बाघों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन…

प्रवास क्षेत्र में लगातार गिरावट चिंता का विषय

बाघ संरक्षण के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब बाघों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है।

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय वन्यजीव संस्थान  ने देश भर के टाइगर रिज़र्व, राष्ट्रीय उद्यान तथा अभयारण्यों में बाघों की गिनती की।

सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में बाघों की संख्‍या बढ़कर 2,967 हो गयी  है।

ऐतिहासिक उपलब्धि

यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है क्योंकि देश ने बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य को चार साल पहले ही प्राप्त कर लिया है।

वर्तमान में भारत लगभग 3,000 बाघों के साथ सबसे बड़ा एवं सुरक्षित प्राकृतिक वास बन गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, बाघों की संख्या में 33 प्रतिशत की वृद्धि विभिन्न चक्रों के बीच दर्ज अब तक की सर्वाधिक वृद्धि है।

उल्लेखनीय है कि बाघों की संख्या में वर्ष 2006 से वर्ष 2010 तक 21 प्रतिशत तथा वर्ष 2010 से वर्ष 2014 तक 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी थी।

बाघों की संख्‍या में वर्तमान वृद्धि वर्ष 2006 से बाघों की औसत वार्षिक वृद्धि दर के अनुरूप है।

मध्य प्रदेश में बाघों की सर्वाधिक संख्या

मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या सबसे अधिक 526 पायी गयी। इसके बाद कर्नाटक में 524 और उत्तराखंड में इनकी संख्या 442 थी।

छत्तीसगढ़ और मिज़ोरम में बाघों की संख्या में गिरावट देखने को मिली, जबकि ओडिशा में इनकी संख्‍या अपरिवर्तनशील रही। अन्य सभी राज्यों में सकारात्मक प्रवृत्ति देखने को मिली।

बाघों के सभी पाँच प्राकृतिक वासों में उनकी संख्‍या में वृद्धि देखने को मिली। ग़ौरतलब है कि इस नयी रिपोर्ट में तीन टाइगर रिज़र्व बक्सा (पश्चिम बंगाल), डंपा (मिज़ोरम) और पलामू (झारखंड) में बाघों के अनुपस्थिति दर्ज की गयी है।

भारत में विश्व के 70 प्रतिशत बाघ

वर्तमान में विश्व के बाघों की आबादी का 70% भारत में है । केंद्र सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट बाघ अभ्यारण्य (231) में देश में सबसे अधिक बाघों की आबादी मिली।

ग़ौरतलब है कि वर्ष 2014 की बाघ जनगणना में भी जिम कॉर्बेट बाघ अभ्यारण्य में देश की सर्वाधिक बाघ आबादी (215) मिली थी।

बाघों की संख्या के मामले में दूसरे स्थान पर कर्नाटक का नागरहोल टाइगर रिज़र्व (127), तीसरे स्थान पर बांदीपुर टाइगर रिज़र्व (126) और बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व (104) तथा काजीरंगा टाइगर रिज़र्व (104) थे।

29 जुलाई होता है बाघ दिवस

बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये हर वर्ष 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रथम विश्व बाघ दिवस का आयोजन वर्ष 2010 में ‘सेंट पीटर्सबर्ग बाघ शिखर सम्मेलन’  के दौरान किया गया था।

रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय बाघ संरक्षण मंच की बैठक में विश्व के 13 टाइगर रेंज देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए।

उस बैठक में शामिल सभी देशों ने सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा के तहत जारी ‘ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम’ को लागू करने पर सहमति व्यक्त की।

उस कार्यक्रम के तहत 13TRC देशों ने वर्ष 2022 तक वैश्विक स्तर पर बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा।

टाइगर रेंज कंट्रीज में 13 देश शामिल

भारत, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, रूस, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया,मलेशिया, लाओस, थाईलैंड और वियतनाम सहित कुल 13 देश ‘टाइगर रेंज कंट्रीज़’ में शामिल हैं ।

उक्त रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाघों की आबादी के मामले में पहले स्थान पर मध्यप्रदेश (526), दूसरे स्थान पर कर्नाटक (524), उत्तराखंड (442) तीसरे और महाराष्ट्र (312) तथा तमिलनाडु (264) क्रमशः चौथे और पाँचवें स्थान पर रहे।

खादाय श्खला में बाघ शीर्ष पर

खाद्य श्रृंखला में बाघ शीर्ष के जीवों में से एक है जिस पर पूरा पारिस्थितिकी तंत्र निर्भर करता है . जिसके संतुलन को बनाये रखने के लिये बाघों का संरक्षण बहुत ही आवश्यक है। बाघ एक अम्ब्रेला स्पीशीज़ (umbrella species) है।

अतः इसके संरक्षण के माध्यम से ‘अनगुलेट्स’  अर्थात खुर वाले जीव, परागणकारी जीव और अन्य छोटे जानवरों की कई अन्य प्रजातियों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है।

बाघों की संख्या में वैश्विक गिरावट

पिछले 100 वर्षों में वैश्विक स्तर पर बाघों की आबादी में भारी गिरावट देखने को मिली है और कई क्षेत्रों में बाघों की आबादी पूर्णतयः समाप्त हो चुकी है। IUCN रेड लिस्ट में बाघ को ‘संकटग्रस्त’ की सूची में रखा गया है।

वर्ष 1969 में नई दिल्ली में आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ’  की 10 वीं आम सभा में बाघों की घटती आबादी का मुद्दा उठा।

1970 के दशक में केंद्र सरकार की तरफ से बाघों के संरक्षण के प्रति एक मज़बूत राजनीतिक प्रतिबद्धता देखने को मिली और सरकार द्वारा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम का मसौदा  तैयार हुआ।

टाइगर रिजर्वों की स्थापना

परिणामस्वरूप देश के विभिन्न हिस्सों में राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्वों की स्थापना हुई। राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्वों की स्थापना के माध्यम से वन्य जीवों के संरक्षण हेतु विशेष प्रावधान किये गये जो देश के सामान्य वनों में संभव/उपलब्ध नहीं थे। इसी दौरान सरकार ने ‘प्रोज़ेक्ट टाइगर’ जैसे कुछ बड़े प्रयास शुरू किये।

बाघ संरक्षण से चौतरफा सुधार

बाघ संरक्षण की परियोजनाओं से संबंधित क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र (स्वच्छ जल, भूमि उर्वरता में सुधार आदि) में महत्त्वपूर्ण सुधार देखने को मिला है।

बाघों की संख्या बढ़ने और टाइगर रिज़र्वों के बेहतर प्रबंधन से पर्यावरण पर्यटन को बढ़ावा मिला है और ऐसे बहुत से लोगों को रोज़गार के नये विकल्प उपलब्ध हुए जिनकी पारंपरिक आजीविका, संरक्षण परियोजनाओं से प्रभावित हुई थी।

संरक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय उद्यानों और टाइगर रिज़र्वों में वृक्षों की संख्या में वृद्धि से पर्यावरण में उत्सजित कार्बन को कुछ सीमा तक कम करने में सहायता प्राप्त हुई है।

1973 में हुई थी प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत

प्रोज़ेक्ट टाइगर की शुरुआत केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 1973 में की गयी थी।

देश के प्रसिद्ध जीव विज्ञानी कैलाश सांखला को इस कार्यक्रम का पहला निदेशक नियुक्त किया गया था।

इस कार्यक्रम के तहत बाघ आबादी वाले राज्यों को बाघों के संरक्षण हेतु केंद्रीय सहायता उपलब्ध की जाती है।

ग़ौरतलब है कि वर्ष 1973 में प्रोज़ेक्ट टाइगर की शुरुआत के समय देश में मात्र नौ टाइगर रिज़र्व थे।

वर्तमान में देश में कुल टाइगर रिज़र्वों  की संख्या बढ़कर 50 हो गयी है।

लंबे समय से बाघों का शिकार शक्ति प्रदर्शन के लिये किया जाता रहा है। साथ ही बाघों के शरीर के प्रत्येक हिस्से का बाज़ार में अच्छा मूल्य प्राप्त होता है। अतः व्यक्तिगत और कई कारणों से बड़े पैमाने पर बाघों का शिकार किया जाता है.

प्रवास क्षेत्र में लगातार ह्रास

जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक विकास और अनियंत्रित शहरीकरण के कारण वन्य जीवों के प्रवास क्षेत्र का लगातार ह्रास हो रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाघों की संख्या में वृद्धि तो हुई है परंतु प्राकृतिक प्रवास स्थान के क्षरण के कारण बाघों को बहुत ही छोटे से क्षेत्र में सीमित रहना पड़ता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत और दक्षिण के कुछ राज्यों में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है परंतु पूर्वोत्तर भारत और देश के कुछ अन्य हिस्सों में बाघों की आबादी में गिरावट देखी गयी है। ग़ौरतलब है कि वर्तमान में भारत के तीन टाइगर रिज़र्वों (मिज़ोरम का दंपा अभ्यारण्य, पश्चिम बंगाल का बुक्सा अभ्यारण्य और झारखंड के पलामू अभ्यारण्य) में एक भी बाघ नहीं है।

हाल के वर्षों में सरकार ने वन्य क्षेत्रों में विनिर्माण परियोजनाओं के लिये ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ से जुड़ी मंज़ूरी देने की प्रक्रिया को आसान कर दिया है, जिसके कारण वन्य क्षेत्रों के निकट औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है।

टाइगर रिज़र्वों के बीच संपर्क मार्गों की स्थिति का ठीक न होना भी एक बड़ी चुनौती है, बाघों के संरक्षण के लिये देश के अलग-अलग हिस्सों से बाघों की आबादी के बीच जीन पूल का हस्तानान्तरण बहुत ही आवश्यक है।

परायावरणीय प्रभाव आकलन हो

देश में बाघ आबादी के संरक्षण और उनके सुरक्षित भविष्य के लिये टाइगर रिज़र्वों को जोड़ने हेतु आरक्षित बाघ गलियारों का निर्माण या सड़क या रेल परियोजनाओं के लिये भूमिगत मार्गों का निर्माण किया जाना चाहिये।

वन्य क्षेत्रों के निकट किसी भी परियोजना की शुरुआत के लिये ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’  के साथ अन्य पहलुओं की व्यापक जाँच की जानी चाहिये।

बाघों के संरक्षण के प्रयासों में कानूनी प्रावधानों और तकनीकी विशेषज्ञता के साथ स्थानीय लोगों का भी सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है।

अतः सरकार को संरक्षण योजनाओं से प्रभावित (आवासीय स्थानान्तरण, भूमि अधिग्रहण या अन्य कारण से आजीविका पर प्रभाव) समुदायों उचित मुआवज़े के साथ रोज़गार उपलब्ध करने के प्रयास करना चाहिये, जिससे वनों पर लोगों की निर्भरता कम की जा सके।

जलवायु परिवर्तन के कारण हाल के वर्षों में हो रहे प्राकृतिक बदलावों को देखते हुए बाघ संरक्षण परियोजनाओं में भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप आवश्यक बदलाव करना होगा ।

 

Dr Deepak Kohli
Dr Deepak Kohli

डॉ। दीपक कोहली

संयुक्त सचिव, पर्यावरण, वन एवंजलवायु परिवर्तन विभाग,उत्तर प्रदेश सचिवालय

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