एकान्त! एकान्त!! एकान्त!!!

खराब लगने वाली एक अच्छी चीज।

 

राम महेश मिश्र, दिल्ली से 

एकान्त को विदेशी साजिश ‘कोराना’ ने एक गम्भीर चिन्तन का विषय बना दिया है, वैयक्तिक शोध का विषय बना दिया है। सामाजिक स्तर पर एक बहस छिड़ी हुई है। कोई कहता है कि घर में बड़ी बोरियत होती है और किसी की टिप्पणी होती है कि कोरोना ने चाहे-अनचाहे एकान्त सेवन का सुख दे दिया, इस दौरान आत्मचिंतन का समय मिल रहा है, अध्ययन के लिए समय मिल रहा है, इस बहाने कईयों की लेखन की धार तेज हो रही है और किसी की साधना गहरी होती जा रही है। एकान्त के सुख भी हैं और (कथित) दुःख भी। निर्भर इस पर करता है कि आप इस एकांत को कैसे लेते हैं। 

महान तपस्वी एवं विश्वव्यापी युग निर्माण के स्वप्नदर्शी पूज्यवर आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने तो हिमालयवासी अपने गुरुदेव के निर्देश पर २४ वर्षीय अति-विशिष्ठ तप-अनुष्ठान के दौरान २४-२४ लाख के २४ गायत्री महापुरश्चरण कर डाले थे। उनकी दीर्घक़ालीन एकान्त साधना नमनीय बन गयी। अनुभवजन्य एकान्तवास पर उनकी पुस्तक ‘सुनसान के सहचर’ तो बीती शताब्दी के साथ के दशक में वंदनीय बन गयी थी। विश्व जागृति मिशन के प्रेरणास्रोत श्रद्धेय आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज के हिमालयीन एकान्त साधना शिविरों में देश-विदेश के साधक पुरुष भारी संख्या में पहुँचने लगे हैं। इन ध्यान शिविरों में वह हिमालय की अपनी एकांत साधनाओं के अनुभव भी बताते हैं। इन शिविरों ने बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान एकान्त सेवन की ओर खींचा है। अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने तो जेल में रहकर महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं और एकान्त समय का सदुपयोग किया। 

जेल जीवन को बड़ा खराब माना जाता है। जेल हो जाने की बात सुनकर मन सहम जाता है और जेल से सभी को बड़ा डर लगता है। हमने अपने तीन दशक से ज्यादा के अपने आध्यात्मिक सेवाकाल में देखा कि कारागार में निरुद्ध कुछ बंदियों ने कारावास को साधनाकाल मान लिया और उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। लखनऊ के सेवाकाल के दौरान हम जिला कारागार व आदर्श कारागार दोनों में अनेक बार गए और वहाँ विविध प्रकार के कार्यक्रम कराए। अन्य जिलों में भी प्रोग्राम देने के अनेक अवसर हमें मिले। फलतः जेल विभाग के आईजी एवं डीजी जैसे बड़ों का भी ध्यान उस ओर जाने लगा था। कुछेक बार तो लोकसभाध्यक्ष द्वारा गठित संयुक्त संसदीय समिति आदि में बतौर विशेषज्ञ सदस्य गायत्री परिवार से कारागार विभाग प्रमुख द्वारा हमें समिति की बैठक में बुलाया जाता। श्रीमती मारग्रेट अल्वा और सुश्री फूलन देवी जैसी सांसदों से हमारा परिचय जेपीसी की उन बैठकों में ही हुआ। लखनऊ जेल गतिविधियों से प्रभावित होकर दिल्ली तिहाड़ जेल की आईजी श्रीमती किरण बेदी ने वहां की विजिट की थी और वे गतिविधियां अपने यहां लागू करने का प्रयास किया था। उ. प्र. के प्रमुख सचिव कारागार श्री राकेश कुमार मित्तल ने भी जेल पहुंचकर उन प्रयत्नों को सराहा था।

लखनऊ की मॉडल जेल में तो चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि के दौरान एक बैरक को साधना बैरक बना दिया जाता। पूरी जेल से साधना के इच्छुक कैदियों को उसमें ११-१२ दिन रहने और साधना करने का सुअवसर मिलता। उन दिनों वह बैरक खूब सजाई जाती और एक आश्रमीय मंदिर जैसा स्वरूप ले लेती। सीनियर जेल सुपरिटेंडेंट श्री सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव (डीआईजी पद से सेवानिवृत्त) और जेलर श्री ललित मोहन पाण्डेय (वरिष्ठ अधीक्षक कारागार पद से सेवानिवृत्त) उन बंदियों के लिए विशेष फलाहार आदि की व्यवस्था कराते। हमारी मांग पर जेल स्टाफ से वरिष्ठ आरक्षी श्री राधेश्याम गिरि और आरक्षी श्री देवनाथ त्रिपाठी की विशेष ड्यूटी उस बीच उस बैरक में लगाई जाती। हमें स्मरण है कि एक हत्या के आरोप में आजीवन कारावास भोग रहे गोंडा जनपद के मूल निवासी श्री राधेश्याम पाण्डेय उस बैरक के व्यवस्थापक बनाए जाते। 

हमने पाया था कि अनेक बंदियों ने कारावास के काल को साधना काल बना लिया था। उनके जीवन में आमूल चूल बदलाव आ गए थे। जेल बन्दी के पहले उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल रहे श्री राधेश्याम पाण्डेय बताते थे कि हमारे हल्के के गांव की एक हरिजन महिला के आत्महत्या केस को हत्या के रूप में गढ़ दिए जाने और उसमें हम दो सिपाहियों को फंसा दिए जाने के बाद आजन्म कैद की सजा के दुर्भाग्यशाली और बेहद तकलीफदेह दिनों में उस एकांत साधना ने मुझे कितनी शक्ति दी है, उसे शब्दों में पिरो पाने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है। वे बताते थे कि हमने इसी दौरान अपने दो बेटों की असमय मौत जैसी हृदयविदारक पीड़ा भी झेली है। उल्लेखनीय है कि श्री पाण्डेय २४ बरस बाद विगत वर्ष जेल से रिहा हुए हैं और वह शरीर व मन दोनों से खूब स्वस्थ हैं। हमें सुखद लगा कि वे रिहाई के बाद हमारे बारे में मालूम करते हुए मिलने हेतु आनंदधाम पधारे थे।

कोरोना की बीमारी और इसके एकान्त ने दुनिया भर के लोगों को हस्त प्रक्षालन अर्थात् हाथ धोना सिखा दिया है। वे पश्चिमी देश जो शौच के बाद शरीर के अंगों और हाथों को टॉयलेट पेपर से पोंछ-पांछ कर फुरसत पा लेते थे, उन्हें कम से कम २० सेकेंड तक साबुन से हाथ धोना सिखाया जा रहा है। हम भारतीयों को यह स्थिति बड़ी अचरज और विस्मय वाली लगती है कि शौच के बाद कोई कैसे बिना धोए और विधिवत सफाई के रह सकता है…!!!…??? उत्तर प्रदेश मूल के मुम्बई में रह रहे हमारे एक युवा साथी श्री शिवम् मिश्र ने बीते दिसम्बर में हमें बताया था कि पश्चिम की देखा-देखी फिल्म नगरी में किसी ने बिना जल व्यवस्था वाला शौचालय बना दिया। जानकारी के अभाव में उसमें चले गए मुझ यूपी निवासी को बाद में जो झेलना पड़ा उसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है।  शिवम् बोले- गनीमत थी कि मोबाइल पास था और बाहर एक साथी, जिससे पानी की कई बिसलेरी बोतल भीतर आ सकीं और हम पवित्र हो सके। आज उन्हीं विदेशों में जन्मी कोरोना महामारी पूरी दुनिया को भारत और भारतीयों जैसा बनने को विवश कर रही है। 

हमारे सन्यासी सन्त व साधक, लेखक, चिन्तक, विचारक, वैज्ञानिक तथा विद्यार्थीगण इस एकांत का महत्व भलीभांति समझते हैं। उन्हें इसी एकान्त से ही वह सब कुछ मिलता है जो उनके लिए अभीष्ट है। आइए, हम सब भारतवासी अपने साधक-हृदय और चिन्तकमना प्रधानमन्त्री श्रीयुत नरेन्द्र मोदी की विनम्र व भावपूर्ण अपील का खुशी-खुशी पालन करें तथा इस एकांत समय का पूरा का पूरा लाभ उठाएं।

प्रसंगवश:- आज की अपनी इस पोस्ट का पूरा श्रेय मैं आनन्दधाम के अपने साथी पं. वीरेन्द्र शर्मा ‘स्वामी जी’ को देना चाहूंगा। आज प्रातःकाल उन्होंने एकांत विषय पर कुछ लिखने का सुझाव मुझे दिया। उनको ढेर सारा साधुवाद।

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