मीडिया कार्यशाला : अंतिम दिन याद किया गया 1858 का चार्टर

मीडिया कार्यशाला के अंतिम दिन याद किया गया 1858 का चार्टर

26 अक्टूबर से 1 नवम्बर, 2021 तक चलने वाले मीडिया एवं पत्रकारिता नि:शुल्क कार्यशाला का आज, सोमवार को अंतिम दिन था. अंतिम दिन पर इलाहाबाद वासियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण 1858 के चार्टर को याद कर उस पर चर्चा की गई.

मीडिया स्वराज डेस्क

सोमवार को 26 अक्टूबर से 1 नवम्बर, 2021 तक चलने वाले मीडिया एवं पत्रकारिता नि:शुल्क कार्यशाला का अंतिम दिन था. इस मौके पर इलाहाबाद वासियों के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले 1 नवम्बर का दिन को विशेष रूप से याद किया गया.

बता दें कि भारतवासियों और विशेषरूप से इलाहाबाद वासियों के लिए 1 नवंबर का दिन यादगार (दुःखदायी यादगार) है। 1858 में प्रयाग की धरती पर इसी दिन अर्थात 1 नवम्बर को इलाहाबाद दरबार में लॉर्ड कैनिंग के द्वारा 1858 का चार्टर पढ़ा गया। जिसके तहत कहा गया था कि अब ईस्ट इण्डिया कम्पनी की जगह भारत वर्ष पर ब्रिटिश क्राउन का राज होगा और वायसराय ब्रिटिश संसद के प्रतिनिधि के रूप में शासन का काम देखेंगे।

1857 की क्रान्ति के बाद और जब विशेष रूप से 1857 में इलाहाबाद स्थित खुसरो बाग़ से यह ऐलान की भारत कम्पनी राज से आज़ाद है, चाहे यह आज़ादी 10 दिनों की ही हो, कंपनीराज को एहसास हो गया था कि भारत पर एक कम्पनी के रूप में शासन करना बहुत ही मुश्किल है।

इसी कारण सीधे तौर पर ब्रिटिश साम्राज्य को शासन करने के लिए तैयार किया जाय, जबकि सत्ता को वास्तविक रूप से चलाने का काम कंपनी के मालिक व वफ़ादार ही कर रहे थे। भारतवासियों को यह एहसास दिलाने का काम किया गया कि आप चाहे जितना एकजुट हो लो राज तो हम ही करेंगे।

शायद इसीलिए 1858 का चार्टर इलाहाबाद की धरती पर वायसराय के द्वारा पढ़ा गया। पत्रकारिता की कार्यशाला के अन्तिम दिन समापन समारोह में यह बातें स्वराज विद्यापीठ के कुलगुरु प्रो. रमा चरण त्रिपाठी ने रखीं।

प्रतिभागियों से बात करते हुए स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि एक कम्पनी राज के खिलाफ भारतवासियों को एकजुट होकर क्रान्ति करने में एड़ीचोटी का जोर लगाना पड़ा और उसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य का आधिपत्य सीधे तौर पर भारत वर्ष पर स्थापित हो गया।

हम एक लम्बी गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुए परन्तु आज भी हमें चारों तरफ गुलामी का राज्य दिखायी पड़ रहा है। आज हम मानसिक व आर्थिक रूप से अनेकों बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के गुलाम बने हुए हैं।

एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने देश को एक लम्बे समय तक गुलाम बना रखा तो आज जब देश में अनेकों बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है तो देश की क्या स्थिति क्या होगी यह विचारणीय प्रश्न है।

पत्रकारिता के संदर्भ में और आज़ादी की लड़ाई में गाँधी जी का क्या योगदान रहा है यह सर्वविदित है। उन्होंने सिर्फ अंग्रेजी राज के खिलाफ़ ही लड़ाई नहीं लड़ी। उन्होंने इसके साथ बड़े बड़े कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ़ भी लड़ाई का बिगुल बजाया; चाहे ये घराने देशी रहे हों या विदेशी।

आज के दौर में गाँधी के विचारों के साथ ही साथ उनके स्मारकों को भी बहुराष्ट्रीय निगमों व कॉरपोरेट घरानों को सौंपने की तैयारी चल रही है। कार्यशाला के समापन के अवसर पर सभी प्रतिभागियों और प्रबुद्ध जनों ने मिलकर कहा कि आज के इस अवसर पर हम सभी को मिलकर यह आवाज़ उठाने की जरूरत है कि गाँधी को जनमानस में रहने दो, उसे कॉरपोरेट सत्ता के हवाले मत करो।

आज हम यह मांग करते हैं कि गाँधी को व्यापार की वस्तु मत बनाओ। उनके विचारों को आज आत्मसात करने की सबसे ज़्यादा जरूरत है। सिर्फ़ साबरमती आश्रम ही नहीं बल्कि गाँधी के सभी स्मारकों के साथ ही साथ देश के किसी भी स्मारक को कॉरपोरेट सत्ता के हवाले करने का हम विरोध करते हैं।

समझ बढ़ानी होगी कि हम इस सुन्दर धरती के मालिक या विनाशक न होकर, इस वसुधा परिवार (वसुधैव कुटुम्ब) के सदस्य हैं।

प्रतिभागियों ने नये समाज रचना व स्वराज की दिशा में चलने के लिए सामूहिक रूप से शपथ ली-

हमें जियो और जीने दो के जीवन सूत्र को अपनाने की जरूरत है इसके लिए हम सभी को अपनी आवश्यकताओं को कम करना होगा। हमें यह समझ बढ़ानी होगी कि हम इस सुन्दर धरती के मालिक या विनाशक न होकर, इस वसुधा परिवार (वसुधैव कुटुम्ब) के सदस्य हैं।

सभी जीवों के जीवन जीने के अधिकार का सम्मान करना होगा। हमारे प्रत्येक काम का असर इंसान सहित दूसरे जीवों पर पड़ता है। सभी को भरपूर जीवन जीने के लिए पर्यावरण के साथ सामंजस्य बैठाना पड़ता है। इसके लिए आवश्यक है सादगी भरा जीवन।

इसके लिए हम धरती के स्वास्थ्य की देखभाल करने और उसके द्वारा दिये गये उपहारों को समान रूप से साझा करने का संकल्प लेते हैं। इसके लिए आवश्यक है कारपोरेट सोच का त्याग, जो जिसके केन्द्र में है लालच और यह समाज में गैर बराबरी, गरीबी, भुखमरी, जल, जंगल जमीन, चारागाह, बीज और जैव विविधता के अन्धाधुन्ध दोहन को जन्म देती है। हमे इस जहरीली सोच को समाप्त करना होगा।

हम धरती के स्वास्थ्य की देखभाल करने और उसके द्वारा दिये गये उपहारों को समान रूप से साझा करने का संकल्प लेते हैं। इसके लिए आवश्यक है कारपोरेट सोच का त्याग, जो जिसके केन्द्र में है लालच और यह समाज में गैर बराबरी, गरीबी, भुखमरी, जल, जंगल जमीन, चारागाह, बीज और जैव विविधता के अन्धाधुन्ध दोहन को जन्म देती है। हमे इस जहरीली सोच को समाप्त करना होगा।

आज के अवसर पर-

हम जटिलता और बेईमानी की बजाय सच्ची और सरल खाद्य प्रणाली विकसित करने का संकल्प लेते हैं।

हम धरती और इंसान के स्वाथ्य को नष्ट करने और उसमें जहर घोलने वाली व्यवस्था को बदलकर देखभाल करने वाली एवं स्वास्थ्य और पोषण देने वाली व्यवस्था का नवसृजन करने का संकल्प लेते हैं।

हम धरती के स्वास्थ्य की रक्षा करने और उसके द्वारा दिये जाने वाले उपहारों को साझा करने का संकल्प लेते हैं।

हम प्रतियोगिता के भाव को त्यागकर सहकार के भाव को अपनाने का संकल्प करते हैं।

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इसके पहले आज के प्रथम सत्र में पत्रकारिता में महिलाओं की चुनौती के परिप्रेक्ष में चर्चा की गयी। जिसमें राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय की प्रो. साधना श्रीवास्तव ने बताया कि गांव समाज को बदलने के लिए पुरूषों को सामने आकर महिलाओं को साथ लेकर चलना चाहिए।

महिला और पुरूष समाज की एक कड़ी है। जो प्राचीन समय से चल रही कुछ पूर्वाग्राही धारणओं से बंध चुके हैं। जिसके कारण महिला और पुरूष में विभेद की स्थिति बनी है। वर्तमान स्थिति में इस विषय पर नये-नये विचार सामने आ रहे हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि वैश्विकरण महिलाओं को एक सकारात्मक दिशा दे रहा है तथा मीडिया पत्रकारिता के माध्यम से समाज की पूर्वाग्राही धारणाएं दूर हो रही हैं। उदाहरण स्वरूप उन्होंने बाल विवाह जैसे मुद्दे सामने लाए।

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कार्यशाला के संचालक डा. अतुल मिश्र ने बताया कि प्राचीन समय से चल रही पूर्वाग्राही धारणएं महिलाओं में निर्णय लेने की क्षमता का एक सीमित दायरे तय कर दिया। जिसके कारण कहीं न कहीं ये समाज के कुछ बिन्दुओं पर सीमित हो गयी। उदाहरण स्वरूप उन्होंने बताया कि आजमगढ और जौनपुर जैसे जिलों में महिलाओं में निर्णय लेने की क्षमता अधिक होने के कारण लिंगानुपात की एक बेहतर स्थिति देखी गयी।

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