कोरोना के बाद की दुनिया

हेमंत शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार दिल्ली से 

 कोरोना बाद की दुनिया कैसी होगी। यह सोच कर रोंगटे खड़े हो जाते है। भयावह तस्वीर उभरती है। दुनिया का खाका बदल जायगा। आर्थिक ताकतें बदल जाएंगीं। महामारी ही यह तय करेगी कि दुनिया का नेतृत्व कौन करेगा? हमारी प्रकृति बदल जायगी। नदियाँ और वनस्पतियॉं अपना स्वभाव बदल लेंगी। हमारी संवेदनाएँ बदल जाएंगी। रिश्ते बदल जायेंगे। आदतें बदल जाएंगीं। फिर आख़िर होगा क्या? जो ताक़तें परमाणु बम लिए घूमती फिरती थीं, उनके दंभ का क्या होगा? चीन और अमेरिका के पास टनों परमाणु बम का भंडार है। उनकी हेकड़ी निकल गयी है। वे प्रकृति को जीतने का दावा करते थे। प्रकृति की पुर्नरचना का खाका खींचते थे। अब वे एक वाईरस के आगे लाचार हो घिघिया रहे हैं। फिर भी अगर हम इस आपदा से बच गए तो क्या देखेगें? यह यक्ष प्रश्न है।

हम यह सोचने को मजबूर होंगे कि हमारी ज़रूरत अस्पताल है या मंदिर मस्जिद। समूची दुनिया में मंदिर, मस्जिद, चर्च बन्द हो गए। केवल अस्पताल खुले रहे। इस पर भी हम बदलने को तैयार नहीं हैं। देश में कटुता का माहौल बना हुआ है। फ़ेसबुक, ट्विटर देखिए तो असहिष्णुता इस विपदा में भी कम नहीं हुई है। कोई विचारधारा को गाली दे रहा है। तो कोई किसी को अनफ्रेन्ड कर रहा है। मित्रों, हम बचेंगे तो विचार बचेगा, तभी विचारधारा भी बचेगी। पहले ख़ुद को तो बचा लीजिए, फिर जनतंत्र की सोचिएगा। वाम-दक्षिण का निपटारा भी तब हो जायगा। इस वक्त आपसी तनाव कम कीजिए। कोरोना के बाद की दुनिया में तो तनाव ही तनाव होगा। हमें अंग्रेज़ी का अनुवाद ठीक करना चाहिए सामाजिक नहीं शारीरिक दूरी बनाएं। कोरोना की विपदा ने हमें  ये सिखा दिया है कि यह सामाजिक दूरी को पाटने का वक्त है।  

कोरोना बाद के भारत में हम आर्थिक लिहाज़ से 1991 के आसपास होंगे। ऐसा अर्थशास्त्रियों का आकलन है। बाज़ार को नियंत्रित करने वाला शेयर मार्केट तो पहले ही 2014 के पास पहु्ंच गया है। अर्थशास्त्रियों का आकलन है कि कोरोना के बाद भारत बड़ी कम्पनियों का क़ब्रिस्तान बन जायगा। मोटी जेब और कम क़र्ज़ वाले उघोग रह जायेगे। अनुमान है कि दो प्रतिशत विकास दर रह जायेगी। सीआईआई कह रहा है कि बावन प्रतिशत रोज़गार चला जायगा।

अख़बार उघोग पर बड़ा संकट आएगा। 2000 के बाद पैदा हुई पीढ़ी में वैसे ही अख़बार  पढ़ने की आदत नहीं है। वे आन लाईन अख़बार पढ़ते हैं। मेरे जैसे लोग जो पचास बरस से अख़बार पढ़ रहे हैं, 30 बरस से दस से ज़्यादा अख़बार पढ़ते हैं। मेरी वही रोज़ी रोटी है और वही विद्वता बघारने का साधन। मेरी भी अख़बार पढ़ने की आदत लॉकडाऊन ने बदल दी है। अब मैं आनलाइन अख़बार पढ़ने लगा हूँ। लॉकडाऊन के बाद भी इसे जारी रख सकता हूँ। तो सामान्य अख़बार पढ़ने वाले की आदत भी बदलेगी। अख़बारों की प्रसार संख्या में कमी आएगी ही।मनोरंजन चैनलों पर भी भारी विपदा आ सकती है। लोग हॉट स्टार और नेटफ्लिक्स की सीरीज के आदी होकर उनका रास्ता भूल सकते हैं। शिक्षा व्यवस्था में भी भारी बदलाव आएगा। मानव संसाधन मंत्रालय ने स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करा दी है। स्कूलों का मौजूदा ढाँचा बदलेगा। हर कहीं ऑन लाईन पढ़ाई शुरू हो गयी है। क्लास रूम अप्रासंगिक हो सकते है। और अध्यापक यही रह जायेगे । एप, और यू ट्यूब से पढ़ाई शुरू हो जायगी। प्रकृति से ज़्यादा लेना और कम देना नहीं चलेगा। घर में काम करने वाले लोगों के प्रति श्रद्धा बढ़ेगी। हमारे जीवन में उनका योगदान और मज़बूती से दर्ज होगा। बैंक बैलेन्स महज़ एक संख्या होगी। संकट काल में परस्पर प्रेम ,स्नेह और आपकी देखभाल करने वाला ही असली संम्पत्ति है। ज़रूरत, आराम और विलासिता में फ़र्क़ पता चल जायगा। हम इस नतीजे पर पहुँच जायेंगे कि आराम और विलासिता के बिना भी जीवन काट सकते हैं।

 अंहकार स्वाहा होगा। दुनिया सबसे ताकतवर के अंहकार को देख चुकी होगी। अमेरिका जैसा महाबली एक वायरस से युद्ध लड़ रहा है और हताश है। ये तो पूरी दुनिया में दादागिरी करता था। उसके पास बम, बंदूक, लड़ाकू विमान, गोला बारूद, मिसाइलों  की कमी नहीं है। लेकिन विडंबना देखिए कि न्यूयार्क में नर्सें कूड़ेदान से कपड़े और बरसाती निकालकर मास्क और रेनकोट बना रही हैं।हमें यहसोचना चाहिए कि किया  युद्ध की मानसिकता में रहने वाले इन राष्ट्रों  ने मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया है? क्या उसने युद्ध के आविष्कारों पर ज्यादा खर्च किया है और अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की उपेक्षा की है?

कोरोना बाद की दुनिया में पूरी दुनिया में चीन के प्रति नफ़रत और घृणा का भाव होगा। भले कोविड-19 चीन को दुनिया का नंबर एक अमीर, नंबर एक ताकतवर देश बना दे। यह नफरत इसलिए होगी कि उसने पूरी दुनिया में वायरस पहुंचाया है।अमेरिका, जापान, यूरोप महीनों अपने  लॉकडाउन से  आर्थिक बरबादी की कगार पर होगें । पर ये बाऊन्सबैक कर जायेगें । फँसेंगे वही देश जो पहले से ख़राब अर्थव्यवस्था में डूब उतरा रहे हैं।

 षड्यन्त्रकारी चीन की हालत देखिए। वहां हुबेई-वुहान भी पूरी तरह खुल गया है। राष्ट्रपति ट्रंप अपने राज्यों को संभाल नहीं पा रहे है तो जापान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर जैसे देश भी महीनों लॉकडाउन की नौबत में हैं। ऐसे में अकेले चीन के अलावा दुनिया में दूसरा है कौन,जिसका विदेशी मुद्रा भंडार, जिसकी वैश्विक फैक्टरी, जो दुनिया भर में माल सप्लाई कर रहा हैं?

कृपया इसे भी पढ़ें

https://mediaswaraj.com/प्रकृति-का-नाश-करने-वाली-त/1087

अब ये पूरी मानवता के लिए  जांच का सवाल है कि ऐसा कैसे हुआ कि यह वायरस दुनिया के तमाम देशों के भीतर कोने-कोने तक कैसे पहुँच गया। जिस  चीन ने वायरस पैदा किया, खुद उसके 34 प्रांतों (चार केंद्र शासित, पांच स्वायत्त, दो विशेष व 23 प्रांत) में कोई 15 प्रांतों में वायरस पहुंचा ही नही। यह कैसे हुआ की हुबेई से जहां पूरी दुनिया को सीधे कोरोना वायरस एक्सपोर्ट हुआ लेकिन चीन के प्रांतों में या तो हुआ नहीं या नहीं के बराबर हुआ! क्या वाईरस सिर्फ़ पासपोर्ट से विदेश गया। चीन के दूसरे शहरों में वह क्यों नहीं जा पाया। डेमेस्टिक उड़ान से क्यों नहीं दूसरे शहरों में गया। सड़क के रास्ते भी नहीं गया। केवल उन्हीं उड़ानो से वायरस गया जो विदेशी मुल्क में जा रही थी। यह सवाल मौजू है। चीन की साजिश उसके प्रति वैश्विक नफरत की आग भड़का सकती है।

 कोविड-19 वायरस जिस रफ्तार से दुनिया भर में फैला है, उसने दूनी रफ्तार से मानवता के लिए अहम सवालों को भी जन्म दिया है। केरल से लद्दाख तक, अमेरिका में सिएटल से न्यूयार्क तक, यूरोप में मिलान से लंदन तक इन सवालों की गूंज सुनाई दे रही है। दुनिया के कोने कोने में आने वाले बदलावों की आहट सुनी जा रही है। ये बदलाव सिर्फ भौतिक धरातल के ही नही होंगे, बदलाव हमारी सोच, समार्थ्य और मानसिकता के भी होेंगे।

कृपया तीस साल पुराना यह लेख  भी पढ़ें

https://mediaswaraj.com/archive-आत्मघाती-औद्योगीकरण-और/1171

 

pastedGraphic.png

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Back to top button