युद्ध की विभीषिका राम, गांधी और आम आदमी
गांधी जी शत्रुओं को भी माफ़ कर देने का आदर्श रामायण से पाते हैं
युद्ध की विभीषिका : राम और गांधी! राम एक ऐसे नायक हैं जो शत्रु पक्ष के शेष रह गए लोगों की नफ़रत नहीं पाते हैं । इसका कारण क्या है ? अपनी तरफ से युद्ध टालने की हर संभव कोशिश करना और युद्ध के उपरांत वह वैर को उचित नहीं मानते डॉ मुदिता तिवारी, असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, प्रयागराज का यह लेख महात्मा गांधी की तुलना राम से करता है .
क्या कभी मोर्चरी गए हैं ? यदि नहीं तो जाना चाहिए । हालांकि वहां लड़कियां नहीं दिखाई देती हैं, लेकिन कभी भ्रमण कर आना चाहिए । इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज का वह स्थान कैसा दुर्गन्ध युक्तहै उसे महसूस करना चाहिए । फिर पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों की भूमिका में स्वयं को रखना कर देखने व महसूस करने की जरूरत है। याद करिये ना उन डोम जाति के लोगों को भी , जो उस दुर्गन्ध के साथ रहने को अभिशप्त थे । जब तक उस दुर्गन्ध और पोस्टमार्टम के लिए गए मुर्दे की स्थिति को नहीं देखेंगे युद्ध की विभीषिका का अंदाज़ नहीं लगा सकते । जहां ऐसी असंख्य लाशें हों उस दृश्य को अब अपनी कल्पना की आंखों से देखिये-
काक कंक लै भुजा उड़ाहीं। एक ते छीनि एक लै खाहीं॥
कौए और चील भुजाएँ लेकर उड़ते हैं और एक-दूसरे से छीनकर खा जाते हैं।
खैचहिं गीध आँत तट भए। जनु बंसी खेलत चित दए॥
बहु भट बहहिं चढ़े खग जाहीं। जनु नावरि खेलहिं सरि माहीं॥
गीध आँतें खींच रहे हैं, मानो मछली मार नदी तट पर से चित्त लगाए हुए (ध्यानस्थ होकर) बंसी खेल रहे हों (बंसी से मछली पकड़ रहे हों)। बहुत-से योद्धा बहे जा रहे हैं और पक्षी उन पर चढ़े चले जा रहे हैं। मानो वे नदी में नावरि (नौकाक्रीड़ा) खेल रहे हों।
जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं। खाहिं हुआहिं अघाहिं दपट्टहिं॥
कोटिन्ह रुंड मुंड बिनु डोल्लहिं। सीस परे महि जय जय बोल्लहिं॥
गीदड़ों के समूह कट-कट शब्द करते हुए मुरदों को काटते, खाते, हुआँ-हुआँ करते और पेट भर जाने पर एक-दूसरे को डाँटते हैं। करोड़ों धड़ बिना सिर के घूम रहे हैं और सिर पृथ्वी पर पड़े जय-जय बोल रहे हैं।
कटी फटी लाशों के ढेर में मौज उड़ाते कुरूप जानवर कैसा वीभत्स वातावरण उत्पन्न करते है ।प्राण निकलने के बाद वह शरीर सब चिंताओं से मुक्त है लेकिन जो पीछे रह गए वो ? अगर तुमने उस मा का विलाप नहीं देखा जो अपने पुत्र के सहारे ही जीवित है और वह किसी और के कारण मर गया तो बहुत कठिन है उस हृदय विदारक चीख का अनुमान लगा पाना ।ईश्वर न करे किसी एक ही घर के कई सदस्यों की एक साथ मृत्यु हो , बहुत कठिन है उस स्तब्धता और बेसहारा होने के दर्द को बिना देखे अनुभव कर पाना । बहुत कठिन है उस बच्चे को महसूस कर पाना जिसने भविष्य के सपने संजोए हों और वह अभिशप्त हो जाय पिता की मृत्यु के कारण रोज़ की भूख के उपाय के लिए सारी प्रतिभा को दरकिनार कर देने के लिए ।यह सारी घटनाएं मेरे इर्द गिर्द के समाज में घटी हैं, जिनकी मैं भी साक्षी रही । इसीलिए युद्ध हमेशा दोनों पक्षों के लिए विनाशकारी होता है ।लेकिन इतिहासकारों की दृष्टि में युद्ध , उनकी घोषणाएं ,उनकी तिथियां, संधियां ,आंकड़े महत्वपूर्ण होते हैं ।इतिहास भोक्ताओं के अनुभव से नहीं लिखे जाते, उन अनुभवों से नहीं लिखे जाते जिनमें होता है भय ,आतंक, भूख ,तकलीफें, मानसिक और शारीरिक जरूरतें ।
इस तरह के युद्धों में हम केवल नायकों को दोष नहीं दे सकते हैं ।केवल रावण पर इसका भार डालने से वो सब बरी हो जाएंगे जिनके मन में भरी थी विरोधी पक्ष ,विरोधी मानसिकता के सर्वनाश की इच्छा ।
एक किशोरी की डायरी में एन फ्रैंक लिखती हैं,
“मुझे ऐसा नहीं लगता कि युद्ध केवल नेताओं और पूंजीपतियों की कारस्तानी होती है । नहीं ,इसके लिए सामान्य आदमी भी उतना ही जिम्मेदार है ;नहीं तो लोग और राष्ट्र काफी पहले इससे विद्रोह कर चुके होते । लोगों में विनाश की इच्छा होती है ,क्रोध और हत्या की इच्छा होती है । और जब तक बिना किसी अपवाद के यह पूरी मानवता रूपांतरित नहीं हो जाती, इसी तरह लड़ाइयां होती रहेंगी।”
अपने आसपास दृष्टि डालें तो देखेंगे कि दुर्भावना और विद्वेष का सम्बन्ध किसी खास धर्म ,सभ्यता और शिक्षा से नहीं होता । अन्यथा निरंतर बेहतर युद्ध उपकरणों की मांग बढ़ती न जाती ।
यह सिद्ध करता है कि सभ्यता के विकास के साथ -साथ मान लिए गए शत्रु के संपूर्ण विनाश की भावना में कोई परिवर्तन नहीं आया है ।
हिटलर कहता था,
” The war is to be a war of annihilation .”
( युद्ध सर्वनाश का युद्ध होना चाहिए)
रावण क्या कुछ अलग कहता है ? मेघनाद क्या कहता है ? राम और लक्ष्मण के बाद एक एक वानर की लाश बिछाकर अयोध्या का राजा बनूंगा । कट्टरता के समर्थक क्या कुछ अलग कहते हैं ?
रावण की कूटनीति को हिटलर के उदाहरण से समझा जा सकता हे ।हिटलर ने अपने राजनीतिक व आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए यहूदियों को धर्म के नाम पर शत्रु बनाया ।ईसा मसीह की मौत के लिए यहूदी जिम्मेदार माने जाते थे अतः यहूदी ईसाईयों के लिए घृणास्पद थे ।” Let it be upon our heads and that of children.” इस पहले से निहित घृणा का फायदा हिटलर ने उठाया । आर्य और अनार्य का संघर्ष पुराना है ।यह सत्ता का , छल और बल का संघर्ष रहा है । इसकी कहानियां ही नहीं ,इससे उपजी घृणा ,वैमनस्य नई पीढ़ी को विरासत में मिलती है ।इसीलिए युद्ध समाप्त हो जाते हैं, लेकिन नफरतें नहीं ।
राम एक ऐसे नायक हैं जो शत्रु पक्ष के शेष रह गए लोगों की नफ़रत नहीं पाते हैं । इसका कारण क्या है ? अपनी तरफ से युद्ध टालने की हर संभव कोशिश करना और युद्ध के उपरांत वह वैर को उचित नहीं मानते । बाल्मीकि रामायण में विभीषण रावण को दाह संस्कार के योग्य नहीं मानता ।इस पर राम कहते हैं,
“वैर मरने तक ही रहता है ।मरने के बाद उसका अंत हो जाता है। अब हमारा प्रयोजन भी सिद्ध हो चुका है, अतः इस समय जैसे यह तुम्हारा भाई है ,वैसे ही मेरा भी है ;इसलिए इसका दाह संस्कार करो ।”
अब याद करिये गांधी जी का कथन ,”पाप से घृणा करो पापी से नहीं ।” भारत पराधीन मुस्लिमों से भी रहा और अंग्रेजों से भी ।लेकिन भारतीयों में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ वो घृणा नहीं है जो मुस्लिमों के प्रति है ।जबकिमहावीर प्रसाद द्विवेदी जी की अनुसार ,अंग्रेज़ यहां का सारा खज़ाना इंग्लैंड ले गए ।क्लाइव भारत से सात पानी केजहाज़ सोना भर कर इंग्लैंड ले गया । उन्हीं के अनुसार ,जितने लोग पूरे विश्व में दो महायुद्ध में नहीं मरे उससे अधिक किसान अंग्रेजों की गलत नीतियों के चलते अकाल में मारे गए ।मुगलों ने मध्य एशिया की राजनीति से स्वयं को काट लिया ।वह भारत में ही बसे और उसे ही उन्नत किया ।इस कथन में उनके द्वारा किए गए धार्मिक अत्याचारों का समर्थन नहीं है लेकिन उनके द्वारा की गई भारत की आर्थिक सांस्कृतिक उन्नतियों को नकारा नहीं जा सकता ।लेकिन उन युद्धों में भारत को गांधी जी जैसा, राम जैसा नायक नहीं मिला जो यह कहता कि बैर मरने तक ही रहता है । यह श्रेय कुछ गांधी जी को जाता है और कुछ अंग्रेज़ों को स्वयं जिन्होंने अपने खिलाफ उभारने वालीनफरत को बड़ी कुशलता से मुसलमानों कि तरफ मोड़ दिया ।
यहां अप्रासंगिक नहीं होगा यह बताना कि 1905 में बंग भंग की सामूहिक विरोध से बौखलाए लॉर्ड मिंटो ने कांग्रेस की नीतियों को विफल बनाने के लिए सांप्रदायिक नीतियों का सहारा लिया। 1909 के संवैधानिक सुधारों में अंग्रेजों ने मुसलमानों को आवश्यकता से अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया ।इतिहास की शिक्षाओं के विरुद्ध धर्म और वर्गों को जीवित किया गया। हिंदू और मुसलमान को विरोधी गुटों के रूप में स्थापित किया गया।पहले से ही विद्यमान नफरतों को और भड़काया गया ।
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इस संदर्भ में हम देखें तो महर्षि वाल्मीकि ने भारत को राम जैसे नायक की जो सांस्कृतिक विरासत सौंपी वह अद्भुत है । वह अनुकरणीय और प्रशंसनीय ही नहीं वंदनीय भी है । निश्चित तौर पर राम, श्रीराम कहलाए जाने के योग्य है ।
यह संयोग मात्र नहीं है कि भारत भूमि के चप्पे-चप्पे के आराध्य जैसे राम हैं वैसे कोई और नहीं । राम अपने जीवन में न कैकेई के प्रति वैर भाव रखते हैं ,न बालि के प्रति,न रावण और असुरों के प्रति । धिक्कार है उन्हें जो राम के नाम पर वैर को विरोधियों की मृत्यु के बाद भी जीवित रखते हैं ।
राम किष्किंधा और लंका से न एक रुपया लेते हैं ,न अपने हरम के लिए कोई स्त्री ,न अपने राज्य में मुफ्त काम कराने को दास । वह विभीषण के द्वारा दिए गए मोती ,माणिक्य ,सोने आदि को वानरों के मध्य बांट देते हैं । खाली हाथ आए थे ,सबके दिल का प्रेम लेकर और उसमे सड़ रही नफरत मिटा के चले गए । इतिहास की पढ़ाई मेरी बहुत नहीं है लेकिन मेरी जानकारी में रामायण के बाद आर्य और असुरों के युद्ध की कोई कहानी नहीं है ।विभीषण जीवित रहा ,रानियां और स्त्रियां जीवित रहीं तो वह जाति भी बची ही होगी । लेकिन बचे लोगों ने राम के इस स्वभाव को देखकर उनके प्रति नफ़रत नहीं रखी ।उदाहरण के रूप में दो विलाप दे रही हूं –
पहला विधवाओं का सामूहिक विलाप
” हाय जिसका पेट धंसा हुआ और आकार विकराल है, वह बुढ़िया शूर्पणखा वन में कामदेव के समान रूप वाले श्री राम के पास काम भाग लेकर कैसे गई – किस तरह जाने का साहस कर सकी ?… कहां सर्वगुणसंपन्न ,महान बलशाली तथा सुंदर मुख वाले श्रीराम और कहां वह सभी गुणों से हीन दुर्मुखी राक्षसी ! उसने कैसे उनकी कामना की ? जिसके सारे अंगों में झुर्रियां पड़ गई हैं ,सिर के बाल सफेद हो गए हैं तथा जो किसी भी दृष्टि से श्रीराम के योग्य नहीं है, उस दुष्टा ने हम लंकावासियों के दुर्भाग्य से ही खर, दूषण तथा अन्य राक्षसों के विनाश के लिए श्रीराम का धर्षण ( उन्हें अपने स्पर्श से दूषित करने का प्रयास) किया था ।… कुबेर का छोटा भाई रावण विभीषण की बात मान लेता तो यह लंकापुरी इस तरह दुख से पीड़ित हो श्मशान भूमि नहीं बन जाती ।… उद्दंड और दुर्बुद्धि रावण के अन्याय से यह शोकसंयुक्त घोर विनाश हम सबको प्राप्त हुआ है ।”
दूसरा मंदोदरी ,रावण की पटरानी का विलाप
“पहले आपने अपनी इंद्रियों को जीत कर ही तीनों लोकों पर विजय पाई थी ,उस वैर को याद रखती हुई – सी इंद्रियों ने अब आप को परास्त किया है ।काम और क्रोध से उत्पन्न आपके आसक्ति विषयक दोष के कारण यह सारा ऐश्वर्य नष्ट हो गया और जड़मूल का नाश करने वाला यह महान अनर्थ प्राप्त हुआ ।आज आपने समस्त राक्षसकुल को अनाथ कर दिया ।।”
इस संदर्भ में गांधी जी के प्रयासों को देखें तो पाकिस्तान को दिलवाए गए ५५ करोड़ रुपए उसकी मदद ही नहीं थी ,बंटवारे के साथ नफ़रत को ख़तम करने देने का भी राम प्रयास था ।लेकिन यह दुर्भाग्य है कि जीवन और राष्ट्र की उन्नति के प्रयासों को छोड़कर पाकिस्तान ने उस वैर भाव को सदैव जीवित रखकर अपना तो नाश किया ही ,भारत के शांति प्रयासों को भी व्यर्थ किया । यह भारत का सौभाग्य है कि उसे हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने पंचशील जैसा सिद्धांत दिया । यहां यह भी कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि इंदिरा गांधी जी ने बांग्लादेश के निर्माण की जो सूझ बूझ दिखाई वह बेमिसाल थी ।अगर राम कहते हैं कि मरने के साथ वैर समाप्त हो जाता है तो यह भी कहते हैं कि
भय बिनु होई न प्रीति
यदि हम सामर्थ्यवान नहीं होंगे तो वैरी प्रीति पूर्ण व्यवहार नहीं रखेगा । गांधी जी जानते थे कि भारतीय अंग्रेज़ों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करने का कौशल और निपुणता नहीं रखते थे ।अतः अहिंसा को अस्त्र बनाया ।अन्यथा अंग्रेज़ों ने किस बेरहमी से लोगों को मौत के घाट उतारा होता ।जब जलियांवाला बाग में वो निहत्थों पर गोली चला सकते थे तब उनकी बर्बरता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है ।
जीवन वैविध्य से भरा है ।राम जीवन के अनगिनत उतार चढ़ाव से गुजरते हैं लेकिन कभी भी धर्म विरुद्ध आचरण नहीं करते हैं ।धर्म की भारतीय परिभाषा पर हम पहले बात कर चुके हैं ।
अंत में यही कहूंगी कि भारत भूमि धन्य है जिसमें बाल्मीकि जैसे कवि हुए, जिन्होंने आदि काव्य का नायक राम जैसे जन नायक को चुना ।वह जन मानस धन्य है, जिसने ऐसे महान नायक को अपना आदर्श माना ।यह संयोग मात्र नहीं है कि पीठ दिखा कर भाग रहे शत्रु पर भारत वार नहीं करता । शत्रुओं को भी माफ़ कर देने का यह आदर्श भारतीय परम्परा से , रामायण से गांधी जी पाते हैं ।
यह संयोग मात्र नहीं है कि स्वाधीन भारत के लिए गांधी जी जो सपना देखते हैं, वह है रामराज्य का सपना ।
अंत में ऐसे जननायक के लिए एक जयकारा तो बनता ही है
सिया बर रामचंद्र की ..
लेखिका डॉ मुदिता तिवारी , आर्य कन्या डिग्री कॉलेज , प्रयागराज, सम्बद्ध इलाहाबाद विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।
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