अयोध्या में बुझे दीयों का तेल अब घर ले जा रहे लोग

तेल की बढ़ती कीमतों से हलकान लोग

अयोध्या में बुझे दीयों का तेल अब निकाल रहे हैं लोग. अयोध्या में 9.51 लाख दीये जलाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की सीएम योगी की सनक भले ही पूरी हो गई हो, लेकिन आम आदमी का दर्द इसके बाद जिस तरह से छलक कर बाहर आया, उससे साफ है कि महंगाई की मार ने देशवासियों को किस कदर हलकान परेशान कर रखा है. हालात की बदतर होने का अंदाजा महज इस नजारे को देखकर ही लगाया जा सकता है, जो अयोध्या में दीयों के बुझने के बाद दिखा. आसपास के गरीब अयोध्या में उन्हीं बुझे दीयों का तेल बटोरकर अपने अपने घर की ओर भागने लगे… जानिए क्यों?

मीडिया स्वराज डेस्क

अयोध्या में राम की पैड़ी पर साढ़े नौ लाख दीये जलाने का वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के बाद आसपास की गलियों से बिना नंबर के गरीब लोग निकले और बुझे दीयों का तेल खाना बनाने के लिए अपने अपने डिब्बे बोतल भरकर ले गए. उनका कहना है कि तेल करीब 200 रुपये हो गया है, यहां मुफ्त में मिल गया इसलिए आ गए. इनमें होड़ लगी थी कि इससे पहले कि इन्हें कोई आकर पकड़ ले, जल्दी जल्दी वे इसे भर लें.

एनडीटीवी के वरिष्ठ संवाददाता कमाल खान की एक रिपोर्ट में अयोध्या में राम की पैड़ी पर यह काला सच देखने को मिला. वहां दीयों से बचा तेल बटोरकर अपने बर्तन में ले जाती एक महिला ने बताया कि ये तेल वे खाने के लिए ले जा रही हैं. उनका कहना था कि वह मजदूरी करती थीं लेकिन काफी समय से उनके पास काम नहीं है. गुजर बसर के लिए भी उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. बाजार में तेल 200 रुपये लीटर मिल रहा है. इतना महंगा तेल खरीद पाना उनके लिए आसान नहीं. यही वजह है कि वे इन बुझे दीयों का तेल निकालकर घर ले जा रही हैं ताकि इसे साफ करके खाना पका सकें.

वहीं, तेल ले जाते एक अन्य युवक ने बताया कि इतनी महंगाई में क्या करेंगे? इतने सारे दीयों का तेल निकालकर उसे हम अपने खाने के लिए उपयोग करने के लिए ले जा रहे हैं. इनती महंगाई में और क्या करेंगे? जब तेल 200 रुपये लीटर बिक रहा हो तो खाने पीने के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ तो करना ही होगा न!

जब उनसे पूछा गया कि यह दीयों का तेल खाने के लिए भला कैसे उपयोग में लाया जा सकेगा? तो उनका जवाब था, सबसे पहले इसे गर्म करेंगे फिर सरसों तेल को छानकर निकाल लें और फिर खाने में इसका प्रयोग करेंगे.

यकीनन यही सच है. हमारे देश का. हम सभी की जिंदगी का. इस महंगाई में लंबे समय से बेरोजगार हो चुके देश के कई नौजवान और लोग त्यौहारों पर पुआ पकवान पकाकर क्या खा पाएंगे, जबकि रोजमर्रा की जिंदगी में भी वे जरूरत की चीजें खा नहीं पा रहे? दुख की बात यह है कि इस महंगाई में उनसे यह भी कहने की किसी की हिम्मत नहीं हो पाई होगी कि यह तेल उनके स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह होगा. सचमुच, खाने को ही न मिल पाए अगर तो उससे कहीं बेहतर तो यही होगा न कि जला हुआ तेल ही खा लिया जाए. भूख से मरने के बजाय लोग बीमार होकर मरना ही पसंद करेंगे.

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पिछले दिनों पेट्रोल डीजल के दाम कुछ कम करने के बाद अब सरकार ने खाद्य तेलों की कीमतों में भी 4 से लेकर 20 रुपये तक की कटौती की है, लेकिन इसके बावजूद इनकी कीमतों को हर तबके की पहुंच में नहीं कहा जा सकता. ऐसे में जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार दिखावे के लिए साढ़े पांच लाख दीये जलाने का मिशन चलाएं, वह भी उस सरसों के ​तेल से, जिसकी कीमत आप और हम खाने के लिए भी अफोर्ड न कर पा रहे हों, तो गरीब तबके के लोगों में उन दीयों में बचा तेल जमाकर घर ले जाने की होड़ लगना कुछ अजीब सा नहीं लगता. बल्कि यही तो चेहरा है हमारे देश का. यह आइना है, जो हमें दिखा रहा है कि पूरे देश में महंगाई की मार झेल रहे लोगों के हालात किस कदर दयनीय हो चुके हैं!

पिछले 5 साल से लगातार योगी जी ज्यादा से ज्यादा दीये जलवाकर गिनीज बुक में नाम दर्ज करवाने में जुटी है. इस साल भी उन्होंने इस परंपरा को कायम रखते हुए 9.5 लाख दीये जलाने का नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की ​कोशिश की.

सच है, योगी जी ने कोई मेहनत से तो पैसे कमाए नहीं थे. सरकारी खजाने से लाखों दीये जलवा दिया. दिखावा करने के लिए. पिछले 5 साल से लगातार योगी जी ज्यादा से ज्यादा दीये जलवाकर गिनीज बुक में नाम दर्ज करवाने में जुटी है. इस साल भी उन्होंने इस परंपरा को कायम रखते हुए 9.5 लाख दीये जलाने का नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की ​कोशिश की.

हालांकि लोगों का कहना है कि योगी जी को न तो इस महंगाई का आभास है और न ही सरसों के तेल की कीमतों का अंदाजा, इसलिए सरसों के तेल के 9.51 लाख दीये जलवा दिये. लेकिन गरीब इंसान को इसकी कीमत का अंदाजा था इसलिए बुझे दीयों के तेल बटोरकर वे उसे अपने अपने घर लेकर जाने लगे ताकि घर की रसोई का खर्च कुछ कम कर सकें.

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बहरहाल, कमाल खान के शब्दों में आज के हालातों की सच्चाई झलकती है. कमाल अपनी रिपोर्ट को इन शब्दों में पूरा करते हैं, कहते हैं अंधेरे के बाद रौशनी जरूर आती है. लेकिन यह रौशनी के बाद का अंधेरा है. उम्मीद है इस अंधेरे के बाद रौशनी जरूर आएगी. हम भी यही उम्मीद करते हैं कि इस अंधेरे के बाद रौशनी आएगी. बस देखना यह है कि उम्मीद का यह सूरज कब निकलता है, जिसकी रौशनी से हर घर दीयों की रौशनी के बगैर भी जगमग नजर आ सके!!

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