UP Election 2022: यूपी चुनाव में दलित पिछड़ा गठबंधन
UP Election 2022: स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके गुट के मंत्रियों और विधायकों का सामूहिक दल बदल ने चुनावी माहौल को बिल्कुल बदल दिया है।
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश का चुनाव (UP Election 2022 ) भारत के भविष्य का सेमीफाइनल माना जा रहा है। एक सेमीफाइनल भाजपा बंगाल में हार चुकी है और दूसरे की प्रतीक्षा है। स्वामी प्रसाद मौर्य और उनके गुट के मंत्रियों और विधायकों का सामूहिक दल बदल ने चुनावी माहौल को बिल्कुल बदल दिया है। जैसे 1977 के चुनाव में जगजीवन राम जी और उनके साथियों द्वारा कांग्रेस का साथ छोड़ना। अब उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत बहुत कठिन दिख रही है। लेकिन इसका एक उलटा असर अखिलेश यादव जी पर पड़ता दिख रहा है। वे घोषणा कर रहे हैं कि अब किसी अन्य को प्रवेश नहीं दिया जायेगा (सिर्फ एक को छोड़कर?)। वे यह भी घोषणा कर रहे हैं कि उनके कार्यकर्ता फिजिकल मुकाबला करेंगे। यानि कि यादवी डंडा चलेगा।
सबसे बुरी बात यह है कि चन्द्रशेखर आजाद( रावण) (Chandrashekhar Azad) के साथ समझौता करने के बदले अपमानजनक व्यवहार किया गया है। यह एक ऐतिहासिक गलती है। आज जब मायावती जी अज्ञात कारणों से डरी हुई हैं और भाजपा के साथ मेली कुस्ती लड़ रही हैं तब चन्द्रशेखर का भविष्य उज्जवल दीखता है। आज उसकी ताकत भले ही कम हो, पर वह भविष्य में उत्तर प्रदेश के दलितों का नेता बनने जा रहा है। यदि अखिलेश उसके साथ एक सम्मानजनक समझौता कर लेते हैं तो भविष्य में लंबे समय तक दलित पिछड़ा सहयोग भाजपा को चुनौती देता रहेगा। लेकिन अखिलेश छोटे छोटे दलों से इतना गठजोड़ बना चुके हैं कि चन्द्रशेखर केलिए सीट छोड़ना कठिन है। उनके लिए स्वामी प्रसाद मौर्य को महत्व देना जरूरी है। लेकिन मौर्य चन्द्रशेखर का विकल्प नहीं हो सकते हैं।
वैसे भी दलित , पिछडों खासकर यादवों से डरे रहते हैं। यदि चन्द्रशेखर असफल रहते हैं तो तो अगले चुनाव में दलित फिर भाजपा की ओर जा सकते हैं। चन्द्रशेखर ने कुछ दिन और इंतजार करने की बात कही है, क्योंकि वर्तमान चुनाव में समाजवादी सबसे आगे हैं। लेकिन यदि दोनों में समझौता नहीं होता है तो एक विकल्प कांग्रेस से समझौता करने का भी है। दलितों के लिए कांग्रेस से गठजोड़ ज्यादा सहज होगा। वैसे भी दलित लंबे समय तक कांग्रेस के विश्वसनीय सहयोगी रहे हैं। लेकिन यह गठजोड़ जितना मजबूत होगा उतना ही भाजपा को फायदा और समाजवादियों को नुकसान पहुंचायेगा। इसलिए अच्छा यही है कि अखिलेश अपनी सहयोगी पार्टियों को समझा बुझाकर चन्द्रशेखर आजाद से एक सम्मानजनक समझौता कर लें।।।