चाय का सफ़र कैसे शुरू हुआ!

क़रीब साढ़े चार हज़ार साल पहले चाय का सफ़र कैसे शुरू हुआ? पढ़िए एक दिलचस्प कहानी डा अरविंद चतुर्वेदी की कलम से  

कुछ चीजें हमारे जीवन का सहज हिस्सा बन गई हैं,चाय भी उनमें से एक है। पीढ़ी दर पीढ़ी हम चाय को पसंदीदा पेय की तरह देखते आ रहे हैं।  कहते हैं ईसा से लगभग 2500 वर्ष पहले चीन के सम्राट शैन नुंग के जंगल में लगे कैंप में बगल में रखे गर्म पानी में हवा के झोंके के साथ कुछ पत्तियां आ गिरीं जिससे पानी रंगीन हो गया, चुस्की लेने सम्राट शैन को स्वाद बहुत पसंद आया। इसका नाम चा या टीई पड़ गया, उसी से चाय और tea शब्द बने, बस यहीं से चाय का सफर शुरू हो गया। 

1610 में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले आए और धीरे -धीरे पूरी दुनिया को चाय का स्वाद मिला।

सबसे पहले सन् 1815 में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया। इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग़ लगाए गए। आज देश में 563.98 हजार हेक्टेयर में चाय के बागान हैं, जिसमें से असम (304.40 हजार हेक्टेयर), पश्चिम बंगाल (140.44 हजार हेक्टेयर), तमिलनाडु (69.62 हजार हेक्टेयर) और केरल (35,000 हजार हेक्टेयर) में चाय उत्पादन होता है। चाय कैमेलिया सीनेंसिस नाम के पौधे की कोपलों से आती है, जो अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगता है।

भारत 8.3 मिलियन टन चाय उत्पादन करके विश्व के कुल उत्पादन में 24 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है।  चीन 9.4 मिलियन टन के साथ सबसे बड़ा उत्पादक देश है। मजे की बात ये है कि अमेरिका या यूरोप के किसी देश में चाय का उत्पादन नहीं होता जबकि चाय के उत्पादन का ज्यादातर हिस्से की खरीदारी (लगभग 75%) फ्रांस, जर्मनी, जापान, अमरीका एवं ब्रिटेन द्वारा की जाती है।

आपको लग रहा होगा कि मैं आज चाय की बात क्यों कर रहा हूं। हुआ यूं कि मैं 2 दिन पहले अपनी पारिवारिक लाइब्रेरी में एक विद्वान के आग्रह पर श्री कुबेरनाथ राय के आलेख फिर लोकायतन पर सरस्वती पत्रिका  अगस्त 1965  को ढूंढने गया। सरस्वती के पुराने अंक देखते हुए मुझे   1951 के जून, जुलाई अंक में सेंट्रल टी बोर्ड के चाय के बारे में रोचक विज्ञापन दिखे, गुदगुदी हो उठी,

आगे आगे दो दो हाथी

पीछे बाजा और बाराती

जब दूल्हा दरवाजे आया

पहले चाय का प्याला आया

(जून 1951)

मीठी भरी कटोरी आए, 

मुन्नी सुड़क सुड़क पी जाए।

मइया उसकी लोरी गाए,

झट मुन्नी को नींद आ जाए।

बाहर से बाबू जी आवें,

मइया अब चाय बनावें।

 (जुलाई 1951)

विज्ञापन के नीचे चाय के प्रति आकर्षण पैदा करने की पहल तो पढ़िए

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