ग्रामीण पत्रकारिता का व्यावहारिक पक्ष, चौथे दिन रहा चर्चा का विषय
मीडिया एवं पत्रकारिता निःशुल्क कार्यशाला का चौथा दिन
ग्रामीण पत्रकारिता का व्यावहारिक पक्ष. प्रयागराज में 29 अक्टूबर को स्वराज विद्यापीठ में आयोजित मीडिया एवं पत्रकारिता के नि:शुल्क कार्यशाला के चौथे दिन ग्रामीण पत्रकारिता के व्यावहारिक पक्ष के पर चर्चा की गयी.
मीडिया स्वराज डेस्क
ग्रामीण पत्रकारिता का व्यावहारिक पक्ष. स्वराज विद्यापीठ में आयोजित मीडिया एवं पत्रकारिता निःशुल्क कार्यशाला के चौथे दिन ग्रामीण पत्रकारिता के व्यावहारिक पक्ष के पर चर्चा की गयी.
ग्रामीण पत्रकारिता का व्यावहारिक पक्ष की आज की इस चर्चा में स्थानीय पत्रकार सूबेदार सिंह ने ग्रामीण पत्रकारिता के व्यावहारिक पक्ष को रखते हुए कार्यशाला में उपस्थित प्रतिभागियों को बताया कि आज के समय में प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया और वेब चैनल कैसे खबरों को हमारे बीच प्रस्तुत करते हैं तथा इनके ढांचे किस तरह काम करते हैं.
ग्रामीण पत्रकारिता का व्यावहारिक पक्ष गांव की पत्रकारिता जड़ से जुड़ी होती है तथा यथार्थता का स्वरूप होती है, जिसके कारण इसका प्रत्यक्ष स्वरूप दिखता है.
ग्रामीण पत्रकारिता में पत्रकारों की आमदनी में कमी होने के कारण वो इसके साथ-साथ अन्य व्यवसाय भी करने लगते हैं जिसके कारण पत्रकारिता का दायरा सीमित हो जाता है. इसलिए हमें उस स्थिति में पत्रकारिता से जुड़ना चाहिए, जब उसमें हमारी रूचि हो, जिससे हम ग्रामीण संस्कृति तथा लोगों से जुड़ सकें और पक्षपात न करके खबरों की सत्यता को दर्शा सकें.
दूसरे चरण में वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक डा. धनन्जय चोपड़ा ने प्रतिभागियों को बताया कि हमें वर्तमान में घटती हुई घटनाओं को लिखने तथा समझने के लिए एक लय की आवश्यकता होती है, जो हमारी चेतना शक्ति से उत्पन्न होती है. हमें लोगों के शब्द विचारों के मुख्य स्वरूप को समझना चाहिए.
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उदाहरणस्वरूप मीडिया और नक्सलाइड़ के परिप्रेक्ष्य में आदिवासी समाज की एक घटना को दर्शाया गया, जिसमें उन्होंने बताया कि लोग जीवन को कई विरोधों के साथ जीते हैं. जिसके साझा सच को हमें पकड़ना चाहिए, जिसको लोग अपने साथ लेकर चलते हैं. कार्यशाला का संचालन डा. अतुल मिश्रा ने किया.
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