कुदरत के साथ जिसका संबंध टूटा, उसका जीवन के साथ संबंध टूटा

वेद चिंतन : विश्वं पुष्टम विश्वं पुष्टम ग्रामे अनातुरम्

स्व. आचार्य विनोबा  भावे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के उन  प्रमुख नेताओं में से थे, जिन्होंने गांधी के ग्राम स्वराज्य की कलपना को साकार करने के लिए पूरा जीवन लगा दिया. उन्होंने पूरे देश में ज़ामिन के समान वितरण के लिए भूदान यज्ञ चलाया और देश के एक छोर से दूसरे छोर तक पैदल यात्राएँ की. आचार्य विनोबा  भावे दुनिया की अनेक भाषाओं के जानकार थे. अध्यात्म के क्षेत्र में उनकी गहरी पैठ थी. उनका गीता प्रवचन बहुत प्रसिद्ध हुआ. यहाँ वेद चिंतन में वह ऋग्वेद पर  एक नयी दृष्टि से प्रकाश डाल रहे हैं. 

आचार्य विनोबा भावे

कहा जाता है आदिवासी बिना संस्कार के हैं, लेकिन हकीकत यह है कि उनके पास हिंदुस्तान के मूल संस्कार हैं । यह बात सही है कि आज की आदिवासी भाषाओं में गीता,बाईबिल, कुरान जैसी कोई किताब नहीं है । परंतु उनकी पुस्तक प्राचीन आदिवासियों की भाषा में लिखी गई है ।

दुनिया में जो आदि ग्रंथ लिखा गया है ,उसका नाम ऋग्वेद है वह आदिवासियों का ग्रंथ है। आदिवासियों की संस्कारिता, भावना ,उपासना, जीवन पद्धति यह सब ऋग्वेद में बहुत अच्छी तरह से देखने को मिलता है। आदिवासियों ने जंगल काट कर जो बस्ती बनाई उसे “ग्राम’ कहा ।

जैसे आज राष्ट्रधर्म, विश्वधर्म की बात चलती है,उसी तरह आदिवासियों का ग्राम धर्म था। ग्रामधर्म में विश्वधर्म आ गया ,यूँ मानकर आदिवासी भगवान से प्रार्थना करते थे – विश्वं पुष्टम ग्रामे अनातुरम् – हमारे गाँव में आरोग्यवान, परिपुष्ट विश्व का दर्शन हो।

यह लौकिक संस्कृत नहीं है, वैदिक संस्कृत नहीं है, यह पुरानी आदिवासी भाषा है। गांव में विश्व की बात कही गयी, यानी गांव आकार में भले छोटा हो, प्रकार में बड़ा होना चाहिए , जिसमें विश्व समा जाए।वास्तव में ग्राम धर्म और विश्व धर्म में कोई फरक नहीं है ।ग्राम धर्म का अर्थ है, गांव के लोग एक परिवार बनाकर रहें।विश्वधर्म का अर्थ है , भिन्न-भिन्न स्थानों एवं देशों में रहने वाले लोग एक दूसरे का भला चाहें और किसी के विरोध में काम न करें ।

यह दोनों धर्म एक ही है। एक छोटी नींव पर खड़ा है तो दूसरा बहुत व्यापक नींव पर खड़ा है ।भगवान विष्णु की छोटी मूर्ति और बड़ी मूर्ति, दोनों विष्णु ही होते हैं । इसी तरह ग्राम धर्म और विश्वधर्म में कोई फरक नहीं है। ऋषि एक और विश्व से नाता जोड़ दें तो दूसरी ओर ग्रामनिष्ठा का उपदेश देते हैं।

विनोबा भावे
विनोबा भावे

वेद दुनिया का प्रथम ग्रंथ है,फिर भी उस जमाने में ऋषि चिंतन के समय दृष्टा होते थे ।ग्राम निष्ठा और विश्वप्रेम के बीच में किसी को आने नहीं देते थे। विदेश की सत्ता से मुक्त होने के लिए जैसे स्वदेशी- धर्म का पालन किया, उसी तरह बाहर की सत्ता ग्रामों पर न चले , इसके लिए स्व-ग्रामी- धर्म को चलाना होगा । उसी को वेद भगवान ने “ग्राम धर्म” नाम दिया है ।

हमारे गांव में पुष्टि और आरोग्य हो, यह भाषा वेद बोलता है। पुष्टि में उत्पादन उद्योग आदि सब आ जाता है ।पुष्टि केवल शारीरिक नहीं,भौतिक और मानसिक अर्थ में भी हो। फिर वे जिस भगवान की प्रार्थना करते हैं , उसको नाम दिया गया है ,”पुरंदर ‘ शहरों को गिरानेवाला.

कुदरत के साथ जिसका संबंध टूटा, उसका जीवन के साथ संबंध टूटा, भले ही पैसे के साथ जुड़ा हो । इसलिए पुर – विदारण की बात से शहर वालों को सुख ही पहुंचने वाला है।

इस तरह दो प्रकार की वैदिक साधना करनी है, पुर – विदारण कार्य और ग्राम -पुष्टि कार्य। तब ग्रामीण जीवन आकर्षक बनेगा।

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