भारतरूपी यज्ञशाला के चार वेद-द्वार हैं चतुष्पीठ

जब किसी यज्ञशाला का निर्माण होता है तो उसकी चारों दिशाओं में चार वेदों की स्थापना की जाती है। भगवान् आद्य शंकराचार्य जी ने सम्पूर्ण भारत भूमि को ही यज्ञशाला माना और उसकी चार दिशाओ में चार वेदों के प्रचार-प्रसार के लिए चार पीठों की स्थापना की जो आज भी पूरे विश्व में सनातन धर्म की ध्वजा फहरा रहे हैं।

उक्त उद्गार श्रीविद्यामठ में आयोजित आद्य शंकराचार्य जी की 2528वीं जयन्ती के शुभ अवसर पर पूज्य ‘स्वामिश्रीः 1008’ अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि आज भारत यदि भारत है तो वह आदि शंकराचार्य जी की ही देन है। उन्होंनें अपने समय में प्रचलित सभी मतों का खण्डन कर अद्वैत मत की प्रतिष्ठा की और देश को एक सूत्र में बाॅधा।

इस अवसर पर बड़ौदा से पधारे काशी विश्वनाथ मन्दिर के महन्थ ब्रह्मचारी राम चैतन्य जी भी ने कहा कि हम सबको आदि शंकराचार्य द्वारा बताए मार्ग पर चलकर सनातन धर्म की रक्षा करनी चाहिए।

इस अवसर पर साध्वी पूर्णाम्बा, साध्वी शारदाम्बा, श्याम बिहारी ग्वाल, धर्मवीर कुमार, सनोज कामत, शिवप्रसाद नायक, अमला यादव, जयप्रकाश आदि जन उपस्थित रहे।

आचार्य पं निखिल शास्त्री के वैदिक तथा योगेशनाथ त्रिपाठी के पौराणिक मंगलाचरण से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। पूज्य स्वामिश्रीः ने आद्य शंकराचार्य जी की मूर्ति का पंचोपचार विधि से पूजन किया। हरियाणा के बटुक अरविन्द पाराशर ने आदि शंकराचार्य का रूप बनाया और शंकराचार्य जी के सिद्धान्त ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या’ श्लोक का वाचन किया।
धन्यवाद ज्ञापन रामचन्द्र सिंह जी ने किया।

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