हरसिंगार, एलोवेरा और गिलोय हो सकते है COVID-19 की रोकथाम में कारगर

वैज्ञानिक शोध में संकेत

कुमार हर्ष, गोरखपुर से

गोरखपुर विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अम्बरीश कुमार श्रीवास्तव के एक शोध से  यह संकेत मिले हैं कि  हरसिंगार, एलोवेरा और गिलोय हो सकते है COVID-19 की रोकथाम में कारगर  हो सकते हैं। आज जब विश्व COVID-19 की भयानक महामारी की चपेट में आ चुका है, ऐसे में ये शोध काफी राहत पहुंचा सकता है|

हमारा देश प्राकृतिक सम्पदा से भरा पड़ा है, जिसके चमत्कारी प्रभावों से हम अपरिचित हैं| हमारे यहाँ के पेड़-पौधों में बहुत सारे यौगिक पाए जाते हैं जिनका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों में होता है| मॉलिक्यूलर मॉडलिंग और डॉकिंग आधारित इस शोध से पता चला है कि इनसे में कई पौधों में COVID-19 के प्रभाव को बेअसर करने या कम करने की क्षमता हैं| इस शोध में कुल 11 विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे शामिल किये गये जिनमे हरसिंगार, एलोवेरा, गिलोय, अश्वगंधा, तुलसी, नीम, हल्दी, अदरक, प्याज आदि शामिल है| इस शोध के अनुसार COVID-19 के सबसे ज्यादा प्रभावी हरसिंगार को पाया गया, और फिर क्रमशः एलोवेरा और गिलोय को| हल्दी, नीम, अश्वगंधा और प्याज भी किसी हद तक कारगर हैं| हालाँकि लहसुन के संबध में कोई साक्ष्य नहीं मिल सका है| 

डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं कि हरसिंगार में ये गुण उसकी पत्तियों में पाए जाने वाले निक्टोफ्लोरिन के कारण है जबकि एलोवेरा में एलोनिन और एलोसिन एवं गिलोय में बेरबेरिन पाया जाता है| ये कंपाउंड्स COVID-19 के प्रोटीन से बंध जाते हैं और उसको निष्क्रिय कर देते हैं| इनकी निष्क्रिय करने की क्षमता हाइड्रोक्सी-क्लोरोक़ुइन से भी अधिक पाई गयी है|

गौरतलब है कि इसी ग्रुप ने हाल ही में कुछ एंटी-मलारिअल दवाएं जैसे मेपाक्रीन, क्लोरोक़ुइन, हाइड्रोक्सी-क्लोरोक़ुइन, फोमारिन द्वारा COVID-19 के रोकथाम के लिए शोध किया था| हालाँकि ये दवाएं COVID-19 प्रोटीज को निष्क्रिय करने में सक्षम हैं लेकिन ये अत्याधिक टॉक्सिक हैं और इसका रिएक्शन खतरनाक और जानलेवा साबित हो सकता है | ऐसे में ये शोध बहुत महत्त्वपूर्ण है क्यूंकि इन आयुर्वेदिक औषधियों के कोई साइड इफेक्ट्स नहीं हैं| 

ड़ा अम्बरीश कुमार श्रीवास्तव, गोरखपुर विश्वविद्यालय

ज्ञात हो कि डॉ. श्रीवास्तव ने अपने यू.जी.सी. स्टार्ट-अप ग्रांट से कम्प्यूटेशनल मैटेरियल्स साइंस लेबोरेटरी (CMS Lab) व्यवस्थित की है| हालाँकि यूनिवर्सिटी और लैब बंद होने के कारण, मॉलिक्यूलर मॉडलिंग पर्सनल कंप्यूटर के जरिये की गयी और मॉलिक्यूलर डॉकिंग के लिए स्विट्ज़रलैंड के सर्वर की मदद ली गयी है| मॉलिक्यूलर मॉडलिंग के जरिये किसी कंपाउंड या प्रोटीन की संरचना का निर्धारण किया जाता है और मॉलिक्यूलर डॉकिंग के माध्यम से किसी कंपाउंड (लीगंड) की प्रोटीन (रिसेप्टर) से बाइंडिंग का अध्यन किया जाता है| ये सारे कार्य कुछ विशिष्ट कंप्यूटर सॉफ्टवेयर्स के द्वारा किया जाता है| दोनों शोधपत्रों को अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में भेजा जा चुका है और उनका प्रीप्रिंट आर्काइव पर उपलब्ध है | इस दिशा में शोध लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. नीरज मिश्र के कोलैबोरेशन में आगे भी चल रहा है|

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