मोदी सरकार को नहीं पता कि लॉक डाउन के दौरान कितने प्रवासी मज़दूरों की मौत हुई

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मोदी सरकार को नहीं पता कि लॉक डाउन के दौरान कितने प्रवासी मज़दूरों की मौत हुई.

इसीलिए किसी को मुआवज़ा या आर्थिक सहायता देने का सवाल ही  नहीं. 

भारत सरकार के केंद्रीय श्रम मंत्रालय  ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि लॉक डाउन के दौरान प्रवासी मज़दूरों की मौत के बारे में सरकार के पास आंकड़ा नहीं है.

ऐसे में मुआवजा देने का ‘सवाल नहीं उठता है’.

सरकार से पूछा गया था कि कोरोनावायरस लॉकडाउन में अपने परिवारों तक पहुंचने की कोशिश में जान गंवाने वाले प्रवासी मजदूरों के परिवारों को क्या मुआवजा दिया गया है?

सरकार के जवाब पर विपक्ष की ओर से खूब आलोचना और हंगामा हुआ. 

श्रम मंत्रालय ने माना है कि लॉकडाउन के दौरान 1 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर देशभर के कोनों से अपने गृह राज्य पहुंचे हैं.

 श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने अपने लिखित जवाब में बताया कि ‘ऐसा कोई आंकड़ा मेंटेन नहीं किया गया है.

ऐसे में इसपर कोई सवाल नहीं उठता है.’

कांग्रेस नेता दिग्विजिय सिंह ने कहा कि ‘यह हैरानजनक है कि श्रम मंत्रालय कह रहा है कि उसके पास प्रवासी मजदूरों की मौत पर कोई डेटा नहीं है, ऐसे में मुआवजे का कोई सवाल नहीं उठता है.

उन्होंने कहा कभी-कभी मुझे लगता है कि या तो हम सब अंधे हैं या फिर सरकार को लगता है कि वो सबका फायदा उठा सकती है.’

मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देशभर में लॉकडाउन लगने का ऐलान किया था.

इसके बाद लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर बेघर और बिना रोजगार वाली स्थिति में आ गए थे.

कइयों को उनके घर से निकाल दिया गया, जिसके बाद वो अपने गृहराज्य की ओर निकल पड़े थे.

कुछ जो भी गाड़ी मिली, उससे आ रहे थे तो कुछ पैदल ही निकल पड़े थे.

ये मजदूर कई दिनों तक भूखे-प्यासे पैदल चलते रहे. कइयों ने घर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया था. 

विरोध और विपक्ष की आलोचनाओं के बाद केंद्र ने राज्यों से बॉर्डर सील करने को कहा.

 उसके बाद मजदूरों के लिए श्रमिक ट्रेनें चलाई गईं.

हालांकि, श्रमिक ट्रेनों को लेकर इतनी अव्यवस्था थी कि मजदूरों की पैदल यात्रा या रोड के जरिए यात्रा जारी रही .

 इस दौरान कई मजदूरों की रोड हादसों में जान चली गई.

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