नौकरी कर गुजारा करते है।बच्चों की अच्छी शिक्षा,सम्मानजनक नौकरी या व्यवसाय के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं। यदि बेटी हैं उसके विवाह में ही फण्ड से मिले पैसे खत्म हो जाते है।सबसे अहम बात यह कि सैनिक आजीवन सिविल सोसाइटी मे स्वयं को समायोजित नहीं कर पाता है। अंतत एक परिवार जहाँ से चला था वहीं पहुँच जाता है।
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यदि 15 साल में पेंशन,फण्ड के साथ रिटायर सैनिकों की रामकथा यह है तो 4 साल में बिना पेंशन-फण्ड का क्या होगा? दुर्योग से चार साल ने कोई दुर्घटना हो गयी एक करोड़ की वीमा सा झाँसा दिया जा रहा है।सामान्यतः24-25 साल में रिटायरमेंट के बाद बाकि जीवन किसी मॉल, दुकान पर 10 हजार में सलाम ठोंकेंगे ,हो गया न सैनिक का सम्मान ?
अग्नि पथ योजना के संदर्भ में सबसे अहम् सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा का है अभी हाल के दिनों में कुछ सैनिक व सैन्य अफसर सेना की गोपनीय जानकारियाँ पैसे के लोभ में शत्रु देशों को लीक करते पकड़े गये थे।ऐसी स्थिति में चार साल के सैनिक बेरोजगारी में क्या कर सकते हैं कल्पना भी भयावह लगती है। इसलिए जो विद्वान इस नीति की खूबियाँ गिना रहे है,उन्हें सैनिक परिवारों से मिलकर अध्ययन करने की जरूरत है।
(*लेखक-फ्रीलांसर,लेखक,विचारक,आयुर्वेद चिकित्सक एवं ईस्टर्न साइंटिस्ट शोध पत्रिका के मुख्य संपादक हैं।)