सेवाग्राम से साबरमती आश्रम संदेश यात्रा का समापन, सरकारी ट्रस्ट अस्वीकार
सेवाग्राम से साबरमती आश्रम संदेश यात्रा का समापन
साबरमती आश्रम के स्वरूप में बदलाव की कोशिश के विरोध में वरिष्ठ गांधीजनों के नेतृत्व में निकाली गई आठ दिवसीय सेवाग्राम से साबरमती संदेश यात्रा का आज अहमदाबाद में समापन हो गया.
सेवाग्राम से साबरमती आश्रम संदेश यात्रा का समापन: वरिष्ठ गांधीजनों के नेतृत्व में साबरमती आश्रम के स्वरूप में बदलाव की कोशिश के विरोध में निकाली गई आठ दिवसीय सेवाग्राम से साबरमती संदेश यात्रा का आज अहमदाबाद में समापन हुआ. गांधीजनों ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा कि इस यात्रा का समापन हुआ है, लेकिन गांधी का संदेश समाप्त नहीं हुआ है. उस संदेश को जन जन तक पहुंचाने और उसे धरती पर उतारने का हमारा प्रयास आगे भी जारी रहेगा.
अपने संयुक्त बयान में उन्होंने कहा कि 17 अक्टूबर 2021 को महाराष्ट्र के वर्धा से स्थित सेवाग्राम से बापू कुटी के समक्ष संकल्पबद्ध होकर हमने यह संदेश यात्रा शुरू की थी, जिसका आज 24 अक्टूबर 2021 को गुजरात के अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम में बापू कुटी के सामने सिर झुकाकर हम समापन कर रहे हैं.
बयान में आगे कहा गया कि इस यात्रा में हमने महाराष्ट्र व गुजरात के कई पड़ावों पर अनगिनत लोगों से बातचीत की, उनकी बात समझने की और अपनी बात समझाने के प्रयास भी किये. जनमत को समझने के इस अभियान ने हमें इस बात का एहसास कराया कि भारतीय जनमानस में आज भी महात्मा गांधी के प्रति अपार श्रद्धा है. गांधी जी के प्रति लोगों के मन में इतनी आस्था है कि आज देश की दुर्दशा का कारण वे यही मानते हैं कि हमने गांधी जी के मार्ग पर चलना छोड़ दिया है. हमारे लिए गांधी के प्रति उनकी श्रद्धा और विचारों में मौजूद यह आस्था ही सबसे बड़ी ताकत है.
गांधीजनों ने अपने इस बयान के क्रम में आगे कहा कि हम इस देश के नेताओं से कहना चाहते हैं कि वे राजनीति के क्षेत्र में हों या फिर सामाजिक क्षेत्र में, वे सेवा कार्य कर रहे हों या फिर विकास कार्य, जनमत में आज उनकी कोई साख बची नहीं है. जनता आपका बोझ ढोते ढोते थक चुकी है और निराश भी हो चुकी है. आजादी के रजत जयंती वर्ष में जनता की यह मनोदशा ऐसे तथाकथित समाजसेवियों के लिए खतरे की घंटी है. उनके लिए यह रास्ता बदलने की घड़ी है, अन्यथा उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि इससे लोकतंत्र का रास्ता बंद होने का खतरा है.
उन्होंने एक स्वर में कहा कि साबरमती आश्रम समेत देश में मौजूद बापू के सभी स्मृति स्थल उनकी साधना और प्रेरणा के स्थल हैं. वे अपनी सादगी से ही इतने संपन्न हैं कि उन्हें किसी बाहरी तड़क भड़क की जरूरत नहीं.
साबरमती आश्रम को संवारने और चमकाने की अर्थहीन बातों को छोड़कर सरकार को लोक और लोकतंत्र को संवाद में चमकाने का काम करना चाहिए. इसका एकमात्र रास्ता है कि संविधान के शब्दों व उसकी आत्मा का पूरा पालन किया जाए. संविधान, समता और लोकतंत्र ही हमारी आखिरी आशा है.
अहमदाबाद की गुजरात विद्यापीठ में सभी समान धर्मी नागरिकों की सार्वजनिक सभा में यह संकल्प जाहिर किया गया. साथ ही यह भी कहा गया कि उन्हें गांधी जी के किसी भी आश्रम व स्थल के लिए किसी भी तरह की विकास परियोजनाओं को लागू करने की जरूरत नहीं है.
सभा ने सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बनाए गए साबरमती आश्रम स्मारक ट्रस्ट को अस्वीकार किया. सेवाग्राम से साबरमती संदेश यात्रा के संयोजक संजय सिंह और बिस्वजीत रॉय ने सभी गांधीजनों और नागरिकों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि आने वाले वक्त में हम पुरजोर तरीके से साबरमती आश्रम में किये जाने वाले बदलावों के विरोध में अपना स्वर मुखर कर अपनी आवाज बुलंद करेंगे.
इस यात्रा में 12 राज्यों के गांधीजनों ने हिस्सा लिया, जिनमें मुख्य रूप से नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही और सचिव संजय सिंह, राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय के निदेशक अन्नामलाई, राष्ट्रीय जल बिरादरी के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह भी मौजूद थे.
अपने संयुक्त बयान में उन्होंने कहा कि 17 अक्टूबर 2021 को महाराष्ट्र के वर्धा से स्थित सेवाग्राम से बापू कुटी के समक्ष संकल्पबद्ध होकर हमने यह संदेश यात्रा शुरू की थी, जिसका आज 24 अक्टूबर 2021 को गुजरात के अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम में बापू कुटी के सामने सिर झुकाकर हम समापन कर रहे हैं.
बयान में आगे कहा गया कि इस यात्रा में हमने महाराष्ट्र व गुजरात के कई पड़ावों पर अनगिनत लोगों से बातचीत की, उनकी बात समझने की और अपनी बात समझाने के प्रयास भी किये. जनमत को समझने के इस अभियान ने हमें इस बात का एहसास कराया कि भारतीय जनमानस में आज भी महात्मा गांधी के प्रति अपार श्रद्धा है. गांधी जी के प्रति लोगों के मन में इतनी आस्था है कि आज देश की दुर्दशा का कारण वे यही मानते हैं कि हमने गांधी जी के मार्ग पर चलना छोड़ दिया है. हमारे लिए गांधी के प्रति उनकी श्रद्धा और विचारों में मौजूद यह आस्था ही सबसे बड़ी ताकत है.
गांधीजनों ने अपने इस बयान के क्रम में आगे कहा कि हम इस देश के नेताओं से कहना चाहते हैं कि वे राजनीति के क्षेत्र में हों या फिर सामाजिक क्षेत्र में, वे सेवा कार्य कर रहे हों या फिर विकास कार्य, जनमत में आज उनकी कोई साख बची नहीं है. जनता आपका बोझ ढोते ढोत थक चुकी है और निराश भी हो चुकी है. आजादी के रजत जयंती वर्ष में जनता की यह मनोदशा ऐसे तथाकथित समाजसेवियों के लिए खतरे की घंटी है. उनके लिए यह रास्ता बदलने की घड़ी है, अन्यथा उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि इससे लोकतंत्र का रास्ता बंद होने का खतरा है.
उन्होंने एक स्वर में कहा कि साबरमती आश्रम समेत देश में मौजूद बापू के सभी स्मृति स्थल उनकी साधना और प्रेरणा के स्थल हैं. वे अपनी सादगी से ही इतने संपन्न हैं कि उन्हें किसी बाहरी तड़क भड़क की जरूरत नहीं.
साबरमती आश्रम को संवारने और चमकाने की अर्थहीन बातों को छोड़कर सरकार को लोक और लोकतंत्र को संवाद में चमकाने का काम करना चाहिए. इसका एकमात्र रास्ता है कि संविधान के शब्दों व उसकी आत्मा का पूरा पालन किया जाए. संविधान, समता और लोकतंत्र ही हमारी आखिरी आशा है.
अहमदाबाद की गुजरात विद्यापीठ में सभी समान धर्मी नागरिकों की सार्वजनिक सभा में यह संकल्प जाहिर किया गया. साथ ही यह भी कहा गया कि उन्हें गांधी जी के किसी भी आश्रम व स्थल के लिए किसी भी तरह की विकास परियोजनाओं को लागू करने की जरूरत नहीं है.
सभा ने सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बनाए गए साबरमती आश्रम स्मारक ट्रस्ट को अस्वीकार किया. सेवाग्राम से साबरमती संदेश यात्रा के संयोजक संजय सिंह और बिस्वजीत रॉय ने सभी गांधीजनों और नागरिकों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि आने वाले वक्त में हम पुरजोर तरीके से साबरमती आश्रम में किये जाने वाले बदलावों के विरोध में अपना स्वर मुखर कर अपनी आवाज बुलंद करेंगे.
इस यात्रा में 12 राज्यों के गांधीजनों ने हिस्सा लिया, जिनमें मुख्य रूप से नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही और सचिव संजय सिंह, राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय के निदेशक अन्नामलाई, राष्ट्रीय जल बिरादरी के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह भी मौजूद थे.