भारत का रक्षा बजट और सेना की ज़रूरतें
भारतीय सेना इस समय दोतरफ़ा सीमाओं पर ख़तरे देख रही है, क्या संसद में पेश भारत का रक्षा बजट 2021-22 सेना की ज़रूरतों को पूरा करता है. अनुपम तिवारी का विश्लेषण.
वायु सेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने एक प्रेस वार्ता में बताया कि भारतीय सेनाएं इस समय दो तरफा युद्ध की संभावना के अनुरूप खुद को तैयार कर रही हैं। पाकिस्तान और चीन दोनों से हमारे संबंध लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं। सेना तैयारी कर रही है और सरकार भी बयानों में तो सेना के साथ खड़ी दिखती ही है। किंतु हाल ही में पेश आम बजट कुछ और ही कहानी कहता है।
भारत का रक्षा बजट : ऊंट के मुंह मे जीरा ?
4.78 लाख करोड़ रुपये, यह वह राशि है जो इस साल भारत के रक्षा बजट में भारत सरकार ने तीनों सेनाओं के लिए चिन्हित की है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकार ने सेनाओं के आधुनिकीकरण की चिंता जताते हुए इस मद में 1.35 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया है और स्वयं रक्षा मंत्री ने इस बाबत वित्त मंत्री की प्रसंशा करते हुए इसे 19 प्रतिशत बढ़ाने के लिए अपनी सरकार की पीठ ठोंकी है। किंतु जानकार कहते हैं कि सीमा पर दो तरफा खतरों और देश की आंतरिक समस्याओं के भार को देखते हुए यह राशि ऊंट के मुह में जीरा ही है।
संसद की स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार भारत के रक्षा बजट और वास्तविक जरूरतों में बड़ा अंतर है। कुल रेवेन्यू और कैपिटल का अनुपात सिर्फ थल सेना में ही आज 83:17 है जो कि आदर्श स्थिति में कम से कम 60:40 होना चाहिए था। रेवेन्यू के अंतर्गत वह समस्त राशि आती है जो सेना को खर्च करनी होती है, इसमे सैनिकों के वेतन और पेंशन भी शामिल हैं।
वेतन – पेंशन और सेना का आधुनिकीकरण
भारत के रक्षा बजट बजट का बड़ा हिस्सा वेतन और पेंशन में निकल जाने के बाद सेना के पास नवीनीकरण के लिए मात्र 100 में से 17 रुपये ही रह जाते हैं। अब इतने कम बजट से आप कैसे 2 तरफा युद्ध के लिए तैयार हो सकते हैं? यह शायद सरकार को सोचना चाहिए क्योंकि वह खुद कहते नही थकते कि यह 1962 का भारत नहीं है। हकीकत यह है कि रक्षा बजट की अनुपातिक स्थिति आज भी 1962 के आंकड़ों के आसपास ही टिकी हुई है।
इस तरह से देखें तो भारत की सेनाओं को आज की परिस्थितियों में लड़ने के लिए अपने सैनिकों की संख्या में कम से कम 50 फीसदी की कटौती करनी पड़ेगी, जो कि संभव नही है। आज हालात ऐसे हैं कि हमारा पेंशन बजट ही पाकिस्तान के कुल रक्षा बजट से ज्यादा हो जाता है।
चीन जैसे विपक्षी के सामने कहाँ खड़े हैं हम?
अब यदि पेंशन और वेतन में होने वाले व्यय को कम नही कर सकते तो रास्ता यही बचता है कि आधुनिकीकरण को तेज रफ्तार दी जाए। हम रक्षा क्षेत्र में आधुनिकीकरण की बात तो करते हैं किंतु कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि भारतीय नौसेना ने पिछले 15 साल में सिर्फ 2 सबमरीन खरीदी है। अब अपने ताजा दुश्मन चीन से तुलना करेंगे तो पाएंगे कि उसने इतनी सबमरीन पिछले एक साल में ही अपनी नेवी को उपलब्ध करा दी हैं।
भारत के नए ब्रह्मास्त्र कहे जा रहे राफेल विमानों का सौदा काफी चर्चा में रहा है। 116 विमानों की खरीद को 36 विमानों तक सीमित करके सरकार ने विपक्ष को जरूर चुप करा दिया किंतु जब चीन की ओर से खतरा अपने दरवाजे तक आ गया तो अब जा कर बाकी विमानों की कमी को स्वनिर्मित तेजस की खरीद से पूरा करने की बात शुरू हुई है। तेजस की काबिलियत पर कोई शक नही है किंतु वह अतिविकसित कहे जा रहे चीनी J20 लड़ाकू विमानों के समक्ष कहाँ टिकता है यह वक़्त ही बताएगा।
बदल रहे हैं युद्ध के तरीके
यह एक कड़वा सच है कि वर्तमान में हमारे पास जो भी संसाधन हैं वह सिर्फ एक फ्रंट के युद्ध के लिए हैं और अगर वह लंबा खिंच गया, जैसा कि लदाख में चीन के रवैये को देखते हुए संभावित है, तो स्थिति विकराल हो जाएगी। तीनों सेनाओं के समक्ष संसाधनों की कमी और उस पर सेना की आधुनिक जरूरतें बहुत बड़ी चुनौती हैं। अपाचे या चिनूक हेलीकॉप्टर हों चाहे मालवाहक विमानों के बेड़े, दो तरफा युद्ध की स्थिति के मुताबिक इनकी संख्या काफी कम है।
आधुनिक ड्रोन्स की हमारे पास कितनी उपलब्धता है? याद रहे अब लड़ाई जब भी होगी वह आधुनिक परिवेश में होगी। आंख दिखाते, भुजाएं फड़काते फौजी, लड़ाकू विमानों से उतरते जांबाज पायलट बीते जमाने की बात भले न हो पाएं, इनकी उपयोगिता सीमित जरूर हो जाएगी। हाल ही में अज़रबैजान और आर्मीनिया के युद्ध मे और सऊदी अरब के तेल भंडारों पर हमले के समय जिस तरह व्यापक तौर पर ड्रोन्स का उपयोग किया गया वह भविष्य के युद्धों की एक झांकी तो दिखाता ही है।
हालांकि स्थिति पहले से सुधरी है। आर्मी ने व्यापक तौर पर तो एयर फोर्स ने सीमित तौर पर ड्रोन्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया है किंतु आवश्यकता इतने से पूरी नही होती। भारतीय वायु सेना अभी भी अत्याधुनिक स्वचालित विमानों से महरूम हैं जिनको दूर बैठ कर ऑपरेट किया जाए और बिना पायलट के दुश्मन के ठिकानों को नष्ट किया जा सके।
संसाधनों की कमी को देखते हुए बेहतर प्रबंधन की जरूरत
दरअसल सेना और सरकार दोनों एक दूसरे को अपनी जरूरतें और अपेक्षाएं शायद समझा नही पाते या फिर अनजान कारणों से समझना नही चाहते। अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस जैसी ताकतवर मिसाइल भले ही हमारी आयुध भंडार का हिस्सा हों किंतु इनका सामरिक इस्तेमाल और भी बेहतर किया जा सकता है। ठीक उस तरह जैसे चीन ने हाल ही में किया है, सामरिक महत्व के ठिकानों पर मिसाइल तैनात कर के।
ब्रह्मोस के निर्यात की प्रक्रिया दिवंगत रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के समय से लंबित हैं। ‘पृथ्वी’ के निर्यात प्रक्रिया का भी यही हाल है। 200 किमी के आसपास मारक क्षमता वाली इस मिसाइल के अलावा भी हमारे पास कई मिसाइल हैं। और इतनी दूर तक मार करने के लिए हम बेहतर आर्टिलरी का उपयोग भी तो कर सकते हैं। यह नही है कि अच्छी आर्टिलरी और मिसाइल एक दूसरे का स्थान ले लेंगी, जरूरत है बेहतर प्रबंधन की।
हथियारों के निर्यात और आत्मनिर्भरता पर जोर
वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए ऐसा नही लगता कि हमारे आर्थिक हालात जल्द ही सुधरने वाले हैं। तो आगे रास्ता क्या है? यही कि प्रस्तावित रक्षा सौदों में तेजी लाई जाए। हथियारों के निर्यात के लिए जल्द से जल्द कदम उठाए जाएं और यह प्रक्रिया निर्बाध चले इसके इंतजाम किए जाएं।
5 वी पीढ़ी के एडवांस मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट जिसको बनाने का प्रस्ताव HAL ने दिया है उस पर समयबद्ध तरीके से काम हो उसका हाल भी ‘तेजस’ जैसा न हो, जिसको तैयार हो कर सेना में शामिल होने में कई दशक लग गए।
आवश्यकता पड़ने पर निजी क्षेत्र की सेवाएं ली जाएं। हथियारों, विमानों की खरीद बिक्री के इतर उपकरणों के मेंटेनेंस और लॉजिस्टिक जैसे क्षेत्र जिनमे सेना का बहुत सारा संसाधन और श्रम व्यय होते हैं, उनमें निजी क्षेत्र का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है।
चुनौतियां हैं, मगर विश्वास भी है
समय चुनौतीपूर्ण है किंतु ऐसी ही चुनौतियां इतिहास में सभ्यताओं को नई तेजी और नया विश्वास देती रही हैं। हम भारत के लोग कम से कम आशा तो कर ही सकते हैं। पेंशन और वेतन में कटौती, रिटायरमेंट की आयु में बढ़ोत्तरी आदि सेना के मनोबल को अवश्य प्रभावित करेंगे इसलिए अलग हट कर सोचना पड़ेगा. साथ ही सरकार और सेना दोनों को एक ही लकीर पर काम करना पड़ेगा.
अनुपम तिवारी, लखनऊ
( इतिहास और प्रबंधन में परास्नातक, जेडब्लूओ अनुपम तिवारी (रि.) भारतीय वायु सेना से अवकाशप्राप्त अधिकारी हैं। रक्षा मामलों पर विभिन्न समाचार चैनलों, व मीडिया स्वराज समेत अन्य माध्यमों पर नियमित रूप से अपने विचार रखते हैं।)