आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की स्मृतियों का जीवंत…

हिंदी के युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 18 वर्षों तक सरस्वती का संपादन किया.
साहित्यिक पत्रिका होते हुए भी आचार्य द्विवेदी ने सरस्वती को विविध विषयों से भरा विश्वव्यापी मंच बनाया. समय-समय पर उन्होंने लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति की खामियों की चर्चा करते हुए अन्य देशों की शिक्षा पद्धति को अपनाने पर बल भी दिया.

यह लेख आचार्य द्विवेदी के उसी पक्ष को समाज के सामने रखने वाला है..

= बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के इतिहास में यह वर्ष भी खास मुकाम रखता है. 100 साल पहले 13 दिसंबर 1921 को विश्वविद्यालय का औपचारिक उद्घाटन हुआ था. विश्वविद्यालय में पढ़ाई अपने भवनों में शुरू हुई थी. बीएचयू का इतिहास सब जानते ही हैं. बीएचयू की स्थापना वैसे तो 1916 में ही हो गई थी. डॉक्टर एनी बेसेंट द्वारा स्थापित सेंट्रल हिंदू कॉलेज में 1917 से पढ़ाई भी शुरू हो गई थी. बीएचयू की स्थापना में महाराजा दरभंगा रामेश्वर सिंह, काशी के महाराजा प्रभु नारायण सिंह, उच्च न्यायालय के प्रमुख बैरिस्टर सर सुंदर लाल, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय और डॉक्टर एनी बेसेंट का प्रमुख योगदान था. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सोसाइटी वर्ष 1911 में गठित हुई थी. महाराजा दरभंगा उसके अध्यक्ष और सर सुंदरलाल सचिव नियुक्त हुए थे.

▪︎ बीएचयू में औपचारिक पढ़ाई शुरू हो जाने के 2 वर्ष बाद आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में निकलने वाली सरस्वती के 1919 के मई और जून के अंको में दो किस्तों में अमेरिका में नीग्रो जाति के लिए संचालित स्कूल की विस्तार से रिपोर्ट- “नीग्रो जाति का प्रधान शिक्षालय टसकेजी” – नाम से प्रकाशित हुई थी.

=आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

इन दोनों रिपोर्ताज के अंत में लेखक के नाम पर “अमेरिका का एक यात्री” लिखा गया है. ऐसा अनुमान है कि इस प्रधान शिक्षालय की अंग्रेजी की किसी रिपोर्ट को आचार्य द्विवेदी ने ही अनुवाद किया होगा. भारत में स्किल डेवलपमेंट की जो जरूरत आज महसूस की जा रही है, अमेरिका में 100 साल से अधिक समय से साधारण शिक्षा के साथ-साथ कार्य विशेष की शिक्षा बच्चों को दी जा रही थी. नीग्रो जाति का यह शिक्षालय अपनी तरह का एक अनूठा गुरुकुल था.

यह दोनों रिपोर्ट बताती हैं कि अमेरिका के धन संपन्न लोग अपने देश और श्वेत अश्वेत लोगों
की समुन्नति के लिए किस तरह से शिक्षालयो को अपना खजाना दान में दे रहे थे.
” इस संस्था को एक छोटा सा कस्बा कहना उचित होगा इस कस्बे का क्षेत्रफल 2345 एकड़ भूमि है, यहां पर छोटे बड़े सब मिलाकर 107 मकान है उनमें शिक्षालय के भिन्न-भिन्न विभाग छात्रालय तथा शिक्षकों के रहने की जगह भी शामिल है यहां पर छोटी-बड़ी सब मिलाकर कोई 40 भिन्न प्रकार के व्यवसायिक विषयों में शिक्षा दी जाती है जिसका विशेष रूप से मैं यहां के अधिकारियों की भाषा में ही वर्णन करूंगा. इस छोटे से कस्बे में उत्तम 7 साल के हैं जैसी कि हमें कलकत्ते
के चौरंगी पर मिलती है तार टेलीफोन बिजली का प्रकाश साफ शुद्ध जल निगम की जरूरत की जगह मिले पानी के बह जाने के लिए बंद संध्या से इत्यादि सभी आधुनिक प्रकार के आराम के बाद जरूर याद के सामान यहां हैं इस सब सामान के लिए धन भी कोई 50 लाख रुपए व्यय हुआ है

– रिपोर्ताज का एक अंश.

▪︎ इस रिपोर्ट के बहाने आचार्य द्विवेदी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापकों को अपरोक्ष रूप से यह संदेश दे रहे थे कि भारत में शिक्षा किस तरह की होनी चाहिए? रिपोर्ट में ही कहा गया है-” इससे हिंदू तथा मुसलमान विश्वविद्यालय के अधिकारियों को लाभ उठाना चाहिए. मुझे एक बात यहां और कह देनी है मुझे डर है कि हम लोग अपनी संस्थाओं पर व्यर्थ अधिक धन केवल बेहूदी पर सर्फ कर देते हैं और अपना विचार केवल इंग्लिशतान की संस्थाओं के अनुरूप बनाते हैं. मैंने सुना था कि हिंदू विश्वविद्यालय के मंत्री महाशय का यह विचार है कि टेक्नोलॉजी के विषय के पढ़ाने के लिए ही एक करोड़ रुपए की जरूरत है किंतु यहां 40 विषयों की टेक्निकल शिक्षा का प्रबंध केवल 50 लाख में ही हो गया है.

=आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

लीड्स, मैनचेस्टर व ग्लास्गो के विश्वविद्यालयों में भी इतना भी नहीं देख पड़ता जितना कि हमें
अपने यहां के मंत्री महाशय बताते हैं. हम लोगों ने यहां का पुस्तकालय, छात्रालय, साधारण शिक्षालय और विस्तृत शक्ति शाला ( Power House) जो कि निर्माण हो रही है देखी”

रिपोर्ट में लिखा यह अंश पढ़े

” रात्रि को हमने साधारण शिक्षा की रीति देखी. उसकी एक बात यहां लिखना आवश्यक जान
पड़ता है जिस कक्षा को हम देख रहे थे वह सातवीं कक्षा थी. यहां पर मैकेनिक्स पढ़ाई जा रही थी, जो हमारे यहां ऐसे में पढ़ाई जाती है. विषय लीवर ( Lever) था. हमारे यहां काले तख्ते पर भिन्न-भिन्न रेखा की उसका यह विषय समझा दिया जाता है चाहे विद्यार्थी की समझ में आवे या नहीं किंतु यहां की रीति दूसरी थी यहां पर इस विषय के पाठ के लिए एक एक पहिया की बोझा ढोने की गाड़ी थी कुछ ईट थी और एक तराजू, एक बालक गाड़ी की कंपास पकड़कर उसे उठाए हुए था काले तख्ते पर गाड़ी का बोझा तौल कर लिखा था.

लखनऊ की चर्च जहां जुनून फ़िल की शूटिंग हुई थी(Opens in a new browser tab)

ईटों का बोझा भी लिखा था, आदमी को कंपास उठाने में कितना बल लगाना पड़ेगा यह जानने की आवश्यकता थी पहले गणित की रीति से वह निकाला गया फिर आदमी के हाथों को हटा वहां कमानीदार तराजू लगाकर वही ज्यों का त्यों दिखा दिया गया लड़कों की समझ में गणित भी आ गई और लीवर का वास्तविक उपयोग भी. यह तीसरे प्रकार के लीवर का उदाहरण था. जिनको वास्तविक ज्ञान सिखाना मंजूर होता है. उन्हें इस प्रकार शिक्षा दी जाती है हमारे यहां की शुष्क रीति पर नहीं.

=आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

कुल 14 पेजों में समाहित इन दोनों रिपोर्टों के आखिर में – “अमेरिका का एक यात्री” के रूप में सरस्वती में लिखा गया है-“ मैं चाहता हूं कि इससे हिंदू मुसलमान विश्वविद्यालय भिन्न-भिन्न गुरुकुल जैसी संस्था तथा प्रेम महाविद्यालय उपयोगी बातों का पता लगा उन्हें कार्य रूप में परिणत करें. देश और समाज के लिए अच्छा होता यदि हिंदू विश्वविद्यालय इस ढंग पर बनता. हमें इस समय जितनी आवश्यकता निपुण लोहार बढ़ाई दर्जी आज व्यवसायियों तथा भिन्न-भिन्न यंत्र कला कृषकों की है. उतनी वकीलों तथा सफेदपोश बाबुओं की नहीं है. ईश्वर हमें बुद्धि दे कि हम अपनी वास्तविक आवश्यकताओं को समझें और उसके पूर्ण करने में दत्त चित्त होकर लगे”

▪︎1919 के जून अंक में ही सरस्वती में एक लेख ” शिक्षा का अंतिम उद्देश्य” शीर्षक से भी छपा. इसके लेखक थे, गोपाल दामोदर तामस्कर एम ए. अपने इस लेख में गोपाल
दामोदर लिखते हैं-

  1. वही मनुष्य समाज योग है जिसका भार समाज पर नहीं जो अपना वोट आप उठा ले सकता है जो अपना उधर कोई भी योग्य कार्य करके भर सकता है
  2. वही मनुष्य समाज योग्य है जो अपना बोझ तो उठाता है ही पर दूसरों के कामों में अनावश्यक दखल बिल्कुल नहीं देता
  3. वही समाज योग्य है जो यह दोनों बातें करके अपनी शक्ति के अनुसार समाज की और तरह से भी सहायता करता है वो लिखते हैं-
  4. असली शिक्षा से प्रत्येक व्यक्ति में यह तीनों बातें पैदा होनी चाहिए इस उद्देश्य में बाकी सब उद्देश्य समाविष्ट हैं जो शिक्षा इस प्रकार के मनुष्य तैयार नहीं कर सकती वह शिक्षा शिक्षा कहलाने योग्य नहीं उसे तुरंत बदल देना चाहिए नहीं तो सामाजिक सुख और उन्नति कदापि ना होगी और ना वह राष्ट्र बहुल काल तक अपनी जिंदगी कायम रख सकेगा क्या हिंदुस्तान की शिक्षा प्रणाली इस उद्देश्य के माप से निश्चित की गई है?”

आचार्य द्विवेदी और सरस्वती की इन चिंताओं को अगर समय रहते उस समय के शिक्षाविदों ने समझ लिया होता तो आज भारत में कुशल श्रमिकों की कमी तो ना ही होती. अपनी कुशल मानवि की क्षमता के आधार पर भारत कबका ग्लोबल लीडर बन चुका होता?

गौरव अवस्थी पत्रकार
गौरव अवस्थी

गौरव अवस्थी
रायबरेली (उप्र)
91-9415-034-340
( लंबे समय से हिंदी दैनिक हिंदुस्तान की पत्रकारिता से संबंध और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की स्मृतियों को जीवंत बनाने के काम में बीते दो दशक से संलग्न हैं)

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