गांधी जी की हत्या निरंतर क्यों जारी है
असली लक्ष्य अब गांधी विचार की हत्या ही है
बिमल कुमार
गांधी जी की निरंतर हत्या जारी है। आज गांधी जी की हत्या दो स्तरों पर हो रही है। एक, निकृष्टतम स्तर पर उनका चरित्र-हनन करने के लिए झूठ का बड़ा जाल बुना जा रहा है; व दूसरे, सुनियोजित ढंग से उनके विचारों की हत्या की जा रही है। इन दोनों के बीच एक अंतर्संबंध है, क्योंकि असली लक्ष्य अब गांधी विचार की हत्या ही है। यह समझना जरूरी है कि गांधी जी के भौतिक शरीर की हत्या किसी सिरफिरे का पागलपन नहीं था, बल्कि एक विचारधारा के शीर्षस्थ लोगों द्वारा रचा गया षड्यंत्र था। हत्यारे उस षड्यंत्र का क्रियान्वयन मात्र कर रहे थे।
जिस विचार के लोगों ने गांधी जी की हत्या का षड्यंत्र रचा, पहले उनके विचारों को समझें। वे जमींदारी समर्थक थे, वे रजवाड़ों के समर्थक थे, वे अंग्रेजी उपनिवेशवाद के प्रशासकों के चाटुकार थे तथा वे उस वर्ण व्यवस्था को मानने वाले थे, जिसमें शूद्रों व पिछड़ों तथा उनके श्रम के शोषण को जायज माना जाता था। इसी कारण वे पूंजीवादी साम्राज्यवाद के अंतर्गत भी श्रम करने वाले विभिन्न तबकों के शोषण की व्यवस्था के समर्थक थे। अपने इन विचारों को एक आवरण में ढंक कर, वे अपना विस्तार करना चाहते थे। वह आवरण था हिन्दुत्ववादी राजनीति का।
दूसरी ओर गांधी जी की विचारधारा (एवं कांग्रेस की भी) रजवाड़ा व जमींदारी विरोधी थी; उपनिवेशवाद एवं पूंजीवादी साम्राज्यवाद विरोधी थी; दलित उत्थान एवं दलितों व पिछड़ों को समान सम्मान देने को कृतसंकल्पित थी; श्रम की प्रतिष्ठा द्वारा वर्ण व्यवस्था एवं पूंजीवादी व्यवस्था दोनों में अंतर्निहित श्रम के शोषण को नकारने वाली थी तथा सर्वधर्म समभाव को मानने वाली थी। हिन्दुत्व की राजनीति एवं गांधी जी की हिन्दू धर्म में आस्था – इन दोनों दृष्टिकोणों में बुनियादी फर्क था। गांधी जी व्यक्तिगत जीवन में हिन्दू थे, किन्तु भारतीय रूप में वे भारतीय राष्ट्रीय स्वरूप के निर्माण के लिए सर्वधर्म समभाव को बुनियादी सिद्धांत मानते थे।
यहां यह भी समझना होगा कि भारत में राष्ट्र को धर्म के साथ जोड़ने का कुचक्र अंग्रेजी शासन ने शुरू किया था, जिसमें उनका सहयोग एक ओर मुस्लिम लीग ने तो दूसरी ओर हिन्दू महासभा एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने किया।
हिन्दुत्ववादी राजनीति अपने नये कलेवर में भी वर्ण आधारित शोषण की पोषक है। इसी कारण वह श्रम शोषण की भी समर्थक है, आरक्षण विरोधी एवं कारपोरेटी नव-उपनिवेशवाद की समर्थक तो है ही। गांधी की हत्या किये बिना आरक्षण का विरोध एवं पूंजीवाद के समर्थन को स्वीकार्य बनाना संभव नहीं होगा। हिन्दुत्ववादी राजनीति द्वारा गांधी जी को हिन्दू विरोधी सिद्ध करने की मुहिम तब शुरू हुई, जब उन्होंने हरिजनों को समान सम्मान देने का आंदोलन शुरू किया।
25 जून, 1934 को गांधी जी की हत्या का पहला प्रयास किया गया। यह हिन्दुत्ववादी राजनीति के उग्रवादियों द्वारा की गयी कार्यवाई थी। गांधी जी के अछूतोद्धार के आंदोलन के कारण हिन्दुत्ववाद की राजनीति करने वाले, देश भर में गांधी जी जहां भी जाते थे, वहां उनका उग्र विरोध करते थे। उन्हें हिन्दू-विरोधी घोषित किया गया। इसी उग्र विरोध की परिणति थी, 25 जून 1934 को उन पर प्राणघातक हमला।
अछूतोद्धार आंदोलन के आधार पर उन्हें हिन्दू-विरोधी नहीं स्थापित कर पाने पर, नयी रणनीति बनी कि उन्हें मुसलमान समर्थक बताकर हिन्दू विरोधी सिद्ध किया जाये। इसके लिए उनके सर्वधर्म समभाव के विचार को निशाना बनाया गया। इसी कारण हिन्दुत्ववाद की राजनीति सेक्यूलरिज्म एवं सर्वधर्म समभाव की विरोधी है। सर्वधर्म समभाव की अवधारणा को खत्म करने के लिए गांधी की हत्या जरूरी है।
जुलाई 1944 एवं सितंबर 1944 में भी गांधी जी की हत्या के प्रयास हुए। इन दोनों प्रयासों का नेतृत्व नाथूराम गोडसे ने किया। जून 1946 में गांधी जी की हत्या का पुन: प्रयास किया गया। गांधी जी जिस स्पेशल ट्रेन से जा रहे थे, उसको दुर्घटनाग्रस्त करने के लिए, ट्रैक पर बड़े-बड़े पत्थर रख दिये गये। ड्राइवर की सूझ-बूझ से गांधी जी तो बच गये, किन्तु इंजन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। ये कार्यवाई भी हिन्दुत्ववाद की राजनीति करने वाले उग्रवादियों द्वारा की गयी थी। इस प्रकार 1934 से 1947 के बीच, हिन्दुत्ववादी उग्रवादियों द्वारा उनकी हत्या के जो चार प्रयास किये गये, उनका भारत के बंटवारे से कोई संबंध नहीं था।
गांधी की हत्या आज भी जारी है, क्योंकि वे सर्वधर्म समभाव को खत्म करना चाहते हैं (मुस्लिम विरोध), आरक्षण खत्म करना चाहते हैं (दलित व पिछड़ा वर्ग का विरोध) एवं वैश्विक पूंजीवादी नव साम्राज्यवाद (यानी कारपोरेटी उपनिवेशवाद) का समर्थन करना चाहते हैं। और, यह तभी संभव है, जब गांधी विचार की हत्या हो जाये।