अमरीका, कैनडा, साइबेरिया और पूर्वी यूरोप में इतिहास की भीषणतम ग्रीष्म लहर
महामारी की तरह पर्यावरण में भी सबकी सुरक्षा में ही अपनी सुरक्षा है.
![शिवकांत](https://mediaswaraj.com/wp-content/uploads/2020/06/WhatsApp-Image-2020-06-08-at-3.58.08-PM.jpeg)
अमरीका और कैनडा के पश्चिमोत्तरी राज्यों के प्रशान्त महासागर के तटवर्ती इलाक़ों, साइबेरिया और पूर्वी यूरोप के देशों में इतिहास की सबसे भीषण ग्रीष्म-लहर चल रही है. शिमला, नैनीताल और ऊटी जैसे सुहाने मौसम के आदी सियाटल, पोर्टलैंड और वैनकुवर जैसे शहरों में पारा 45 डिग्री से ऊपर चल रहा है और कुछ शहरों में तापमान 49 डिग्री पार कर चुका है. मॉस्को का तापमान पिछले हफ़्ते 35 डिग्री था और साइबेरिया का तापमान 30 डिग्री से ऊपर चल रहा था. अमरीका और कैनडा के पश्चिमोत्तरी तटों पर यह इतिहास का सबसे ऊँचा और मॉस्को व साइबेरिया में 1901 के बाद का सबसे ऊँचा तापमान है.
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्मी की यह लहर उत्तरी प्रशान्त महासागर से उत्तरी अंध महासागर की ओर जाने वाली जैट स्ट्रीम के बीच गर्म हवा का एक द्वीप बन जाने से पैदा हुई है. हमारे वातावरण की ऊपरी परत में चलने वाली तेज़ हवाओं की लहरों को जैट स्ट्रीम कहते हैं जो कई बार सर्पाकार बन जाती हैं. ऐसी ही एक सर्पाकार जैट स्ट्रीम की अमरीका और कैनडा के पश्चिमोत्तर तट पर बनी कुंडली में गर्म हवा का द्वीप बन गया है जिसे वातावरण के उच्च दबाव ने और गर्म बना दिया है. इसे गर्मी का गुंबद कहते हैं. गर्म हवा का यह गुंबद बादलों और समुद्र की ठंडी हवाओं को दूर भगाता है और अपने नीचे पड़ने वाले इलाक़ों को झुलसाता है.
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गर्मी के कारण रात का तापमान भी कम नहीं हो पा रहा है. अमरीका और कैनडा के पश्चिमोत्तरी इलाक़ों में औसत तापमान सुहाना रहने के कारण घरों में वातानुकूलन की व्यवस्था भी नहीं है. इसलिए गर्मी से चारों ओर त्राहि-त्राहि मची है. कैनडा के पश्चिमोत्तरी प्रांत ब्रिटिश कोलंबिया से लगभग 250 लोगों के मारे जाने और अमरीका के पश्चिमोत्तरी ऑरेगन, वॉशिंगटन, आइडाहो, मोन्ताना और कैलीफ़ोर्निया राज्यों से भी दर्जनों लोगों के मरने की ख़बरें हैं. लोगों को गर्मी से राहत देने के लिए पुस्तकालयों और सभागारों को शरण स्थलों में बदल दिया गया है जहाँ लोग वातानुकूलन का लाभ उठा रहे हैं.
![अमरीका, कैनडा, साइबेरिया और पूर्वी यूरोप में इतिहास की भीषणतम ग्रीष्म लहर](https://mediaswaraj.com/wp-content/uploads/2021/07/44798215-9740487-PORTLAND_OREGON_People_flocked_to_the_Oregon_Convention_Center_s-a-6_1625061237048.jpg)
गर्मी के कारण पुराने बिजली के ग्रिडों में आग लगने की संभावना को देखते हुए बिजली कंपनियाँ बिजली गुल करने तैयारी भी कर चुकी हैं ताकि आग लगने पर उसे फैलने से रोका जा सके. राष्ट्रपति बाइडन ने बिजली के ग्रिडों का आधुनिकीकरण करने और मौसम परिवर्तन को रोकने के लिए और तेज़ क़दम उठाने का वादा किया है. उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप पर तंज़ करते हुए कहा कि मौसम परिवर्तन कोई कल्पना की उड़ान नहीं है बल्कि एक डरावनी हक़ीक़त बन चुका है जिसकी रोकथाम के लिए हमें मिल-जुल कर कदम उठाने होंगे. पर्यावरण वैज्ञानिक इसे प्रकृति की आख़िरी चेतावनी बता रहे हैं.
![गर्मी के कारण आग की घटनाएँ](https://mediaswaraj.com/wp-content/uploads/2021/07/44848667-9740487-WEED_CALIFORNIA_A_bulldozer_operator_works_on_a_fire_line_as_veg-a-25_1625067498395.jpg)
अब देखना यह है कि भारत जैसे विकासोन्मुख देशों पर पड़ रही मौसम की मार से सबक न लेकर सौदेबाज़ी में उलझे रहने वाले अमरीका, यूरोप और दुनिया का सबसे बड़ा प्रदूषणकारी बन चुका चीन नवंबर में होने जा रहे ग्लासगो पर्यावरण संमेलन में मौसम परिवर्तन की रोकथाम के लिए क्या ठोस क़दम उठाते हैं. अमरीका और कैनडा के पश्चिमोत्तर तटों पर बना गर्म हवाओं का गुंबद कल को हिमालय क्षेत्र पर भी बन सकता है और यदि ऐसा हुआ तो हमारी बडी नदियों को सदानीरा बनाने वाले हिमालय के ग्लेशियर और तेज़ी से पिंघलेंगे. ऐसा होने से पहले तो बाढ़ से तबाही मचेगी और बाद में नदियों के स्रोत सूख जाने के कारण भारत रेगिस्तान में बदल जाएगा.
![हिमालय क्षेत्र में तबाही](https://mediaswaraj.com/wp-content/uploads/2021/07/A99FFD5B-A74C-4DD3-8C70-F8B2E7A9222B_4_5005_c.jpeg)
इसलिए मौसम परिवर्तन की रोकथाम के लिए प्रभावी और जल्द क़दम उठाने की ज़रूरत अमरीका और यूरोप से ज़्यादा भारत और चीन को है. बिजली की कारें चलाने और धूप और हवा से बिजली बनाने भर से काम नहीं चलेगा. हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि हमें अपने आप को और पूरी दुनिया को जीवन शैली बदलने के लिए तैयार करना होगा. मांस को छोड़ वनस्पति आधारित भोजन अपनाना होगा ताकि पालतू जानवरों से निकलने वाली मिथेन गैस का उत्सर्जन बंद हो जो वायुमंडल में हो रही एक तिहाई गर्मी के लिए ज़िम्मेदार है. किसानों को धान, गेहूँ और गन्ने जैसी भूजल और नदीजल बरबाद करने वाली फ़सलें उगाने के बजाय कम पानी और रासायनिक खाद के बिना उगने वाली प्राकृतिक फ़सलों की ओर मोड़ना होगा. अपने कचरे को ख़ुद रिसाइकल करना सीखना होगा. सीखना होगा कि महामारी की तरह पर्यावरण में भी सबकी सुरक्षा में ही अपनी सुरक्षा है.
लंदन से शिवकांत, पूर्व सम्पादक, बीबीसी हिंदी रेडियो