विश्वकर्मा पूजा हर साल 17 सितंबर को ही क्यों?
विश्वकर्मा पूजा पर पूजे जाने वाले भगवान विश्वकर्मा को वास्तुकार, शिल्पकार और समस्त देवी-देवताओं के महलों के निर्माता के रूप में जाना जाता है।
कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही स्वर्गलोक, द्वारिका नगरी और लंका समेत अनेकों भवनों का निर्माण किया था।
मान्यता है कि अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान ब्रह्मा के सातवें पुत्र के रूप में भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था।
हिंदू धर्म में सभी व्रत-उपवास और तीज-त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार तिथि के अनुसार ही मनाई जाती है।
लेकिन विश्वकर्मा पूजा एक त्योहार ऐसा है जो हर साल 17 सितंबर को ही मनाया जाता है।
किसके लिए हैं भगवान् विश्वकर्मा ख़ास
ज्योतिष गणना के अनुसार विश्वकर्मा जी की पूजा कन्या संक्रांति के दिन की जाती है।
इसके अलावा हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति हुई थी।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा शिल्पकार के रूप होने से उद्योग-धंधों, कारखानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानो में विशेष रूप से की जाती है।
विश्वकर्मा जयंती के मौके पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
इस बार कई जगहों पर विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर तो कुछ जगहों पर 17 सितंबर के दिन मनाई जा रही है।
विश्वकर्मा की पूजा उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो कलाकार, शिल्पकार और व्यापारी हैं।
ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में वृद्धि होती है।
धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वालों के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।
आखिर 17 सितंबर ही क्यों
भारत में कोई भी तीज व्रत और त्योहारों का निर्धारण चंद्र कैलेंडर के मुताबिक किया जाता है।
लेकिन विश्वकर्मा पूजा की तिथि सूर्य को देखकर की जाती है।
इसके चलते हर साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को आती है।
भगवान विश्वकर्मा की जयंती को लेकर कुछ मान्यताएं हैं।
कुछ ज्योतिषाचार्यो के अनुसार भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म आश्विन कृष्णपक्ष का प्रतिपदा तिथि को हुआ था।
वहीं कुछ लोगों का मनाना है कि भाद्रपद की अंतिम तिथि को भगवान विश्वकर्मा की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है।
वैसे विश्वकर्मा जयंती सूर्य के पारगमन के आधार पर तय किया जाता है।
कौन हैं भगवान विश्वकर्मा
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान ब्रह्मा के सातवें पुत्र के रूप में भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था।
भगवान विश्वकर्मा शिल्प में गजब की महारथ हासिल थी जिसके कारण इन्हें शिल्पकला का जनक माना जाता है।
इस समस्त ब्रह्मांड की रचना भी विश्वकर्मा जी के हाथों से हुई।
इस दिन देश के विभिन्न राज्यों में, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है।
ऐसी मान्यता है कि पौराणिक काल में देवताओं के अस्त्र-शस्त्र और महलों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था।
भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना जाता है।
भगवान विश्वकर्मा ने सोने की लंका, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज, भगवान शिव का त्रिशूल, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर और भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका को बनाया था।
इस बार 16 सितंबर को क्यों मनी विश्वकर्मा जयंती?
दरअसल ज्योतिष गणना के अनुसार विश्वकर्मा जयंती कन्या संक्रांति के दिन ही मनायी जाती है।
इस बार कन्या संक्रांति 16 सितंबर को पड़ रही हैं, इसी से 16 सितंबर के दिन विश्वकर्मा जयंती मनायी जा रहा है।
हालांकि 16 सितंबर के दिन विश्वकर्मा जयंती मनाने पर ज्योतिषाचार्य और पंडित एकमत नहीं हैं।
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं जयगोविंद शास्त्री का मानना है कि 17 सितंबर को विगत कई दशकों से यह जयंती मनाई जा रही है।
जबकि भारतीय वैदिक परंपरा के अनुसार देव शिल्पी विश्वकर्मा का प्राकृतिक पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को होता है।
वैसे तो प्रत्येक वर्ष विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर को ही मनाते हैं।
लेकिन इस बार कई जगहों पर विश्वकर्मा जयंती 16 सितंबर के दिन ही मनायी जा रही है।
16 सितंबर को अश्विनी पितृ पक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या का संधि काल है जिसके अनुसार किसी भी तरह से विश्वकर्मा पूजा संपन्न नहीं की जा सकती।
अन्य मतों के अनुसार यह 17 सितंबर को ही होगी।