विनोबा भावे वैदिक ऋषि के समकक्ष हैं : श्री गौतम बजाज
विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति
लखनऊ (विनोबा भवन) 1 सितम्बर।
विनोबा जी उनका जीवन वैदिक ऋषि के समकक्ष है . उनके सामने वेदमाता ने जिस प्रकार से अपना अर्थ प्रकट किया है, वह भिन्न कोटि का है। ।
आज से सौ साल बाद जब विनोबा जी का स्थूल स्वरूप मंद हो जाएगा, तब उनका दिव्य रूप प्रकट होगा।
विनोबा जी ने वेद मंत्रों का अर्थ अनुभव और साक्षात्कार से किया है। उनके सामने वेद और उपनिषद अपने गूढ़ अर्थ खोलकर रख देते हैं।
वैदिक ऋषि के साथ उनका गहरा संबंध था। हमारे उत्तम कार्य का मूल्य हमारे मन में होना चाहिए।
उक्त विचार सत्य सत्र के वक्ता ब्रह्मविद्या मंदिर के निवासी श्री गौतम बजाज भाई ने विनोबा जी की 125 जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में व्यक्त किए।
श्री गौतम भाई ने कहा कि जब विनोबा जी की मां का देहांत हुआ, तब वे श्मशान में नहीं गए और वेदमाता का आश्रय लिया।
उन्होंने वेद और उपनिषदों का दूध पीकर मां के गर्भ में प्रवेश किया था। ध्यान से देवताओं का स्पर्श श्री गौतम भाई ने कहा कि ध्यान से देवताओं का स्पर्श हो सकता है।
विनोबा जी कहते हैं कि देवता अपना स्वरूप प्रकट कर सकते हैं। उन्होंने वेद का जो भी अर्थ ग्रहण किया है उसे अनुभव की कसौट पर कसा है।
विनोबा जी ने किसी भी मंत्र का चुनाव बिना सााक्षात्कार के नहीं किया है।
गृत्समद ऋषि और विनोबा
श्री गौतम भाई ने कहा कि विनोबा जी का गृत्समद ऋषि से पक्षपात दिखायी देता है। गृत्समद ऋषि वस्त्र विद्या के जनक थे। उनका गणित से भी संबंध था।
वर्धा से चालीस मील दूर गृत्समद ऋषि ने गणेश की स्थापना की। उनकी उपासना की।
इसके पहले इंद्र, अग्नि की उपसाना होती थी।
श्री गौतम भाई ने बताया कि विनोबा जी ने गृत्समद ऋषि पर दो लेख लिखे।
वे भी कताई-बुनाई और गणित में निष्णात रहे।
गुजराती कवि मकरंद दवे ने को विनोबा जी के गृत्समद होने की अनुभूति हुई। विनोबा जी और गृत्समद ऋषि में काफी साम्य है।
विश्वात्म भाव
वेद में विश्वात्म भाव दिखाई देता है जो अन्यत्र दुर्लभ है। वामदेव में।विश्वात्म भाव प्रकट हुआ है।
विश्वात्म भाव में ऋषि अपने लिए गेहूं, तिल, जौ आदि की मांग करता है, जबकि उनका पेट छोटा-सा है।
वैसे ही विनोबा जी ने भूदान, ग्रामदान, संपत्तिदान और अंत में जीवनदान मांगा।
यह विनोबा जी का विश्वात्म भाव ही है।
स्थूल रूप बाधक
श्री गौतम भाई ने कहा कि विनोबा जी के स्थूल कार्यों का रूप उन्हें समझने में बाधक है।
जब सांसारिक कार्यों से उन्हें देखने की कोशिश छोड़ देंगे, उनका स्थूल रूप कम दिखायी देगा तब उनकी भव्य और व्यापक झांकी दिखायी देगी।
उन्होंने कहा कि शरीर के परदे में व्यापक नहीं हो सकते।
महापुरुष अव्यक्त में अधिक काम करने में सक्षम होते हैं।
पश्य देवत्व काव्यं
श्री गौतम भाई ने कहा कि विनोबा जी ने इसका अर्थ मृत्यु के लिए किया है।
मृत्यु को इश्वर का काव्य कहा है। आदमी अभी-अभी सांस ले रहा था और अभी मृत्यु हो गयी।
कुछ समय बाद फिर जन्म लेंगे और सांस चलने लगेगी।
विनोबा जी की मृत्यु ऐसी रही जिसमें किसी को भी शोक अथवा दुख का स्पर्श नहीं हुआ, बल्कि आनंद से नाचने लगे।
पृथ्वी का अंत कहां है
श्री गौतम भाई ने कहा कि वेद में प्रश्न है पृथ्वी का अंत कहां है और उसका मध्य बिंदु कौन-सा है।
तब ऋषि जवाब देते है। जहां बैठा हूं वह इस पृथ्वी का मध्य बिंदु है।
विनोबा जी ने हमेशा माना है कि यदि हमारे कार्य से दूर कोई पवित्र जगह मानेंगे तब हम अपनी आध्यात्मिक पूंजी खो देंगे।
हमारे उत्तम कार्य का मूल्य हमारे मन में होना चाहिए।
जो हम कर रहे हैं वही दुनिया का केंद्र बिंदु है। यही महान कार्य है।
अपने कार्य को तीव्रता और एकाग्रता करने का परिणाम दुनिया पर आए बिना नहीं रहता।
चीन से मुकाबले के लिए ग्रामदान रक्षा कवच
प्रेम सत्र की वक्ता शरणिया आश्रम आसाम की सुश्री कुसुम मौकाशी ने कहा कि विनोबा जी ने आसाम के संत शंकरदेव और माधवदेव को पूरे देश में पहुंचाने का काम किया। उन्होंने नामघोषा में से चयन कर नामघोषा नवनीत निकाला।
उन्होंने बताया कि चीन हमारे लिए आज चुनौती है।
विनोबा जी ने आसाम की पदयात्रा के समय कहा था चीन के मुकाबले के लिए ग्रामदान रक्षाकवच है। आज आसाम में 312 ग्रामदानी गांव हैं।
आसाम में नामघर सामूहिक साधना के केंद्र हैं।
सुश्री कुसुम बहन ने उनके द्वारा आसाम में किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी।
करुणा सत्र की वक्ता सुश्री तृप्ति पण्ड्या ने विनोबा विचार को लेकर उनके जीवन में आए परिवर्तन को साझा किया।
उन्होंने अपने नर्मदा परिक्रमा के अनुभव भी सुनाये।
संचालन श्री संजय राॅय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना।
डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे