स्वराज्य के सूर्योदय से गांव आज भी अछूते हैं: सुदर्शन आयंगर
विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति
ग्रामस्वराज्य इस देश की पुरानी परंपरा से निकला हुआ नुस्खा है। यह अहिंसक समाज निर्माण की नींव है।
आजादी के बाद दिल्ली में स्वराज्य का सूर्योदय हुआ है, लेकिन गांव अभी भी इससे अछूते हैं।
विनोबा के ग्रामदान विचार में ग्रामस्वराज्य की संभावना निहित है।
उक्त विचार गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलपति डाॅ.सुदर्शन आयंगर ने विनोबा जी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में कही।
श्री आयंगर ने कहा कि ग्रामदान और ग्रामस्वराज्य विचार में महात्मा गांधीजी से आगे बढे हुए थे।
जब गांधीजी से यह प्रश्न किया गया कि आजादी के बाद जमीन का प्रश्न हल नहीं हुआ तो आप क्या करेंगे।
तब गांधीजी ने कहा था कि तब सत्याग्रह करूंगा।
जब तेलंगाना में जमीन का प्रश्न विनोबा जी के सामने उपस्थित हुआ तब उन्हें करुणा का मार्ग सूझा और इसे उन्होंने देवीय संकेत माना।
शहर आजाद, गांव गुलाम
श्री आयंगर ने कहा कि ईस्ट इंडिया कंपनी के पूर्व के गांव आजाद थे।
उस समय हर गांव में पाठशालाएं थीं और वे परिवर्तन से अछूते रहते थे।
देश के गुलाम होने पर गांव और शहर दोनों पर इसका जबर्दस्त प्रभाव हुआ और ग्राम सभ्यता टूटती चली गई।
स्वतंत्र होने के बाद शहर तो आजाद हो गए, लेकिन गांव आज भी गुलाम हैं।
इस गुलामी से मुक्ति का रास्ता ग्रामदान से होकर जाता है।
समष्टि के लिए ग्रामस्वराज्य
श्री आयंगर ने कहा कि विनोबा जी ने मालकियत विसर्जन का विचार समष्टि की रक्षा के लिए दिया है।
जमीन की मालिकी नहीं हो सकती। भूदान से शुरू हुई उनकी वैचारिक यात्रा ग्रामदान से जयजगत तक विस्तार पाती है।
पंचायत के पांच सदस्य
श्री आयंगर जी ने कहा कि विनोबा जी ने पंचायत के लिए पांच सदस्य महत्वपूर्ण बताए हैं।
ये सदस्य मनुष्य के रूप में नहीं बल्कि गुण के रूप में हैं .
पंचायत का पहला सदस्य प्रेम, दूसरा सदस्य निर्भयता, तीसरा सदस्य ज्ञान, चौथा सदस्य उद्योग और पांचवा सदस्य स्वच्छता है।
इससे आदर्श ग्राम पंचायत का गठन किया जा सकता है।
श्री आयंगर ने इन सभी के व्यावहारिक प्रयोगों पर भी प्रकाश डाला।
ब्राॅडकास्ट की जगह डीपकास्ट
प्रेम सत्र के वक्ता अमेरिका के निपुण भाई मेहता ने कहा कि विनोबा जी चलता-फिरता विश्वविद्यालय थे।
मीडिया की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आज ब्राॅडकास्ट के स्थान पर डीपकास्ट की बहुत आवश्यकता है।
डीपकास्ट की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि पीड़ित मानवता को दुखों से छुटकारा दिलाने के लिए करुणा को अपनाने की जरूरत है।
समाज में व्याप्त विषमता ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है।
उन्होंने कहा कि कोरोना में दो पहलू उभर कर सामने आ रहे हैं। इसे युद्ध और प्रेम दोनों दृष्टियों से देखा जा रहा है।
महामारी से पीड़ित लोग एक-दूसरे की जिस तरह सहायता कर रहे हैं वह अवर्णनीय और अद्भुत है।
दूसरी ओर एक वर्ग इससे बेतहाशा कमाई भी कर रहा है।
श्री मेहता ने कहा कि हमें आंतरिक परिवर्तन पर जोर देना चाहिए।
आज से पचास साल पहले जो कार्य जिस भावना से किए गए, उन मूल्यों को नये परिप्रेक्ष्य में लागू करने की दिशा में काम करना चाहिए।
तीसरी शक्ति का विचार विनोबा जी की मौलिक देन है।
करुणा सत्र के वक्ता सेवानिवृत्त प्राध्यापक श्री मफतलाल पटेल ने उनके द्वारा धंधुका जिले के गांव में किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि कभी गांव में एक भी व्यक्ति पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन पच्चीस साल बाद पूरा गांव साक्षर है और सभी को रोजगार मिला हुआ है।
उनके प्रयासों से गांव में चार मंजिला पुस्तकालय बनाया गया है।
गांव के युवा इसका उपयोग कर प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए।
पांच सौ पचास घरों में शौचालय भी बनाए गए हैं।
कर्नाटक के श्री शिवानंद हलिकेरी ने विनोबा जी के प्रेरणादायी विचारों को प्रस्तुत किया।
संचालन संजय राय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना।
डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे