मुसीबत में हर कोई घर ही भागना चाहता है

यह वक्त भी गुज़र जायेगा

 

 

-कुमार हर्ष, गोरखपुर से 

मन बहुत दुःखी है।
जहां रहता हूँ वहां से बमुश्किल 100 मीटर दूरी पर बस स्टेशन है। इस नीरव समय में कल आधी रात से जोर जोर की आवाज़ें शुरू हुई जो लगभग 20 घण्टे बाद अभी तक जारी है। बीच बीच में माइक पर गूंजती आवाज़ें भी है।

महराजगंज वाले 7041 पर बैठ जाएं। 8252 पडरौना जा रही है तुरन्त बैठिए। ऐसी ही कई उद्घोषणाएं। पुलिस लगातार मौजूद है। लाइन लगवाती। भीड़ भीतर की बजाय पहले छत पर जाती है। दिन में कुछ लोग, मेरे कुछ दोस्त भी खाने का सामान लेकर गए थे।

दिन भर आवाज़ें बेचैन करती रहीं। मन नही माना तो अभी थोड़ी देर पहले वहां गया। मैंने विभाजन की तस्वीरें सिर्फ फिल्मों में देखी है। ये दृश्य वैसे ही लगते हैं। इसमें आदमी भी है, औरते और बच्चे भी। साथ में बोरे, झोले, पेंट के बड़े डिब्बों में सिमटी गृहस्थी है। बस किसी तरह घर पहुंचना है बस।

टीवी से लेकर सोशल मीडिया में आरोपों की भरमार है। चीन को गालियां देते लोग अब केजरीवाल को गरिया रहे हैं। उनकी राय में सब किया धरा उन्हीं का है। पहले अपनी खांसी दुनिया को दे दी और अब अपनी मुसीबत भी टरका दी।

कुमार हर्ष

 

 

 

 

 

 

 

कुछ अलग लोग भी है जो 2014 से एक ही बात कह रहे। जैसे भजनों में एक टेक होती है। अखण्ड पाठ में जैसे सम्पुट होता है वैसे ही उनके टेक और सम्पुट है जिसमें एक नाम ही रहता है।

कुछ इन मजदूरों या प्रवासियों को ही विलेन बता रहे हैं। कह रहे है कि सालों ने हमारे संयम को पलीता लगा दिया। अब जिंदा बम की तरह घूम रहे हैं।

इन आवाजों को सुनने पर गुस्सा आ रहा है। कोई नहीं सोच रहा है कि मुसीबत में हर कोई घर ही भागना चाहता है। सुरक्षित इलाकों में रह रहे लोग अखबार तक तो ले नहीं रहे और मौत के मुहाने पर बेघर खड़े इन विपन्न लोगों को मरने से पहले अपनों के बीच तक पहुंच जाने को अपराध बताते हैं।

ये सोचकर ही डर लगता है कि कैंसर पीड़ित वो आदमी बीबी बच्चों के साथ दिल्ली से सिद्धार्थनगर क्यों भागा। वो भी मोपेड से। मौत तो तय ही थी पर उससे पहले वो परिवार को महफूज कर देना चाहता था। पर रास्ते में ही मर गया। आप गाली बकते रहिए।

कल देर रात एक मित्र पुलिस अधिकारी का फोन आया। सुबह से रात 10 बजे तक हज़ारों की भीड़ को बसों में बिठाते वर्दी भी भीग गयी थी और उनका स्वर भी। बेबस ज़िंदगी की न जाने कितनी किताबें पढ़ ली थी उन्होंने।

सबसे अरज है। यह वक्त कठिन है। आरोप प्रत्यारोप का नहीं। आप जैसा सोचते हैं दुनिया वैसी ही दिखने लगती है। बहुत निगेटिविटी आपको ही चोट पहुंचाएगी। प्रार्थना कीजिये कि यह संकट जल्दी से जल्दी टले। मुसीबतजदा लोगों के लिए कुछ कर सकें तो कीजिये। न कर सकें तो अपने परिजनों को ही खुशी दीजिये।

यह वक्त भी गुजर जाएगा।

 

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