पहलगाम हमला: देश को जवाब चाहिए, संसद का विशेष सत्र क्यों जरूरी है

शिवानन्द | 11 मई

पहलगाम में हाल ही में हुई जघन्य आतंकवादी घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। यह हमला ऐसे समय हुआ है जब सरकार दावा कर रही थी कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति पूरी तरह सामान्य है और आतंकवाद पर निर्णायक प्रहार किया जा चुका है।

अब देश यह जानना चाहता है कि यह हमला कैसे हुआ? इसके पीछे पाकिस्तान की क्या मंशा थी? क्या यह सुरक्षा तंत्र की विफलता नहीं है?

हमले के जवाब में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों पर सरकार द्वारा की गई हवाई कार्रवाई का पूरे देश ने समर्थन किया। लेकिन फिर अचानक युद्धविराम की घोषणा क्यों कर दी गई? क्या यह रणनीतिक निर्णय था या दबाव में लिया गया फैसला?

सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या भविष्य में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी घटनाएँ नहीं होंगी? देशवासियों को इन सवालों के जवाब चाहिए, और यह जवाब संसद में ही मिल सकते हैं।

इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार तत्काल संसद का विशेष सत्र बुलाए। यह लोकतंत्र की माँग है और पारदर्शिता की कसौटी भी।

नेहरू और वाजपेयी से सीखें

भारतीय जनता पार्टी अक्सर पंडित नेहरू की आलोचना करती रही है। लेकिन यह मानना होगा कि नेहरू जी में लोकतंत्र के प्रति गहरी निष्ठा थी। 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की माँग की थी, जिसे नेहरू ने स्वीकार किया। कुछ सांसदों ने गुप्त सत्र का सुझाव दिया, लेकिन नेहरू ने स्पष्ट कहा कि देश की जनता को सब कुछ जानने का अधिकार है।

जनता को जानने का अधिकार है

आज जब देश ने एक स्वर में कार्रवाई का समर्थन किया है, तो यह भी जानना ज़रूरी है कि यह सब कैसे और क्यों हुआ। अगर लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है, तो उसे जानकारी देना सरकार का कर्तव्य है। इसलिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की माँग पूरी तरह लोकतांत्रिक और न्यायसंगत है।

मैं भी उन सभी नागरिकों के साथ खड़ा हूँ जो इस विशेष सत्र की माँग कर रहे हैं।

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