कोरोना संकट में कैसे आत्मनिर्भर बनें गांव 

तीसरी सरकार अभियान द्वारा चर्चा का आयोजन

( मीडिया स्वराज़ डेस्क )

‘कोरोना का संकट और आत्मनिर्भर गांव’ विषय तीसरी सरकार अभियान द्वारा वेबीनार का आयोजन किया गया. अभियान के संस्थापक सदस्य डॉ चंद्रशेखर प्राण ने बताया कि  वर्तमान समय में कोरोना संकट से जूझ रहे  गांवों में  तात्कालिक एवं दूरगामी समाधानों पर ध्यान देने की ज़रूरत है. 

 रोजगार की तलाश में गांव से शहर गए कामगारों का बड़े पैमाने पर गाँव वापसी से जो तात्कालिक संकट पैदा हुआ है तथा भविष्य में उससे गाँव के पुनर्निर्माण का जो अवसर मिलने जा रहा है, उन दोनों पक्षों पर प्रतिनिधियों के बीच खुलकर विचार विमर्श हुआ।

सॉफ्टवेयर कंपनी  इंटेलेक्ट डिजाइन के  चेयरमैन तथा मिशन समृद्धि के संस्थापक  अरुण जैन ने वापस लौट रहे कामगारों के हुनर तथा उनकी व्यापारिक दक्षता को सही तरीके से पहचान कर उसके समुचित उपयोग के माध्यम से गांव की समृद्धि और खुशहाली की संभावना पर जोर दिया।

केंद्रीय विश्वविद्यालय  बिहार के पूर्व कुलपति प्रोफेसर जनक पाण्डेय ने कहा कि आने वाले समय में इस संकट का स्वरूप अनिश्चित है अतः ऐसी तैयारी की जानी चाहिए जो गंभीर से गंभीर संकट में भी सुरक्षित रह कर आगे बढ़ा जा सके।  उन्होनें स्थानीय समुदाय और स्थानीय संसाधन की महत्ता को ध्यान में रखते हुए भोजन और पानी की प्राथमिक जरूरत के साथ स्वास्थ्य और रोजगार के मुद्दों पर भी आगे बढ़ने का सुझाव दिया। 

दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन की कमिश्नर  रश्मि सिंह ने गांव लौट रहे लोगों के प्रति समुदाय की संवेदनशीलता को विशेष रूप से संदर्भित  किया। 

 शांतिकुंज हरिद्वार के बौद्धिक प्रमुख वीरेश्वर उपाध्याय तथा वहां के युवा प्रकोष्ठ के प्रभारी केदारनाथ दुबे ने गांव में आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रसार तथा भौतिक संसाधन की दृष्टि से स्वावलंबी जीवन शैली के विस्तार की आवश्यकता को वर्तमान संकट से उबरने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आयाम बताया। 

 हिंदुस्तान समाचार समूह के प्रधान संपादक तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष  राम बहादुर राय ने प्रधानमंत्री  द्वारा भारत की आत्मनिर्भरता  के आवाहन को नीतिगत बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए इसके लिए तीनों सरकारों (केंद्र, राज्य एवं पंचायत)के चुने हुए जन प्रतिनिधियों को आगे बढ़कर राहत और पुनर्निर्माण के कार्य में तन मन धन के साथ जुड़ने की आवश्यकता बताई। 

वनवासी सेवा आश्रम सोनभद्र की  प्रमुख शुभा प्रेम के अनुसार  गांव के लोग शहरों से वापस आ रहे हैं और उनको कुछ दिन के लिए अलग रखने की जो व्यवस्था करनी है  उसके लिए गांव में समुचित सुविधाओं का अभाव होने से बड़ी मुसीबत आ रही है।  इसके लिए समुदाय को ही संवेदनशील होकर तरीका ढूंढना होगा।  उन्होंने आत्मनिर्भरता के लिए स्थानीय स्तर पर ग्रामोद्योग के साथ  उसकी मार्केटिंग व्यवस्था पर विशेष ध्यान देने की बात की। 

 श्रमिक भारती कानपुर के प्रमुख राकेश पाण्डेय ने गांव की बढ़ी हुई जिम्मेदारी की चर्चा करते हुए नरेगा के माध्यम से दिए जा रहे रोजगार के संदर्भ में स्थायी ढांचागत निर्माण कार्यों पर विशेष ध्यान देने की बात की।उनके अनुसार जो भी सरकारी कार्यक्रम ग्रामीण विकास के लिए चल रहे हैं उसको सही रूप में क्रियान्वित कराने हेतु गांव के स्तर पर नेतृत्व विकास का कार्य प्राथमिकता के स्तर पर किया जाना चाहिए।  उन्होंने आग्रह किया कि वर्तमान संकट के समाधान के लिए सरकार की तैयारी कम पड़ने लगी है उसके लिए समाज को अब आगे बढ़कर जिम्मेदारी उठानी होगी। 

 मिशन समृद्धि की सह संस्थापक मंजू जैन ने कोरंटाईन सेंटर में रह रहे व्यक्तियों की मानसिक पीड़ा को कम करने हेतु नुक्कड़ नाटक, लोकगीत गायन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन का सुझाव दिया तथा वापस लौटे ग्रामीणों के कौशल के उपयोग से गांव के विकास को नई दिशा देने की बात की। 

पंचायत खबर नई दिल्ली के संपादक संतोष कुमार सिंह ने गांव से रोजगार के लिए बाहर जा रहे कामगारों का डाटा बैंक तैयार करने पर जोर दिया।  उन्होंने पंचायतों से यह अपील की कि वे अपनी अपनी पंचायत में यह व्यवस्था बनाएं तथा बाहर  गए कामगारों को बराबर अपने सम्पर्क में रखें जिससे पलायन का जो संकट  इस समय पूरे देश में देखने को मिल रहा है वह भविष्य में न घटित हो। 

राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त ग्राम पंचायत के प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी तथा प्रभाकर सिंह ने अपनी ग्राम पंचायत द्वारा शहर से वापस आ रहे गांव के लोगों के लिए की जा रही  व्यवस्था की विस्तृत जानकारी देते हुए उन दिक्कतों और विसंगतियों की चर्चा की जो उन्हें झेलनी पड़ रही है। 

दिलीप त्रिपाठी के अनुसार जहां गांव में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा विरोध और गलत अफवाह फैलाई जा रही है वहीं प्रभाकर सिंह के अनुसार सरकार के स्तर से जिस तरह के सहयोग व समर्थन की जरूरत ग्राम पंचायत को है वह नहीं मिल पा रही है। उनके अनुसार तीनों स्तर की  सरकारों के बीच समन्वयक एवं संयोजन का अभाव है जबकि इस समय पंचायत को बहुत सपोर्ट  की आवश्यकता है। 

दिलीप त्रिपाठी का मानना है कि जो कामगार इस संकट को झेले है वे लंबे काल तक शहर की ओर जाना नहीं चाहते भले उन्हें अपने गांव में कम साधनों के साथ गुजारा करना पड़े। 

प्रभाकर सिंह के अनुसार इस समय गांव में लोगों के लिए भौतिक साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके मानसिक और वैचारिक उत्थान का भी प्रयास किया जाना जरूरी है।  अन्यथा गांव में आने वाले समय में बहुत विवाद और संघर्ष होंगे जिससे गांव जीवन और खराब हो सकता है। 

इस संगोष्ठी में कानपुर की कम्युनिटी रेडियो की प्रभारी राधा शुक्ला,  तीसरी सरकार अभियान के क्षेत्रीय समन्वयक प्रमोद चौधरी ( उत्तरी क्षेत्र),  पवन श्रीवास्तव (पूर्वी क्षेत्र) तथा सुधीर त्रिपाठी (बुंदेलखंड क्षेत्र)के साथ-साथ सत्य प्रकाश,  कविता राठोर,  शैली,  डॉक्टर अर्जुन पाण्डेय आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। 

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