उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मजदूरों को कब तक मिलेगा वेतन?
सरकार ने समिति का कार्यकाल 6 महीने के लिए विस्तारित करते हुए 30 जून 2021 तक का समय दिया लेकिन कुछ समय तो कोविड-19 और कुछ समय श्रम विभाग की शिथिलता के चलते इस बार भी समिति कोई कार्यवाही वेतन पुनरीक्षण के संबंध में अपनी संस्तुतियों देने के संबंध में नहीं कर पाई और 30 जून को उसका कार्यकाल फिर समाप्त हो गया।
सरकार ने समिति का कार्यकाल 6 महीने के लिए विस्तारित करते हुए 30 जून 2021 तक का समय दिया लेकिन कुछ समय तो कोविड-19 और कुछ समय श्रम विभाग की शिथिलता के चलते इस बार भी समिति कोई कार्यवाही वेतन पुनरीक्षण के संबंध में अपनी संस्तुतियों देने के संबंध में नहीं कर पाई और 30 जून को उसका कार्यकाल फिर समाप्त हो गया।
उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मजदूरों का पिछला वेतन 30 सितंबर 2016 की राजाज्ञा के द्वारा पुनरीक्षित हुआ था और उक्त वेतनमान 1 अक्टूबर 2013 से 31 सितंबर 2018 तक के लिए लागू था। दिनांक 1 अक्टूबर 2018 से पुनरीक्षित वेतन लागू होना था, लेकिन सरकार द्वारा समय पर वेतन पुनरीक्षित ना किए जाने के कारण उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मजदूरों को वही मूल वेतन भटाई माता और सुविधाएं मिल रही है जो उन्हें 2013 से देय थीं। काफी जद्दोजहद के बाद प्रदेश सरकार ने सितंबर 2019 में प्रदेश में चीनी मिल मजदूरों के वेतन ढांचे और अन्य उपलब्धियों पर विचार करने के लिए श्रम आयुक्त उत्तर प्रदेश की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करते हुए उसे 6 महीने में अपनी रिपोर्ट शासन के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया था, जिससे कि वेतन पुनरीक्षित किया जा सके।
उक्त समिति का पूरा कार्यकाल समाप्त हो गया, लेकिन श्रम आयुक्त उत्तर प्रदेश के ढुलमुल रवैया समय से समिति की बैठते हैं ना हटाने और स्वयं बैठकों में उपस्थित न होने के कारण समिति का कार्यकाल पूरा भी हो गया और उच्च समिति कोई कार्य नहीं कर सकी।
सरकार ने समिति का कार्यकाल 6 महीने के लिए विस्तारित करते हुए 30 जून 2021 तक का समय दिया लेकिन कुछ समय तो कोविड-19 और कुछ समय श्रम विभाग की शिथिलता के चलते इस बार भी समिति कोई कार्यवाही वेतन पुनरीक्षण के संबंध में अपनी संस्तुतियों देने के संबंध में नहीं कर पाई और 30 जून को उसका कार्यकाल फिर समाप्त हो गया।
जुलाई 2021 में समिति द्वारा सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव श्रम आयुक्त उत्तर प्रदेश के माध्यम से प्रदेश सरकार को दिया गया कि वेतन समिति का कार्यकाल 6 माह विस्तारित कर दिया जाए ताकि वेतन पुनरीक्षण के संबंध में पक्षों से बातचीत के माध्यम से कोई अंतिम निर्णय पर पहुंचा जा सके। उक्त प्रस्ताव सचिवालय में पूरे 5 महीने तक फाइलों में लटका रहा और अंत में 2 दिसंबर 2021 को राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए वेतन समिति का कार्यकाल 6 महीने विस्तारित करते हुए समिति को अपनी रिपोर्ट 31 दिसंबर 2021 तक राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने का समय प्रदान किया। इस प्रकार समिति का कार्यकाल जो बढ़ाया गया उससे केवल 28 दिन का कार्यकाल समिति को मिला। 6 महीने विस्तारित कार्यकाल में 5 महीने का समय तो सचिवालय के एक कमरे से दूसरे कमरे में मंत्री और अपर मुख्य सचिव के बीच में ही फाइल घूमती रही।
अब बाकी जो 28 दिन बचे उसमें ही समिति की बैठकें करके, समिति को संदर्भित विन्दुओं का अध्ययन करके अपनी अनुशंसा सरकार को देनी है, लेकिन समिति के अध्यक्ष और श्रमायुक्त उत्तर प्रदेश महोदय इस दिशा में बिल्कुल गंभीर नहीं लगते क्योंकि पहले तो उन्होंने 9 दिसंबर को समिति की बैठक बुलाई, फिर अचानक 8 दिसंबर को शाम को बैठक स्थगित कर दी कि अब 9 दिसम्बर को होने वाली बैठक 22 दिसम्बर को होगी।
अब समिति के पास केवल 8 दिन का कार्यकाल होगा, उसमे भी 25 दिसम्बर को त्योहार और फिर दूसरी छुट्टियां हैं। कुल मिलाकर स्थिति ये बना दी गई है कि या तो एक बैठक में आम राय बन जाये नही तो मजदूर मजदूरी पुनरीक्षण की बात भूल जाये।
बहुत संभावित है कि दिसम्बर-जनवरी में विधानसभा चुनाव की तिथियां घोषित हो जाएं और सरकार को आचार संहिता लागू हो जाने का बहाना मिल जाये।
इस प्रकार, चीनी मिल मालिकों से मिलाजर सरकार और श्रम विभाग जान बूझकर मजदूरी पुनरीक्षण का मामला लटका रही है।
सरकार और श्रम विभाग, तथा वेतन समिति के अध्यक्ष श्रमायुक्त के इस रवैये से पूरे प्रदेश के चीनी मिल मजदूरों में घोर निराशा और आक्रोश व्याप्त है ।
इसी को लेकर उत्तर प्रदेश चीनी मिल मज़दूर संघर्ष समिति (इंटक, बीएमएस, हिन्द मज़दूर सभा, एटक, सीटू और निफ्टयू) की बैठक में निर्णय लिया गया है कि प्रदेश भर के चीनी मिलों के मज़दूर 20 दिसम्बर 2021 को सभी चीनी मिलों पर धरना-प्रदर्शन कर सरकार को नोटिस देंगे कि यदि 31 दिसम्बर के पूर्व वेतन समिति अपनी अनुसंशा सरकार को नही देती और मजदूरी पुनरीक्षित नही किया जाता, तो इसी पेराई सीजन में चीनी मिल में काम बंद हो जाएगा।
चीनी मिल मजदूरों को ये भी निर्णय लेना चाहिए कि यदि चुनाव के पूर्व सम्मानजक वेतन पुनरीक्षित नही होता तो किसी भी मौजूदा विधायक (वो चाहे जिस पार्टी का हो) को विधानसभा नहीं पहुंचने देंगे, क्योंकि मजदूरों की जायज बात सदन में न उठाकर उन्होंने अपने दायित्व का पालन नही किया है। यदि आप हमारे साथ हो रहे अन्याय पर चुप रहते है, तो आप हमारे नेता होने योग्य नहीं।
(लेखक अविनाश पाण्डेय अधिवक्ता एवं ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता हैं। वे हिन्द मज़दूर सभा, उत्तर प्रदेश के कार्यालय प्रभारी हैं।)
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