सरकार की नीतियों से ख़ादी क्षेत्र कमजोर और रोज़गार के अवसर कम
अशोक कुमार शरण
सरकार की नीतियों से ख़ादी क्षेत्र कमजोर होता जा रहा है और रोज़गार के अवसर कम हो रहे हैं। इन समस्याओं पर चर्चा करके कार्यवाही की रूपरेखा तय करने के लिए ख़ादी मिशन की बड़ी बैठक सितम्बर में पवनार में होगी। कोरोना अवधि के लगभग दो वर्ष बाद १५-१६ अप्रैल, २०२२ को खादी मिशन के प्रमुख लोगो की एक बैठक राजस्थान खादी ग्रामोद्योग संस्था संघ में आयोजित की गयी। इसमें राजस्थान से श्री इंदु भूषण गोयल, जवाहर लाल सेठिया, अशोक शर्मा, रामदास शर्मा पंजाब से श्री सुदेश कुमार, बलबीर सिंह, हरियाणा से श्री बाली राम, सतीश मिश्र, दिल्ली से अशोक शरण, उत्तर प्रदेश से देवी प्रसाद शर्मा, ओम प्रकाश मिश्र, बंगाल से नित्यानंद चौधरी, बिहार से लोकेन्द्र भारतीय सहित कई लोगों ने भाग लिया।
इस सभा में मुख्य रूप से खादी रक्षा अभियान जिसे वर्ष 2010 में खादी मिशन द्वारा आरंभ किया गया था पर चर्चा हुई। इस अभियान के अंतर्गत खादी ग्रामोद्योग आयोग, भारत सरकार, संबंधित सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री को खादी की समस्यायों के समाधान के लिए कई ज्ञापन दिए गए थे। आज तक किसी भी समस्या का समाधान नहीं हुआ।
इस अभियान के अंतर्गत मुख्य रूप से खादी ग्रामोद्योग आयोग के खादी भवनों से संस्थाओं का बकाया, पूर्व का रिबेट, MMDA, MDA, OTI, OPR की बकाया राशि का भुगतान अविलंब किए जाने के संबंध में था। इसके अंतर्गत लगभग 900 करोड रुपए सरकार की ओर से बकाया है।
दूसरा विषय खादी संस्थाओं को 2400 करोड़ रुपए के ऋण से मुक्त किए जाने के संबंध में था। खादी संस्थाओं ने ऋण से तीन गुना अधिक राशि ब्याज के रूप में वापस कर दी है। इसके लिए सरकार ने एक कमेटी बनाई थी जिसकी सकारात्मक रिपोर्ट सरकार के सामने कई वर्षों से लंबित चली आ रही है।
तीसरा मुख्य विषय खादी संस्थाओं की जो संपत्ति खादी ग्रामोद्योग आयोग के पास उनके द्वारा लिए गए ऋण से अधिक बंधक रखी गई है, ऐसी संपत्ति संस्थाओं को वापस की जाए।
खादी ग्रामोद्योग आयोग की प्रासंगिकता अब कम
खादी ग्रामोद्योग आयोग की प्रासंगिकता अब कम हो गई है। इसमें करुणा और परोपकार की जगह पूंजीवादी व्यवस्था के तरह लाभ कमाने की प्रवृत्ति पनप गई है। आयोग ने दर तालिका (Cost Chart) के प्राण तत्व का बंधन हटा लिया है। अर्थात खादी की बिक्री जितने अधिक मूल्य पर हो, संस्थाएं उस मूल्य पर खादी बेचने के लिए स्वतंत्र है। यह परिपत्र खादी की मूल भावना के विपरीत है और गांधी जी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर कुठाराघात है।
खादी प्रमाण पत्र में विसंगतियां
खादी प्रमाण पत्र में काफी विसंगतियां आ गई है। आरंभ में प्रमाण पत्र समिति ऑटोनॉमस थी जिसमें खादी कमीशन का दखल नहीं होता था। पिछले वर्षों में यह समिति खादी ग्रामोद्योग आयोग के विभाग के रूप मे कार्य करने लगी है। तभी से ऐसी स्थिति का निर्माण हुआ है कि प्रमाण पत्र और खादी मार्क की आड़ में फर्जी खादी का चलन बढ़ता जा रहा है।
खादी ग्रामोद्योग पर जीएसटी
इसी प्रकार खादी ग्रामोद्योग को जीएसटी से पूर्णता मुक्त करने के लिए खादी संस्थाओं द्वारा अनुरोध किया गया था। सरकार ने कुछ उत्पादों पर जैसे खादी की गांधी टोपी, खादी सूत, राष्ट्रीय ध्वज को तो शामिल किया है परंतु खादी गारमेंट गुड्स आदि को सूची में शामिल नहीं किया है। इस विषय पर खादी संस्थाओं एवं उनके फेडरेशन द्वारा विभिन्न राज्य सरकारों के वित्त मंत्रियों एवं केंद्र सरकार के वित्त मंत्री को इस संबंध मे पत्र लिखे जाने का निर्णय लिया गया।
पूर्व में खादी संस्थाओं ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए अपने अपने जिले के जिलाधिकारी एवं खादी ग्रामोद्योग आयोग के राज्य कार्यालयों में शांतिपूर्ण धरना दिया एवं उन्हें इस सम्बन्ध में ज्ञापन सौंपा ।
खादी मिशन की एक सभा गांधी विनोबा की प्रयोग भूमि सेवाग्राम / पवनार में रखने का निर्णय लिया गया। सदस्यों के सुझाव पर विनोबा जयंती के समय एक सभा जिसमें देश भर की खादी संस्थाओं के लगभग 50 प्रतिनिधि भाग लेंगे 10-11 सितंबर, २०२२ को आयोजित की जायेगी। इसमें खादी संस्थाओं की सहमति से भारत सरकार और खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा खादी और खादी संस्थाओं विरोधी नीतियों के खिलाफ कार्यवाही करने की रूपरेखा तैयार की जायेगी।
खादी रक्षा अभियान एवं उपर्युक्त मुद्दों पर कार्यवाही हेतु एक कमिटी का गठन किया गया है।
- श्री राजिंदर चौहान – उत्तर प्रदेश
- श्री बाली राम – हरियाणा
- श्री मुकेश शर्मा – हरियाणा
- श्री अशोक शरण – दिल्ली
- श्री सी एस बत्रा – दिल्ली
- श्री जवाहर लाल सेठिया – राजस्थान
- श्री भगवती प्रसाद पारीक – राजस्थान
श्री जवाहर लाल सेठिया खादी मिशन के सह संयोजक ने विनोबा की पुस्तक खादी- हमारा बगावत का झंडा सभा में वितरित की जिसमें विनोबा के कई सन्दर्भ सभा में पढ़े गए जो आज भी प्रासंगिक है और चरखे की महिमा को दर्शाता है और आज भी खादी संस्थाओं के साथ साथ आम जन को प्रेरणा देता है।
नवयुग का संदेशवाहक चरखा
हमारा चरखा पुराना चरखा नहीं है जो मिलो के अभाव में नग्नता ढकने के लिए अनिवार्य रूप से चलता था। हमारा चरखा मिलो का पूरक भी नहीं है जो मिलो का स्थान मान्य करके उनके कारण पैदा हुई बेकारी की समस्या को राहत के रूप में हल करने का ढोंग करता है। वह है नवयुग का संदेशवाहक चरखा। ग्राम स्वराज्य और राम राज्य का प्रतिनिधि। हरिजन, परिजन भेद मिटाने वाला। सब धर्मों को एक परमेश्वर के प्रेम सूत्र में बांधने वाला। अब हम सोचकर चरखे को अपनाते हैं। उसके पीछे चिंतन है विचार है समाज की एक नई तस्वीर हमारे सामने है।
आज सारी दुनिया की निष्ठा यंत्र विद्या में है। वैज्ञानिक इसे यंत्र युग कहते हैं। पुराने लोग कलयुग कहते हैं। ऐसी स्थिति में जब हम खद्दर की बात करते हैं तो समझना चाहिए कि दुनिया में जो विचारधारा आज चल रही है उसके खिलाफ हमारा यह बगावत का झंडा है।
आज खादी में उत्पादन और रोजगार घट रहा है। संस्थाओं की आर्थिक स्थिति अधिकाधिक कठिन हो रही है। सरकारीकरण ने खादी का भी वानरीकरण किया है। लेकिन उससे भी गंभीर संकट यह है कि सर्वोदय में खादी के स्थान पर प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे हैं और खादी की शुद्धता पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है। सरकार जो कर रही है वह चिंता की बात है। उससे भी चिंता की बात यह है कि बचा – खुचा रोजगार और बिखरती संस्थाओं को बचाने के लिए समझौते हो रहे हैं। खादी को संकटों के चक्रव्यूह से निकालने के लिए संकल्प पूर्वक पुरुषार्थ करना होगा। सर्वोदय में खादी का स्थान अद्वितीय है और अद्वितीय ही रहेगा। यह विनोबा के शब्दों में हमारा बगावत का झंडा है।
हमारे सर्वोदय के विचार में खादी का जो स्थान है वह दूसरी किसी चीज को नहीं। यह ध्यान में रहे कि हम दूसरी चाहे हजार बातें करें लेकिन खद्दर में अगर कामयाब नहीं होते तो गांधीजी के विचारों का दावा छोड़ देते हैं और हार कबूल करते हैं। खद्दर में हार कबूल करें तो दूसरी सेवा भी हम छोड़ दें ऐसा नहीं है। वह तो हम करें ही। लेकिन वह सारी सेवा हमारे विचारों की दृष्टि से गौण हो जाती है इसमें मुझे तनिक भी संदेह नहीं है। हम सर्वोदय विचार वाले जितने भी नए-नए विचार सूझे उनके प्रयोग जरूर करें। लेकिन यह कभी ना भूले कि हमारा मूलाधार चरखा ही है। अगर हम उसे खोते हैं तो अहिंसा का रहस्य भूल जाते हैं। फिर हिंदुस्तान में अहिंसा लाने में हम असमर्थ सिद्ध होंगे।
9 नवंबर 1981 को खादी सम्मेलन में विनोबा जी ने खादी मिशन बनाने की बात कही। खादी सेवकों को उन्होंने कहा निर्भय, निष्पक्ष बनो और राजनीति में मत पड़ो । मैंने दो काम बताए हैं, आप लोग आचार्य कुल में शामिल हो जाओ और शांति सेना खड़ी करो। मैंने खादी कमीशन को सुझाया था कि वह खादी मिशन बने। वह जब बनेगा तब बनेगा। लेकिन आप सब को सम्मिलित खादी मिशन बनाना चाहिए।
असरकारी खादी
काका साहब कालेलकर ने मंत्र दिया था अ- सरकारी, असर- कारी। उस दृष्टि से काम करो। विनोबा जी की इसी बात को आधार बनाकर खादी संस्थाएं लगातार कार्य कर रही है, परन्तु उनका मूल तत्व अ-सरकारी अर्थात खादी संस्थाएं सरकार पर निर्भरता छोड़े एक दो संस्थाओं को छोड़ कर पिछले चालीस वर्षों में पूर्ण नहीं हो पाया। खादी संस्थाओं की अपनी मज़बूरी रही है। परन्तु खादी ग्रामोद्योग आयोग की भी कभी ऐसी मंशा नहीं रही कि खादी संस्थाएं उसके चंगुल से मुक्त हो जाये, क्योंकि तब उसका अस्तित्व भी संकट में पड़ जायेगा।
विनोबा के इसी दृष्टिकोण को आधार मानते हुए सभा ने एक बार पुन: अ- सरकारी खादी को अपनाने का संकल्प लिया। खादी के साथ साथ सत्य, अहिंसा, शांति सेना के माध्यम से देश में शांति और सद्भावना तथा ग्राम स्वावलंबन को सुदृढ़ करने का प्रयास किया जायेगा ताकि गांधी विनोबा की परंपरा को जीवित रखा जा सके।
लेखक अशोक कुमार शरण खादी ग्रामोद्योग आयोग के पूर्व निदेशक और गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान के ट्रस्टी हैं।