आने वाली जनगणना में अपनी भाषा के कालम में संस्कृत लिखें
—साध्वी पूर्णाम्बा
श्रावणी पूर्णिमा के दिन संस्कृत दिवस आयोजित किया जाता है। इसे देव वाणी और अमृत भाषा कहा गया है परन्तु मात्र एक दिन संस्कृत दिवस मना लेने से हम संस्कृत का उद्धार नहीं कर सकते।
संस्कृत साहित्य कितना उन्नत, समृद्ध और विशाल है इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि इसमें हमें लोक के साथ-साथ परलोक का भी सटीक ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है। वह विद्या जो हमें अमृतत्व की ओर ले जाती है उसका आरम्भ इसी भाषा से होता है। संस्कृत को यदि अपना प्रेय बनाएँगे तो आपको अभ्युदय और निःश्रेयस् दोनों की प्राप्ति हो सकती है। इस भाषा की वैज्ञानिकता को तो आज के आधुनिकों ने भी स्वीकार किया है।
यह विचारणीय है कि हम अपने व्यक्तिगत जीवन में किए जाने वाले औपचारिक कार्यों के लिए किस भाषा का प्रयोग करते हैं? उत्तर मिलेगा संस्कृत भाषा का। कैसे ? जन्म से लेकर ध्यान करिए कि नामकरण, अन्नप्राशन, कर्णछेदन, वेदारम्भ, उपनयन, विवाहादि और यहाँ तक कि मरणोपरान्त किए जाने वाले कृत्यों में भी संस्कृत भाषा ही प्रयुक्त होती है। हम स्वयं संस्कृत नहीं जानते इसलिए संस्कृत भाषा जानने वाले पण्डित से अपने कार्यों का सम्पादन ठीक उसी प्रकार से कराते हैं जैसे वकालत न जानने पर हम वकील की सहायता लेते हैं। न्यायालय में वकील कहेगा तो आपकी ही बात पर चूंकि हम उस कानूनी भाषा को नहीं जानते इसलिए वह हमारी ओर से हमे जो कुछ कहना होता है वही कह देता है।
यदि हमे संस्कृत भाषा को अपनी राष्ट्रभाषा बनाना है अथवा संस्कृत को बचाए रखना है तो आगे कुछ दिनों में जनगणना होने वाली है। उसमें भाषा का जो कालम हो उसमें अपनी वास्तविक औपचारिक भाषा संस्कृत को लिखें। जिस भाषा के बोलने वाले जितने अधिक होते हैं वह भाषा उतनी ही अधिक संरक्षित व विकसित होती है। संस्कृत बचेगा तो संस्कृति बचेगी।