भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा होने के मायने

भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा। सुप्रीम कोर्ट के 64 वर्षीय वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के लिए यह एक सही विशेषण हो सकता है।

वर्ष 1975 में इलाहाबाद के इस टीनएजर ने महज 19 वर्ष की उम्र में अदालत का वह सबसे बड़ा ड्रामा देखा जिससे देश में आपातकाल लगा।

दरअसल उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण का केस प्रशांत भूषण के पिता शांतिभूषण जी लड़ रहे थे।

आईआईटी, प्रिंस्टन छोड़ की कानून की पढ़ाई

आईआईटी, मद्रास के छात्र रहे प्रशांत भूषण ने एक सत्र के बाद इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी।

फिर, उन्होंने प्रिंसटन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और फिर दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की।

 लेकिन स्नातक पूरा करने से पहले से ही वह भारत लौट आये। फिर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की।

न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन

प्रशांत भूषण को भ्रष्टाचार, विशेष रूप से न्यायपालिका और सरकारी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जाना जाता हैं।

अन्ना हजारे द्वारा 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ किये गये संघर्ष में वे उनकी टीम के प्रमुख सहयोगी रहे हैं।

अपनी वकालत के दौरान वे 500 से अधिक जनहित याचिकाओं पर जनता की तरफ से केस लड़ चुके हैं।

प्रशांत भूषण कानून व्यवस्था में निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था की पैरवी करते हैं।

उनका मानना है कि देश की कानूनी संरचना को भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी होना चाहिए।

न्यायिक अवमानना

प्रशांत भूषण पर न्यायिक अवमानना का मामला पहली बार नहीं चला है।

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भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा प्रशांत भूषण ने न्यायिक उन्मुक्ति के खिलाफ लगातार अभियान चलाया।

कुछ हद तक इस अभियान से प्रभावित होकर न्यायाधीशों ने सितंबर 2009 में अपनी संपत्ति घोषित करने का निर्णय लिया।

कुछ समय बाद, भूषण ने तहलका पत्रिका में एक साक्षात्कार में दावा किया कि “पिछले कुल 16 स-17 मुख्य न्यायाधीशों में से, आधे भ्रष्ट थे”।

इसपर एक प्रमुख वकील, हरीश साल्वे ने पत्रिका के संपादक और भूषण के खिलाफ़ अदालत की अवमानना ​​का आरोप दायर किया।

आठ सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों पर लगाया आरोप

अक्टूबर 2009 में प्रशांत भूषण ने एक हलफनामा दायर कर आठ रिटायर मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया।

इसमें उन्होंने न्यायाधीशों को जांच से उन्मुक्ति मिलने के कारण उनके खिलाफ़ दस्तावेजी सबूत जुटाने में कठिनाई का उल्लेख किया।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कृष्णा अय्यर ने कहा कि या तो “झूठे आरोप” लगाने पर शांतिभूषण और प्रशांत भूषण को दंडित किया जाना चाहिए।

या फिर उनके आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए।

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