एक बेचैन करने वाला प्रश्न

विपिन त्रिपाठी 

विपिन त्रिपाठी

एक प्रश्न मुझे हर समय बेचैन करता है कि आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी भारत की आधी आबादी अभी भी बेहद गरीबी में जीती है। भारत के साथ आजाद हुए देशों ने अद्भुत तरक्की की है। हम इस दौड़ में कहीं खो गए है। इतनी सुस्त मानव प्रजाति दुनियां में सायद ही कोई हो। इसका कारण क्या है? बुद्धि जीवियों से पूछिए तो उनके उत्तर अलग – अलग होते है। उनके उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस राजनीतिक विचारधारा से संबद्ध हैं, या फिर किस राजनीतिक पार्टी से जुड़ा है। यदि वह समाजशास्त्री है तो उसका उत्तर कुछ अलग होगा, अर्थशास्त्री है तो कुछ और। यहां तक कि उनके उत्तर इस बात पर भी निर्भर करेगा कि व्यक्ति किस जाति या धर्म या फिर किस भेाैगोलिक सीमा में जन्म हुआ है। आधुनिक समय के सबसे गहरे चिंतक कार्ल मार्क्स का मानना था कि भारत की संस्कृति का भाग्य वादी होना व पूर्व जन्म में विश्वास करना उसके पिछड़े पन व गरीबी का कारण है। यही कारण है कि भारत शादियों से लूटता – पीटता रहा , आक्रमणों को रोकने की कोई कला विकसित नहीं की पिछड़ापन इस हद तक था की अपनी बर्बादी को अपने पूर्व जन्म के संस्कार मानता था। मार्क्स भारत कभी नहीं आए , उन्होंने भारत को अंग्रेजो द्वारा भेजी सूचनाओं या फिर उन्ही के अखबारों में छपी सूचनाओं के माध्यम से जाना था, लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि वह भारत को अखबारों के माध्यम से जीतना जानते थे, उसका दसवां हिस्सा भी हमारे वर्तमान मालिक नहीं जानते हैं । बहुत से दूसरे कारण भी बताए हैं , पिछड़ेपन के, जैसे परंपरावादी होना व अंधविश्वासी होना आदि- आदि। यदि हमारे वर्तमान मालिक भारत को जानते होते तो इतना भ्रष्ट सिस्टम को पिछले सत्तर सालों से हम ढोते नहीं। लेकिन मुझे कुछ हद तक तर्क सम्मत बात चाणक्य की लगती है।
‌मेगस्थनीज जब भारत की यात्रा पर आया तो भारत के वैभव से आश्चर्यचकित होकर उसने चन्द्रगुप्त से मिलने की इच्छा व्यक्त की , वह जानना चाहता था कि इतने समृद्धिशाली देश का राजा कैसे राजकाज चलाता है। जब वह चन्द्रगुप्त के पास गया तो उसने पूछा राजन मै आपके राजकाज चलाने के तौर- तरीके जानना चाहता हूं ताकि आपके राज्य की समृद्धि का कारण जान सकूं ? चन्द्रगुप्त ने उत्तर दिया शासन मैं नहीं मेरे आचार्य चलाते हैं। यदि आप उनसे मिलना चाहते हो तो आपको वन में उनके आश्रम में मुलाकात करनी होगी । मैगस्थानीज चाणक्य के आश्रम की तरफ प्रस्थान करते हैं , वहां पहुंचकर देखता है एक व्यक्ति गोबर के कंडे पाथ रहा है अपनी झोपड़ी के सामने। मैगस्थनीज बोले मै चाणक्य से मिलने आया हूं क्या मै उनसे मिल सकता हूं ? चाणक्य बोले मै ही चाणक्य हूं पधारिए। मैगस्थानिज आश्चर्यचकित होकर पूछते हैं, इतने वैभवशाली राज्य का प्रधानमंत्री झोपड़ी में क्यों रहता है?

‌चाणक्य ने कहा जिस देश का राजा झोपड़ी में रहता है उसकी जनता महलों में रहती है और जिस देश का राजा महलों में रहता है जनता झोपड़ियों में रहती है।

कदाचित वर्तमान दौर में यह कथन सत्य जान पड़ता है। हमारे वर्तमान दौर के मालिक जिनमें मुख्यतः राजनेता , कॉपोरेट घराने व नौकरशाह आते हैं देश की कुल संपत्ति का अस्सी प्रतिशत इन्हीं के पास है , बांकी बीश प्रतिशत में १३० करोड़ जनता गुजारा करती है, किसान ने ५००० रुपए कर्ज लिए हो तो पुलिस उत्पीड़न करने रोज उसके दरवाजे पहुंचती है, कॉरपोरेट घरानों ने १५ लाख , रुपए का एन पी ए किया है, विडंबना देखिए हमारे बैंक अधिकारी, नौकरशाह व राजनेता उनके दरवाजे सलाम ठोकने जाते हैं, और हमको बताया जाता है कि यह महान लोकतंत्र है ? हम भाग्यवादी है इसलिए इसको चुनावी मुद्दा नहीं बनाते, क्योंकि हमें बचपन से समझाया जाता है कि हमारे दुखों का कारण हमारा भाग्य है, या हमारे पूर्व जन्म के संस्कार है। व्यवस्था हमारे दुखों का कारण है , यह न तो हमारे मां – बाप बताते हैं नहीं शिक्षा व्यवस्था न धर्म नहीं समाज । फिर व्यवस्था को चुनौती कौन देगा? इसलिए व्यवस्था के मालिक निश्चिंत भाव से देश को लूटते हैं। हमारे देश में चुनाव पांच साल में आने वाला एक मौसम है, जो चंद घंटो के लिए आता है, उस समय हम एक मतिभ्रम के शिकार होते हैं की हम अपनी सेवा के लिए एक सरकार चुन रहे हैं, वोट डाला नहीं आप उसी असहाय गुलाम में तब्दील हो जाते हैं जो आप सदियों से थे ? गुलाम की चेतना सिर्फ रोटी दाल तक सीमित रहती है, जिस दिन जन चेतना इस स्तर पर आ जाएगी कि उसे अपना सेवक चुनना है, उसी दिन मनुष्य के जीवन में परिवर्तन दिखाई देगा।

नोट : ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

5 × five =

Related Articles

Back to top button