किन बातों से परेशान हैं किसान

देश की अर्थव्यवस्था में जीडीपी का सर्वाधिक प्रतिशत कमाने वाले करोड़ो किसान परेशान हैं। देश की सरकारी नीतियों के कारण उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया है। अन्नदाता का जीवन चुनौती पूर्ण हो चुका है। कहीं, बाढ़ तो कहीं, आकाल तो कहीं, मौसम के मिजाज ने पहले ही किसानों की फसलों को बर्बाद कर दिया है।

तो दूसरी तरफ किसानों को मंहगाई की मार भी झेलनी पड़ रही है। जिसकी वजह से किसना आए दिन आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। हर क्षेत्र में मंहगाई हो ने की वजह से किसान न तो अच्छे किस्म के बीज खरीद पाते हैं न हीए उर्वरकए और किसानों के पास न तो अचित संसाधन हैं। मंहगाई तो बढ़ रही लेकिन किसानों का अनाज जो दिन रात मेहनत करने के बाद वह पैदा करते हैं उसका कोई उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। इसके चलते देश भर के छोटी जोत के कई खत्तावासी किसान अपनी उपज निजी हाथों में औने पौने दाम पर बेचने को मजबूर हैं। आज भारत के किसान खेती में अपना कोई भविष्य नहीं देखते हैंए उनके लिये खेती किसानी बोझ बन गया है हालात यह हैं कि देश का हर दूसरा किसान कर्जदार है।

2013 में जारी किए गए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़े बताते है कि यदि कुल कर्ज का औसत निकाला जाये देश के प्रत्येक कृषक परिवार पर औसतम 47 हजार रुपए का कर्ज है। इधर मौजूदा केंद्र सरकार की तुगलगी हिकमतें भी किसानों के लिए आफत साबित हो रही हैंए नोटबंदी ने किसानों की कमर तोड़ के रख दी है यह नोटबंदी ही है जिसकी वजह से किसान अपनी फसलों को कौड़ियों के दाम बेचने को मजबूर हुएए मंडीयों में नकद पैसे की किल्लत हुई और कर्ज व घाटे में डूबे किसानों को नगद में दाम नहीं मिले और मिले भी तो अपने वास्तविक मूल्य से बहुत कमए आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी के चलते किसानों को कृषि उपज का दाम 40 फीसदी तक कम मिला।

जानकार बताते हैं कि खेतीए किसानी पर जीएसटी का विपरीत प्रभाव पड़ेगाए इससे पहले से ही घाटे में चल रहे किसानों की लागत बढ़ जायेगीए मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी कर देने जैसे जुमले उछालने के आलावा कुछ खास नहीं किया है। आज भारत के किसान अपने अस्तित्व को बनाये और बचाए रखने के लिए अपने दोनों अंतिम हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके दाँव पर उनकी जिंदगियां लगी हुई हैं।

किन बातों से परेशान है किसान

  1. हमारे किसान भाइयों को कई समस्याओं का सामना तो करना ही पड़ता हैए उसी से जुड़ी हुई एक एक समस्या यह भी हैए कि आज के तकरीबन 10 साल पहले की अगर हम बात करें तो हमारे किसानों को खादए जैविक उर्वराए आदि जो कि कम दामों पर मुहैया कराए जाते थे। लेकिन आज के समया में इनके दामों में काफी वृद्धि हो गई है। और यह उनके लिए आफत का विषय बन गई है।
  2. इस मंहगाई के दौर में अगर हम बीजों की बात करें तो किसानों को आज के समय में बीज खरीदने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। अच्छे किस्म के बीज भी मुहैया नहीं हो पा रहे हैं। कहीं न कहीं उनमें भी कमी पाई जा रही है। हर चीज पर मंहगाई दिन ब दिन बढती जा रही है लेकिन किसानों की तैयार फसलों का मूल्य नहीं तय हो पाता है।
  3. मजदूरी के क्षेत्र में अगर हम बात करें तो किसान काफी परेशान है। बढ़ती मंहगाई के कारण सही समय और उचित दाम पर किसानों को मजदूर भी नहीं मिल पा रहे हैं।
  4. देश के आधे किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैंए सरकार ने इस बात को संसद में स्वीकार किया है। लेकिन उसका निवारण नहीं कर पा रही है। किसान आंदोलन तो कर रहा है। लेकिन उसकी बातों को अनसुना कर दिया जा रहा है।

आज देश के किसी भी क्षेत्र के किसान के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है वह आत्म निर्भरता जो उसे खेती से प्राप्त हो। खेती से आत्मनिर्भरता तभी आ सकती है जब या तो उसे उसकी उपज का बाजार के समतुल्य दाम मिले या फिर एक निश्चित जोत पर एक निश्चित सरकारी प्रतिपूर्ति की पक्की व्यवस्था हो जैसा कि पश्चिम के कई विकसित देशों में बहुत दिनों से है। यह सच है कि सरकार प्रतिवर्ष खाद्यान्नों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती हैं, लेकिन यह मूल्य किस मंहगाई को मानक मानकर निर्धारित किया जाता यह रहस्य ही होता है।

कुछ फांसी पर झूल गये
कुछ हो रहे हैं तैयार
पूछो उनके दिल से
जिनपर पड़ी कुदरत की मार
कभी वो सूखा सहते हैं
कभी सहते हैं बारिश की मार
कभी वो भूखे मरते हैं
कभी मरने को हैं तैयार
लोग यहां पर झूठे हैं
मौसम भी बेइमान हुआ
बेकार गई सारी मेहनत
फसलो को भी नुकसान हुआ
कहां गये वो तानाशाह
कहां गई वो खुद्दारी
रो रहा है बिलख रहा है
अन्न्दाता मरने को तैयार
फिर भी ऐसी हालत हो रही
आज वो हो रहा कर्जदार
बने हुए हैं धोखेबाज
किसान सेवा के ठेकेदार
अब बन्द करो यह बेइमानी
ईमान स्वयं का न बेचो
किसान हमारा अन्नदाता है
कुछतो उसके बारे में सोंचो

-सोने लाल वर्मा

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