आखिर क्यों फेयर एंड लवली को उठाना पड़ रहा ये बड़ा कदम?

पीयूष त्रिपाठी, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजनीति विज्ञान 

हिंदुस्तान यूनीलीवर ने अपने त्वचा से जुड़े फेयरनेस उत्पाद ‘फेयर एंड लवली’ में से फेयर शब्द हटाकर एक नया उत्पाद पेश करने का निर्णय लिया है। इस कंपनी ने यह भी फैसला लिया है कि वह इस नए उत्पाद में दो तुलनात्मक तस्वीरों को शामिल नहीं करेगी। सोशल मीडिया पर कंपनी की इस पहल का स्वागत किया जा रहा है और किया भी जाना चाहिए।

भारतीय समाज में गोरेपन को लेकर अजीब सा सम्मोहन देखने को मिलता है। इस तथ्य के बावजूद कि गोरी चमड़ी वाले अंग्रेजों ने कम से कम तीन शताब्दियों तक भारत में क्रूरतापूर्वक शासन किया था और भारतीय स्वयं इस उत्पीड़न का शिकार रहे। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में इसी रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाई थी, जब उन्हें सारी योग्यता के बावजूद केवल इस कारण प्रथम श्रेणी में सफर करने से रोक दिया गया क्योंकि उनका रंग उस समय के शासकों जैसा ‘फेयर’ नहीं था।

इसके बावजूद भी भारत में गोरेपन का आकर्षण लगातार बना हुआ है। बॉलीवुड की अधिकांश फिल्मों के नायक गोरे और खलनायक सांवले या काले रंग के दिखाए जाते हैं। इसी तरह मालकिनों का रंग गोरा और सहायिकाओं का रंग सांवला अथवा काला दिखाया जाता है। इससे यह धारणा स्थापित करने में मदद मिलती है कि गोरी चमड़ी वाले गुणी, दयालु व योग्य हैं और दूसरे रंग की चमड़ी वाले इसके विपरीत हैं।

वैवाहिक विज्ञापनों व वेबसाइटों में ‘गोरी’ सुंदर, सुशील व गृहकार्य दक्ष कन्या की मांग की जाती है। दरअसल गोरेपन को सुंदरता का पर्याय बन दिया गया है। भारत में गोरेपन की इसी चाह का वाणिज्यिक दोहन फेयरनेस उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के द्वारा लगातार किया जाता जाता रहा है। इसके लिए आक्रामक विज्ञापन रणनीति का निर्माण किया गया। ‘सदी के महानायक’ द्वारा यह बताया जाता रहा है कि गोरेपन का सीधा संबंध आत्मविश्वास और कैरियर में आगे बढ़ने से है। महिलाओं के अलावा पुरुषों को गोरा बनाने वाली क्रीम भी बाजार में आ गई है। फेयर एंड लवली की निंदा करने वाली ‘स्वदेशी’ कंपनियां गोरेपन की क्रीम बेचने के रास्ते पर चल पड़ीं हैं।

भारत के लोकप्रिय देवताओं में से अधिकतर का रंग सांवला है। चाहे राम का रंग हो, या कृष्ण का अथवा विष्णु का। सभी श्याम वर्ण या नीले रंग के हैं। कालिदास रचित मेघदूतम में सौंदर्य के वर्णन के क्रम में श्यामा नायिका को महत्त्व दिया गया है।

लेकिन यहीं पर श्याम वर्ण का होना किसी के लिए उसकी अवांछित पहचान बन जाती है। सालों तक बिपाशा बसु और मल्लिका शेरावत की पहचान उनके त्वचा के रंग के आधार पर की जाती रही है। बॉलीवुड में बॉडी शेमिंग पर गॉसिप बनाना कोई अनोखी बात नहीं है।

बॉडी शेमिंग के इस मुद्दे पर 2019 में आयुष्मान खुराना तथा भूमि पेडणेकर द्वारा अभिनीत फिल्म बाला ने समीक्षकों का ध्यान खींचा। फिल्म का नायक बालमुकुंद शुक्ला उर्फ बाला अपने स्कूल के दिनों में सुंदर घने बालों को लेकर एक प्रकार का गर्व महसूस करता है तथा अपनी सहपाठी लतिका त्रिवेदी को उसके सांवले रंग के कारण लगातार चिढ़ाता रहता है। बाद में यही बाला अपने गंजेपन का मजाक उड़ाए जाने पर हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है। इसी गंजेपन को लेकर जब उसका पत्नी परी मिश्रा से तलाक की नौबत आ जाती है तब वही लतिका बाला का केस लड़ती है। बाला को यह बाद में समझ में आता है कि बॉडी शेमिंग वास्तव में आत्मविश्वास तोड़ने का काम करती है।

भारत में मोटेपन, नाटेपन, त्वचा के रंग, लम्बेपन, दुबलेपन आदि कारणों से लोगों का मजाक उड़ाया जाता रहा है। वस्तुतः इनमें से ज्यादातर चीजों पर मनुष्य का नियंत्रण नहीं है। यह जैविक कारकों का परिणाम है। हिंदुस्तान यूनिलीवर ने ‘फेयर एंड लवली’ से ‘फेयर’ हटाने का फैसला कर एक संवेदनशील और फेयर कदम उठाया है जिसका तहेदिल से स्वागत है।

(लेखक देवनागरी महाविद्यालय, गुलावठी, बुलंदशहर में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं)

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