ड़ा अम्बेडकर का नया बौद्ध धर्म ‘नवयान

ब्रजेश सिंह

‘नवयान’ का इतिहास भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर (1891-1956) के इर्द गिर्द ही घूमता है, जो एक महान अर्थशास्त्री, कानूनविद, समाज सुधारक, स्वतंत्र भारत के संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन और लगभग 40 वर्षों तक निर्विवादित रूप से दलित आंदोलन के प्रणेता, एक मसीहा के रूप में जाने जाते रहे. उपाधियों के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं बल्कि यह कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि बाबा साहब से उपाधि जुड़कर स्वयं प्रसिद्ध हो जाती है.

बुद्ध धम्म, एक परिचय
तथागत गौतम बुद्ध ने लगभग 564 ई. पू. में आम लोगों की बोली में अपनी शिक्षाओं को जन जन तक पहुँचाया, प्रथम शिक्षाओं के प्रसार को ‘धम्मचक्क पवत्तन’ कहा गया. तथागत गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के दो शताब्दी बाद लगभग 300 ई. पू. महान अशोक ने बुद्ध धर्म को लंका व अन्य देशों में प्रसार किया. बुद्ध धर्म के प्रारंभिक रूप स्थविरवाद अथवा थेरवाद के अनुसार तथागत गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को ताड़ के पत्तों पर लिखा गया उन पत्तों की टोकरी को पिटक कहा गया, चूंकि बुद्ध की शिक्षाओं का तीन अलग अलग रूप से संग्रह किया गया जिन्हें ‘त्रिपिटक’ कहा गया; पहला विनय; दूसरा सुत्त और तीसरा अभिधम्म पिटक; यह First Turning of wheel था. केवल ‘अर्हत’ ही बुद्धत्व को प्राप्त होंगे ऐसा मानने वाले हीनयान Lesser Vehicle संप्रदाय के माने गए.

कालांतर में अन्य बौद्ध राजाओं ने धम्म को चीन, कोरिया, जापान और तिब्बत में प्रसार किया, कुषाण वंशीय शासक कनिष्क ने बैक्ट्रिया (आज के उत्तरी अफगानिस्तान से चाइना के तुर्किस्तान) तक फैलाया. धम्म का प्रसार बढा तो एक संप्रदाय जन्मा – महायान Great Vehicle, जो भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है, इस संप्रदाय के मानने वालों का विश्वास है कि कोई भी निर्वाण प्राप्त कर सकता है यह निस्वार्थ बुद्धत्व है, यह Second Turning of wheel था.

तिब्बती बौद्धों ने उत्तरी भारत के महायान में तंत्र विद्या को प्रवेश दिया जो लगभग सातवीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ जिसे वज्रयान कहा गया, यह Third Turning of wheel था. सातवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा लेने के लिए विदेशों तक से छात्र शिक्षा लेने आते थे उनमें हवेनसांग, फ़ाहयान आदि प्रमुख थे, इनका बुद्ध धम्म के प्रसार में अभूतपूर्व योगदान है. उसी कालखंड में 84 महासिद्ध हुए जिन्हें बुद्ध के शेरों की संज्ञा भी दी गयी, इनमें चमरिपा, पनहपा जैसे विद्वान सम्मिलित थे जिनके नाम पर तंजौर में क्रमशः ‘प्रज्ञोपाय विनिश्चय समुददय नामा’ और ‘चर्यादृष्टि अनुत्पन्न तत्व भावना’ ग्रंथ दर्ज हैं, जिन्हें अमुद्रित बताया गया है.

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‘नवयान’ शब्द का उद्भव
कहा जाता है कि बुद्ध धम्म का पश्चिमी देशों खासकर यूरोप, उत्तरी अमेरिका आदि में पहले ही प्रसार हो चुका था, अब तो वहाँ भी धम्म के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ रही है परंतु उन देशों के लोगों में भी पाश्चात्य संस्कृति के अनुसार प्रचलित बौद्ध धर्म की मान्यताओं में बदलाव की आवश्यकता महसूस हुई, जिसे भारत में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने भी महसूस किया यह Fourth Turning of wheel है, जिसे शब्द दिया गया ‘नवयान Navayan’ अथवा ‘लोकयान Lokayan’.

महाबोधि सोसाइटी कलकत्ता में सिंहली बौद्ध भिक्षु धर्मपाल अंगारिका के समय में ‘नवयान’ शब्द का जिक्र एक साइक्लोस्टायल मेगज़ीन के लिए किया है जो उस समय होनोलूलू में मिस्टर अर्नेस्ट हंट निकाला करते थे जिसमें धम्म से संबन्धित आर्टिकिल छपते थे और उनसे यह अपेक्षा की जाती थी कि तथागत गौतम बुद्ध की मूल शिक्षाओं को नए (नव) रूप में प्रसारित हों.
(Mahabodhi and United Buddhist World, Vol-40, P-392 published-1931)

बीसवीं शताब्दी में भारत में आजादी के बाद 14 अक्तुबर 1956 को डा. बी.आर. अंबेडकर और लगभग 4-5 लाख समर्थकों द्वारा नागपुर (महाराष्ट्र) में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली गयी, बाबा साहब ने इन्हें नव बौद्ध कहा तथा बौद्ध धर्म के नए रूप को नाम दिया ‘नवयान’. नवयान का अर्थ है – “नया मार्ग” या “शुद्ध वाहन”. इसके अनुयायी “आम्बेडकरवादी बौद्ध” होते हैं, हालांकि अपनी मृत्यु से तकरीबन दो माह पहले और दीक्षा लेने से एक सप्ताह पहले 6 अक्टूबर 1956 को नागपुर के एक होटल में डॉ. भीम राव आंबेडकर ने घोषणा की थी कि “मैं बुद्ध के सिद्धांतों को मानता हूं और उनका पालन करूंगा. मैं अपने लोगों को दोनों संप्रदाय हीनयान और महायान के विचारों से दूर रखूँगा. हमारा बौद्ध धर्म नया है ‘नवयान’. ”

बौद्ध बाबा साहब

“14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहब बी. आर. अंबेडकर (अध्यक्ष अनुसूचित जाति संघ) ने अपनी पत्नी श्रीमती सविता बाई और अपने हजारों अछूत समर्थकों के साथ नागपुर के एक विशेष समारोह में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है. अंबेडकर ने कहा कि वह और उनके समर्थक प्रचलित बौद्ध धर्म नही बल्कि एक नए बौद्ध धर्म ‘नवयान’ को मानेंगे”.
(Selected Works of Jawahar Lal Nehru, Vol-38, P-203)

बाद में भारत सरकार तथा अन्य राज्य सरकारों ने धर्म परवर्तित लोगों को “नव बौद्ध” माना. नवयान की मान्यताएं महायान, हीनयान और वज्रयान से कुछ मामलों में अलग हैं, इसमें बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतो के साथ विज्ञानवादी एवं तर्कशुद्ध/तर्कसंगत सिद्धांतों को ही लिया गया हैं. नवयान में जातिप्रथा, वर्णभेद, लिंगभेद, अंधविश्वास तथा कुरीतियों का कोई स्थान नहीं हैं परंतु सामाजिक, राजनैतिक समानता को प्रमुखता से जगह दी गयी है. बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने से एक दिन पूर्व किसी पत्रकार ने बाबा साहब से सवाल किया ‘आप जो बौद्ध धर्म अपनाने वाले है वो किस संप्रदाय का होगा, महायान या हीनयान होगा ?’ उत्तर में बाबा साहब ने उत्तर दिया कि ‘‘मेरा बौद्ध धर्म न तो महायान होगा और न ही हीनयान होगा, इन दोनों संप्रदायों में कुछ अंधविश्वासी बातें हैं इसलिए मेरा ये बौद्ध धर्म नवयान होगा. जिसमें बुद्ध के मूल सिद्धांत और केवल विवेकवादी सिद्धांत ही होंगे, कुरीति और अंधविश्वास नहीं होंगा. यह एक ‘शुद्ध बौद्ध धर्म’ होंगा.’’ 2011 के अनुसार, कुल भारतीय बौद्धों में अधिकांश यानी 87% हिस्सा नवयानी बौद्धों (नवबौद्ध) का हैं. अन्य अनुमानो के अनुसार भारत में नवयानी बौद्धों की आबादी 5 से 7 करोड़ से अधिक हैं.

बाबा साहब ने अछूतों द्वारा बौद्ध धर्म आत्मसात करने को सामाजिक रणनीति के तौर पर समर्थन किया था. बौद्ध धर्म सामाजिक समरसता और भक्ति के बजाय सम्मान पर आधारित था इसलिए वे इसकी तरफ आकर्षित थे. बौद्ध धर्म चुनने के पीछे उनके तर्क हैं – भारतीय इतिहास में बौद्ध धर्म ने जाति व्यवस्था को चुनौती दी थी, इसकी समावेशी प्रकृति, वैश्विक चरित्र और विभिन्न देशों में बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण. अपने धर्मांतरण के अवसर पर बाबा साहब ने बौद्ध धर्म के वृहद रूप के कारण देश के लिए महत्वपूर्ण बताया, सबसे महत्वपूर्ण इसमें भारतीयता की महक है.

 

( लेखक बृजेश सिंह )

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