गांधी जी ने जब आलू किसानों की पीड़ा का निदान किया

डॉ. चन्द्रविजय चतुर्वेदी

श्री सुधीर घोष एक पत्रकार थे जिन्हे गाँधी जी बहुत स्नेह करते थे।

सुधीर जी गाँधी के विश्वस्त लोगों में से थे जो अपने को गाँधी का दूत कहते थे और गांधीजी से खुलकर हर विषय पर बात कर लेते थे।

सुधीर घोष ने ऐसे कई प्रकरण में गाँधी के दूत के रूप में भूमिका निभाई थी जिसे कांग्रेस के शीर्षस्थ नेता नेहरू ,पटेल और आजाद भी तत्समय नहीं जान पाए।

सुधीर घोष की एक पुस्तक है –गांधीज एमेजरी जो पहली बार 1967 में लन्दन में छपी।

इस पुस्तक में गांधीजी से सम्बंधित बहुत महत्वपूर्ण संस्मरण हैं। ऐसा ही एक संस्मरण बंगाल के आलू किसानो से सम्बंधित भी है।

1 दिसंबर 1945 को गाँधी जी कलकत्ता पहुंचे और सौदपुर आश्रम में रुके।

उस समय बंगाल के गवर्नर आस्ट्रेलियाई मूल के मिस्टर आरजी केसी थे उन्हें जब मालूम हुआ की गांधीजी कलकत्ता में हैं तो उन्होंने गाँधी जी को एक पत्र लिखा की –आप संभव हो तो कल रविवार या अगले दिन सोमवार को मेरे निवास पर क्या  पधार सकते हैं।

इस यात्रा में सुधीर घोष गांधी जी के साथ थे। गाँधी जी के अलावा सुधीर और आश्रम के अन्य लोग पशोपेश में थे की गवर्नरने  गांधीजी को क्यों बुलाया है।

साथियों से इस बात पर चर्चा करते हुएगांधीजी  सुधीर घोष से कहा की गवर्नर से मिलने के लिए दो दिन के उहापोह के बजाय आज ही क्यों न मिल लिया जाये ,गवर्नर को फोन कर दो एक घंटे में मिलने चलते हैं।

सुधीर घोष ने गवर्नर को  गांधीजी के मंतव्य से अवगत कराया। गवर्नर ने बड़ी प्रसन्नता व्यक्त की।

शाम को दोनों लोग मिले सुधीर घोष भी साथ में थे। गांधी से मिलकर गवर्नर बहुत अभिभूत हुए।

दोनों के बीच राजनीति की कोई चर्चा नहीं हुई दक्षिणी अफ्रीका टालस्टाय आश्रम की बातें होने लगी।

रात होने लगी सुधीर ने गाँधी जी से कहा महामहिम जल्दी डिनर करते हैं।

गाँधी जी तत्काल बातों का समापन करके चलने को तैयार हो गए।

गवर्नर साहेब प्रोटोकाल तोड़ते हुए गाँधी जी को छोड़ने पोर्च तक आ गए ,वहां उन्होंने देखा की राजभवन के सारे कर्मचारी –आपुनजन गाँधी के दर्शन के लिए खड़े हैं।

गवर्नर को नीचे आया देख कर्मचारी घबड़ाने के साथ हतप्रभ भी हुए, महामहिम केसी ने मुस्कराते हुए हाथ उठाकर अभयदान दिया।

गांधीजी सभी से मिले महामहिम उस पॉलिटिकल संत को देखते रहे जिसका धर्म केवल सेवा है ,वे तबतक पोर्च में खड़े रहे जब तक गाँधी जी चले न गए।

1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था जिसमे पंद्रह लाख लोग मारे गए थे।

गाँधी किसानो से मिलने ही बंगाल आये थे रोज भारी संख्या में किसान सुबह से देर रात तक गाँधी जी मिलते थे अपनी समस्याएं बताते थे ,गाँधी जी अपने सहयोगियों के साथ सोचविचार कर निराकरण तलाशते थे।

एक दिन भारी संख्या में हुगली के किसान आये उन्होंने बताया की उनके आलू के खेत तैयार हैं पर बीज नहीं मिल पा रहे हैं यदि उनके खेत खाली रहे तो वे भूखों मर जायेंगे।

किसानों ने बताया की गोदामों में आलू के बीज भरे पड़े हैं पर व्यापारी निकाल नहीं रहे हैं वे कमी के प्रचार के बाद अधिक मूल्य पर कालाबाजारी करेंगे छोटे किसानो की मौत होगी।

गाँधी में बहुत विचार करने के बाद सुधीर घोष को बुलाया और कहा यह समस्या तात्कालिक हल चाहती है।

गवर्नर केसी तो बहुत भला आदमी प्रतीत हो रहा है, तुम हमारी चिट्ठी लेकर उससे मिलो। हो सकता है इससे समस्या का हल हो जाये फिर आगे सोचा जाएगा।

गाँधी ने फ़ौरन महामहिम को पत्र में लिखा की बहुत संकोच पूर्वक अपने दुःख से अवगत करा रहा हूँ जो आलू किसानो की पीड़ा के कारण है।

इस मामले में कहीं गड़बड़ी जरूर है। यदि आप इस मामले को सुलझा सके तो मुझे बहुत खुशी होगी।

गाँधी के पत्र पर मिस्टर के सी ने तत्काल कार्यवाही करते हुए सुधीर घोष के सामने ही कृषि सचिव सुविमल दत्त को बुलाया जो बड़े ही संवेदनशील अधिकारीयों में से थे जो आजादी के बाद विदेश सचिव हुए और रूस के राजदूत हुए।

कृषि सचिव दत्त ने कहा हिजहिनेस आपको विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए मंडी के आलू बीजों को जब्त करना होगा।

गवर्नर केसी ने कहा तुरंत आदेश बनाइये और मिस्टर घोष के साथ जाकर आलू मंडी को जब्तकर किसानो को आज से ही बीज का वितरण कराइये।

आनन् फानन में ऐसा ही हुआ जिले के तमाम अधिकारी मंडी बुलाये गए।

कृषि सचिव दत्त ने गवर्नर के आदेश की घोषणा नीमतल्ला के पोस्ता पोटेटो मार्केट में की। गाँधी जी को इसकी सूचना दी गई।

किसान भी मार्केट पहुंचे। कृषि सचिव दत्त गाँधी का कार्य समझते हुए सुधीर घोष के साथ मंडी में सरकारी अमला के साथ डटे रहे और वाजिब दाम पर किसानो को बीज उपलब्ध कराकर इसकी सूचना गवर्नर और गाँधी जी को देते रहे। गाँधी ने आलू किसानो को मरने से बचा लिया।

देश को गाँधी जैसा सेवक नेता सुधीर जैसा कर्मठ दूत और सुविमल दत्त जैसा अधिकारी चाहिए।

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