कोरोना काल में वर्चुअल रैली का अर्थ क्या हो सकता है?
डा. चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज
बिहार ,ओडिसा ,बंगाल में भारतीय जनता पार्टी की वर्चुअल रैली संपन्न हुई । प्रथम वर्चुअल रैली का सौभाग्य भारत के गृहमंत्री माननीय अमित शाह जी को मिला। सामान्य व्यक्ति कोरोना युग के इस आफत विपत्ति में वर्चुअल रैली
का अर्थ तलाशना चाहता है।
रैली का इस लोकतांत्रिक देश में बहुत ही महत्त्व रहा है। रैली शब्द किस भाषा का है यह अब अप्रासंगिक हो चुका है। किसी डिक्शनरी में इस शब्द का अर्थ क्या है यह भी महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है कि लोक की डिक्शनरी में इसका कब क्या अर्थ होता है। रैली को भारत की वोट देने वाली जनता चुनाव के शुरुआत के रूप में ही देखती है। फिर रैली का अर्थ जैसी जनता है किस राजनैतिक दल की रैली है उसका अर्थ फिर उस रूप में प्रतिपादित होता है। ज्यादातर वोटू जनता रैली को शक्ति प्रदर्शन के रूप मे लेती है। रैली का अर्थ वाहनों की संख्या के आधार पर भी लगाया जाता है। रैली के माध्यम से संगठन के शक्ति का प्रदर्शन भी हो जाता है। कुछ जनता रैलीको मेला के रूप में भी ले लेती है ,जहाँ उसकी बिरादरी का एक महान अवतारी पुरुष उड़न खटोला से उतरेगा ,रैली का अर्थ उसके दर्शन से भी जुड़ जाता है यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि वह क्या कहता है।
सामान्य जनता को समझने की बात यह है की रैली के साथ एक शब्द वर्चुअल भी जुड़ गया है। इसे समझने के लिए विकास -डेवलपमेंट नहीं उद्विकास -इवोल्युशन की और जाना होगा। इवोल्युशन की यात्रा में समाज के साथ जनता भी परम्परावाद से आधुनिकतावाद की ओर बढ़ी और जैसे ही उत्तर आधुनिकता वाद पर चढ़ी की कोरोनावाद आ डटा हम्मीरहठ की तरह से। पांच माह के कशमकश के बाद इस महान देश ने मान लिया कि देश को कोरोना के साथ ही चलना है। देश रहेगा ,देश के नागरिक रहेंगे और कोरोना भी रहेगा। किसे कैसे कहाँ रहना है यह स्वावलम्बन से खुद तय करना है। अब इस युग का नामकरण कोरोना युग हो जाये तो कोई अनुचित नहीं होगा। आगे चलकर उत्तर कोरोना युग का नामकरण इस आधार पर होगा की आदमी कोरोना के वश में है कि कोरोना आदमी के वश में। खैर यह बाद की बात है।
इतनी भूमिका क्षमा करें इस लिए बनानी पड़ी कि यह कोरोना युग के कारण जनता की रैली शब्द को वर्चुअल से सुशोभित करना पड़ा है। लोक अभी तक वर्चुअल से परिचित नहीं रहा है इसलिए इसका अर्थ लोक में ढूंढने के बजाय डिक्शनरी में ढूंढना पड़ेगा। डिक्शनरी में इसका अर्थ दिया गया है ,यथार्थ ,असली , परोक्ष ,आभासी मेरी समझ से आभासी सब से उपयुक्त शब्द होगा जो रैली का आभास कराएगा। बड़े मंच बड़े मैदान में तमाम प्रकार के वाहनों से जुटी वोटू जनता का आभास तो आज का आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस ही कराएगा ,इंटरनेट ,मोबाईल ,स्मार्टफोन ,टीवी ,यूट्यूब आदि आदि।
इस लेख का मेरा मकसद कतई राजनीतिक नहीं है मेरा उद्देश्य शुद्ध साहित्यिक रूप से दो शब्दों ,वर्चुअल और रैली के अर्थ बोध तक ही
सीमित है। दाएं ,बाएं यदि कुछ अन्य गंध कृपया न लें। अब यदि देश को कोरोना के साथ ही चलना है तो देश के माननीय गृहमंत्री जी का वर्चुअल रैली का आवाहन स्वाभाविक है। विरोधी दलों द्वारा इस रैली का विरोध इस कथन के साथ की डेढ़ सौ करोड़ इस महामारी में रैली में खर्च किया जाना अनुचित है ,यह चुनावी रैली है ,आदि आदि कहना भी स्वाभाविक है ,यह उनका कर्तव्य और धर्म निर्वहन है।
बिहार में शाह जी ने स्पष्ट कहा की बिहार की रैली का कोई मतलब बिहार के आने वाले चुनाव से नहीं है। उनकी रैली का उद्देश्य कोरोना वायरस के महाभारत में देशवासियों का उत्साह बढ़ाना है। बंगाल मे शाहजी ने रामकृष्ण परमहंस ,स्वामी विवेकानंद को याद करते हुए कहा कि वे कोविड -19 तथा तूफ़ान अम्फान के मृतकों को श्रद्धांजलि देने आये हैं। भारतीय परम्परावादी समाज में श्रद्धांजलि देना मृतकों के परिवार को पुण्य मन जाता है यह माननीय गृहमंत्री जी का धर्म निर्वाह है। बंगाल को सोनार बंगाल बनाने की बात कहते हुए शाह जी ने अपना भाषण दुष्यंत कुमार की गजल से की —
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है की सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में हो कहीं तेरे सीने में
हो कहीं भी आग अब आग जलनी चाहिए
तो इसे कहते हैं वर्चुअल .