ऊर्जा का स्पंदन
महेश चंद्र द्विवेदी,
पूर्व पुलिस महा निदेशक, उत्तर प्रदेश
मैं बैठा हूँ पुष्पित वाटिका के मध्य
अनुभव कर रहा हूँ दूब का शीतल स्पर्श
निरख रहा हूँ नाचतीं तितलियाँ
सूंघ रहा हूँ वसंत के पुष्पों की महक
सुन रहा हूँ कहीं पक्षियों का गुंजन
तो कहीं शंकर का प्रचंड तांडव नर्तन
क्यूंकि आज मुझमे है ऊर्जा का स्पंदन
मैं सुनता हूँ जगत का कोलाहल
क्यूंकि वायु-कणों में होता है कम्पन
मैं देखता हूँ प्रकृति के चमत्कार
क्यूंकि प्रकाश तरंगो में होता स्पंदन
मेरा सुख-दुःख, हर्ष-विषाद सब हैं
मस्तिष्क के अणुओं की विद्युतीय पुलकन
मेरा जीवन है मात्र उर्जा का स्पंदन
शांत हो जायेंगे जब इन्द्रियों के स्पंदन
बन जायेंगे क्षिति, जल, पावक, समीर, गगन
बिखर कर अंग-अंग बन जायेंगे कण-कण
तब भी रहेगा उनके परमाणुओं में स्पंदन
फिर जब कभी होगा तत्वों का वांछित मिलन
जीवन-नाटिका का विश्व में पुनः होगा मंचन
क्यूंकि जीवन है मात्र ऊर्जा का स्पंदन.