संचार क्रांति से बदलते गाँव की तस्वीर
संचार क्रांति से बदलते गाँव पूरी दुनिया से जुड़ गए हैं और पिछले पाँच – छह दशक में ग्राम जीवन में काया बदलाव आए हैं एक झलक पेश कर रहे हैं दिनेश कुमार गर्ग.
संस्कृत की एक कहावत है “यदि वांछसि मूर्खत्वं वस् ग्रामे दिन त्रयम्” इस कहावत को पहली बार इस अपने बाल्यकाल में सुना था. यानी सन्1963-64 का समय रहा होगा जब एक संस्कृत विद्वान मेरे बाबा के मेहमान होकर गाँव के घर आये और दूसरे दिन जब वह जाने को तैयार हुए तो उनसे और रूकने का आग्रह किया गया जिस पर उन्होंने यह श्लोक बोलकर हमारे पूरे परिवार को चुप करा दिया था ।
तब गाँव वही गाँव हुआ करता था जो मध्यकालीन इतिहास का गांव हुआ करता था ,बस दो-चार नयी बातें गाँव में हुई थीं – मिट्टी का तेल यानी केरोसिन आयल आ गया था ,डाकखाना खुल गया था, प्राइमरी स्कूल बन गया था , कोलगेट मंजन और चाय आ चुकी थी । कोलगेट मंजन ..क्या निराला अह्सास होता था वह जिस दिन बाबा के गुस्लखाने से मंजन वाली ट्यूब उडा लेते थे और हम कई भाई लोग (ममेरे,फुफेरे, चचेरे, पडोस के दर्जन भर भाई) सफेद मीठे सनसनाते मंजन को उंगलियों में ले दूध के दांतों में मलते और पिपरमिंट की सुवास,ठंडक से मुंह महमहा उठता । बचपना था , नीम की कडवी दातुन की जगह मीठा मंजन , न केवल दांत मलते बल्कि खा भी लेते थे इस बात से बेफिक्र कि यह पेस्ट कैंसरकारी है ।
इसी तरह लिपटन और ब्रुकबाण्ड की चाय – बाबा दोनों तरह की ब्रांड रखते थे । सोशलिस्ट नेताओं की पसन्द बिस्कुट और ब्रुकबाण्ड की चाय थी ,तो कांग्रेस के नेताओं की पसन्द लिपटन की चाय हुआ करती । बिस्कुट दोनों तरह के नेताओं मैं काॅमन था। सोशलिस्टों में राजनारायण अकेले ऐसे नेता हुआ करते थे जो घी, मट्ठा और चने की घुघुरी मांगते थे। डाॅ मुरलीमनोहर जोशी भी चाय सुबह सवेरे चार बजे ही पसन्द करते । जाहिर है कि वे नौकर जो रात में दरवाजे पर सुरक्षा व सेवा के लिए तैनात रहते वे भी प्रातःकालीन शौचादि क्रिया के लिए मील भर दूर गये रहते ऐसे में अतिथि सेवा का जिम्मा हम बच्चों को जगाकर दिया जाता। तो चाय के लिए केरोसीन स्टोव जलाने , पानी चढाने, दूध, चाय की पत्ती, चीनी, अदरक ,काली मिर्च और इलायची भी कूट पीस कर उपलब्ध करानी पडती। इतनी सेवा की एवज में आधी कप सुगन्धित मीठी चाय,, आहा वह सुबह स्वर्ग की सुबह हो जाती ।
फिर पण्डित जी ने क्यों रूकने के आग्रह को तिरस्कार पूर्वक ठुकराया था – आज अब पता लगा है कि वह कारण था कनेक्टिविटी – शेष विश्व से कनेक्ट रहने के लिए, अपडेट रहने के लिए। तब मेरे गांव में दिल्ली और प्रयागराज के अखबार डाकखाने से चिट्ठी की तरह आते थे 4दिन-5दिन बाद । रेडियो बाबा के पास तब नहीं था।
बाबा बताया करते थे कि अंग्रेज जो भी विकास यानी नहर व स्कूल अपनी योजना से करते थे , जैसे नहर बनवायी पर उसकी सडक वाली पटरी पर भारतीय घुड़सवार नहीं चल सकता था, बैलगाड़ी से माल लादकर नहीं जा सकते थे । वह नहर बताते हैं कि लन्दन स्टाॅक एक्सचेंज में लिस्टेड थी , उसमे इन्वेस्टर्स का पैसा लगा था ।
मेरे बचपन तक न केवल भारत स्वतंत्र हो गया था , जमींदारी का विनाश हो चुका था , लोग जमीनों के मालिक बनकर खुदकाश्त हो चुके थे और लोगों के हाथ वोट करने की ताकत आ चुकी थी ।
लोग सरकार बना-बिगाड सकते थे ,इसलिए सरकार के नेता गाँव वालों की विकास की मांग – सडक , नहर , बिजली देने की मांग पर ध्यान देने लगे । जिस वर्ष मैं प्राइमरी में कक्षा 2 में पहुंचा , एक दिन देखा कि बाजार की तरफ से मेरे स्कूल की ओर एक मिट्टी की सडक बनती चली आ रही है। सैकडों मजदूर खेतों में गडाही खोद खोद कर मिट्टी के 40 फीट चौडी लाइन पर डालते एक सडक का निर्माण करते मेरे स्कूल के सामने से आगे मीलों दूर तक चले गये ।
मेरा गांव बदलने लगा क्योंकि सडक बने अभी माह भर भी नहीं हुआ कि बीडीओ साहब की जीप उस सडक से दौडते पेट्रोल की सुगंध बिखेरते बाबू जी के दरवाजे खडी हुई । बाबू जी यानी पिता जी के चचेरे बडे भाई ब्लाक प्रमुख थे । फिर तो नेताओं ने साइकिलों की जगह जीपों से आना शुरू कर दिया ।
सन् 1972 आते आते बिजली भी गयी , सडक भी पक्की बनी, बस चलने लगी, सिंचाई के लिए रस्टन पडा इंजन और किर्लोस्कर खडा इंजन आ गये और खेतों फव्वारे फूटते दिखना आम बात हो गयी , रासायनिक उर्वरक और उन्नत मोडिफाइड बीज आने से अनाज का उत्पादन बढ़ा तो लोग अमरीकी सडे गेहूं पीएल 480 के लिए लाइन लगाने के अपमान से उबर गये पर विकास की सर्वप्रमुख चीज संचार यानी रेडियो टेलीफोन , टेलीविजन पहुंचते पहुंचते मैं किशोरवय को पारकर जवानी तक पहुंच गया, तब कहीं जाकर मेरा गाँव संचार से पूरे तौर पर जुड गया ।
1947 में देश की स्वतंत्रता के साथ कायाकल्प का जो कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ वह गाँव के पूरे विश्व के साथ जोड़ने पर लगभग पूरा हो गया ।
अब बचा है तो केवल जोड़ने के काम को फाइन ट्यून करने का । अभी बिजली जाने पर नेटवर्क चला जाता है , नेट स्ट्रीमिंग 4जी बतायी जाती हे और मिलती है 2 जी से भी नीचे की । 5 जी पर काम चल रहा है , ऐसे में अभी उपलब्ध सुविधा को सतत उपलब्ध बनाये रखने और नेट स्पीड को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लाने का बहुत बडा काम पडा है ।
सुना जाता था कि मोदी हर गांव की पंचायत या प्राथमिक पाठशाला तक हाईस्पीड नेट का जाल बिछवा रहे है और यह सुनते सुनते काफी समय बीत चुका है और अब लगता है कि खुद मोदी जी भी पंचातों/प्राथमिक स्कूलों को हाईस्पीड नेट से जोडने के उस महत्वपूर्ण काम को भूल चुके है क्योंकि अब काफी दिनों से वह इसका जिक्र नहीं कर रहे हैं । फिर भी यह स्थिति है कि टूटी-फूटी नेट कनेक्शन के साथ ही हमारा गाँव पूरी तरह अमरीका से लेकर न्यूजीलैंड तक 24 घण्टे जुडा रहता है और विश्व की हर बात से हमारे ग्रामीण भाई-बहन उसी तरह अवगत होते रहते हैं जैसे हम नगरों के लोग।
तो अब अगर वह पण्डित जी मेरे गांव आयेंगे तो यह नहीं कहेंगे कि यदि वांछसि मूर्खत्वं वस् ग्रामे दिनत्रयम्।