बंदऊँ राम नाम रघुबर को –राम कौन हैं ?
डा चंद्र्विजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज
शास्त्रों में जिस राम के लिए कहा गया –रमन्ते योगिनोस्मिनिती रामः –अर्थात योगी जिसमे रमण करते हैं वही राम हैं |संतों ने निर्गुण राम की उपासना को उस नाव के रूप में समझा जिससे भवसागर पार किया जा सकता है –भवसागर अथाह जल तामे बोहिय राम आधार -कबीर |कबीर हिन्दू ,तुरुक को राम जपने की ही सलाह देते हैं –हमारे राम रहीम करीमा ,कैसो अलह राम सत सोई |जो विचार कबीर यह कह कर करते हैं की –राम मा दो आखर सारा ,कहै कबीर तिहूँ लोक पियारा |वही विचार तुलसी व्यक्त करते हैं –बंदऊँ राम नाम रघुबर को ,हेतु कृसानु भानु हिमकर को /विधि ,हरि ,हर मय वेद प्रान सो ,अगुन अनुपम गुन निधान सो //–अर्थात अब मैं श्री रघुनाथ जी के नाम राम की बंदना करता हूँ जो अग्नि , सूर्य ,तथा चन्द्रमा इन तीनो का कारण अर्थात -र -अ -म -रूप से बीज है |यह ब्रह्मा ,विष्णु और शिव रूप हैं ,वेदों का प्राण तथा अनुपम गुणों का भण्डार हैं |तुलसी के राम –महामंत्र हैं जिसे जपत महेशु |यही नहीं महिमा जासु जान गनराऊ प्रथम पुजियत नाम प्रभाऊ |इससे आगे बढे तो तो पार्वती जी भी राम नाम जपति रहती हैं –सहस नाम सम सुनि शिव बानी ,जपि जेई पिय संग भवानी /
नानापुराणनिगमागमसम्मतं–तुलसी ने राम के जिस स्वरूप को घर पहुंचा दिया ,वह राम लोकजीवन में इतने व्याप्त हो गए की उनके मंगलमय ,आदर्श ,कल्याणकारी रूप के प्रति जनमानस में श्रद्धा भाव जागृत हो गया और भारतीय समाज ने ही नहीं बल्कि विश्व समाज ने मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ साथ ब्रह्म के रूप में स्वीकार किया |
हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशित –सम्मलेन पत्रिका के मानस चतुशती अंक में डा रामकुमार वर्मा ने अपने लेख में रुसी हिंदी विद्वान् तिखानोव के साथ हुई वार्ता का उल्लेख किया है जो आज के सन्दर्भ में बहुत प्रासंगिक है |डा वर्मा ने तिखानोव से –सियाराम मय सब जग जानी –के आस्तिक कवि तुलसीदास का रामचरित मानस आपके देश में इतना लोकप्रिय क्यों है |तिखानोव ने उत्तर दिया –आप भले ही राम को अपना ईश्वर माने ,हमारे समक्ष राम के चरित्र की यह विशेषता है की उससे हमारे वस्तुवादी जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान मिल जाता है |इतना बड़ा चरित्र विश्व में मिलना असंभव है |
राम की विराटता को संकुचित न किया जाए ,वे किसी एक सम्प्रदाय विशेष के पुरुष या देवता नहीं हैं |यह विराट महानायक सम्पूर्ण मानवता का मर्यादा पुरुषोत्तम है |
ब्रह्म जो व्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद
सो की देह धरि होई नर जाहि न जानत बेद |