बुंदेलों ने मनाई स्वतंत्रता सेनानी पं. परमानंद की 128वीं जयंती

महोबा। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बुंदेलखंड में जंग-ए-आजादी के महानायक रहे पं. परमानंद को आज उनकी 128वीं जयंती पर बुंदेलों ने नमन किया। नगर में उनके नाम से बने परमानंद चौक जाकर पहले उनके स्मारक की सफाई की फिर बुंदेलों ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।इस मौके पर बुंदेली समाज संगठन के संयोजक तारा पाटकर ने बताया कि “पं. परमानंद का जन्म हमीरपुर की सरीला तहसील के सिकरौधा गांव में 6 जून, 1892 को कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता गया प्रसाद खरे और माता सगुना देवी की मृत्यु अल्पकाल में ही हो गयी थी। उनके दादा मनराखन खरे 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के दौरान चरखारी रियासत का खजाना लूटने के षड़यंत्र में पकड़े गये और जेल में कठोर यातना भोगते हुए उनकी मृत्यु हो गयी थी, जिसका गहरा प्रभाव पं. परमानंद के जीवन में पड़ा और वे आजादी की जंग में कूद पड़े।”

बुंदेली समाज संगठन के महामंत्री डा. अजय बरसैया ने कहा कि “लाहौर षड़यंत्र केस में अंग्रेजी हुकूमत ने परमानंद को 13 सितंबर, 1915 को फांसी की सजा सुनाई, लेकिन भारी जन विरोध के कारण उनकी फांसी को काले पानी की सजा में तब्दील करना पड़ा। वे 22 साल तक अंडमान निकोबार की सेलुलर जेल में बंद रहे। उनको अंग्रेजों ने एक अगस्त 1937 को रिहा किया। वे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पुनः गिरफ्तार हो गए।” उन्होंने कहा कि “वे 22 भाषाओं के ज्ञाता थे और उनकी विद्वता से प्रभावित होकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उनको पंडित की उपाधि से प्रदान की। आजादी के बाद तत्कालीन घटनाक्रम से क्षुब्ध होने के कारण उनकी राजनीतिक सक्रियता लगभग शून्य हो गयी। 13 अप्रैल, 1982 को उनकी मृत्यु हो गयी।” 

=महोबा से आर.जयन की रिपोर्ट         

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