परमेश्वर एक होते हुए भी उपासको ने उसे बहुविध नाम दिए हैं
वेद चिंतन विचार : एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति
आचार्य विनोबा भावे
अस्यवामीय सूक्त
यह सूक्त ऋग्वेद के प्रथम मंडल में आया है।इस सूक्त में बाबन मंत्र हैं। उसी में एक बहुत प्रसिद्ध मंत्र – एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति अग्नि यमम् मातृश्वानमाहुः आया है।उसका अर्थ है ,सत् एक ही है। उपासना के लिए उपासक भिन्न भिन्न रूप पसंद करते हैं।अग्नि यम ,मातरिश्वा यानी वायु ये सारे एक ही परमेश्वर के भिन्न-भिन्न गुणवाचक भिन्न-भिन्न नाम है। परमेश्वर प्रसिद्ध निर्गुण है, अर्थात अनंत गुणवान है। उपासक को अपने में जिस गुण के विकास की आवश्यकता अनुभव होती है, वह उस गुण वाले भगवान की भक्ति करता है ।कहीं इंद्र की उपासना है, कहीं यम की, कहीं अग्नि की ,कहीं वरुण की। लेकिन जब जिसकी उपासना की है ,अन्य सभी को उसी में समाहित किया है। अग्नि की स्तुति करते समय कहा है, तुझमें इंद्र, वरुण, यम सभी विद्यमान है। इसी प्रकार इंद्र की उपासना की है, तब अन्य सब देवगण उसी के अंतर्गत बताए हैं। सूर्य की स्तुति में कहा है, सविता प्रसविता यानी प्रेरणा देने वाला । यह उषा सबको जगा रही है। इससे जागकर मनुष्य संसार के कार्यों में लगेंगे । भगवान का एक अंश पकड़कर ही उसका स्पर्श किया जा सकता है , उसका पूर्ण दर्शन किया जा सकता है। भिन्न-भिन्न देवगण एक ही परमात्मा की भिन्न-भिन्न विभूतियां हैं। परमेश्वर एक होते हुए भी उपासको ने उसे बहुविध नाम दिए हैं। संपूर्ण परमेश्वर एक ही अभिव्यक्ति में समाना संभव नहीं है । अतः प्रथम उसकी भिन्न-भिन्न अभिव्यक्तियों का विश्लेषण करना और फिर उन सब का संश्लेषण करना और अंत में उसके भी आगे जाकर सोहमाश्मि इस अनुभव में लीन हो जाना है।
ऋचो अक्षरे
ऋग्वेद के पहले मंडल में दीर्घतमस ऋषि का मंत्र है- वेद की सारी ऋचाएँ यानी वेद -मंत्र, एक अक्षर में, एक परमेश्वर -नाम में ,जो कि हृदय के परम आकाश में छिपा हुआ है, बिठाए हुए हैं। उसको जो नहीं जानेगा, वह वेद के मंत्र लेकर क्या करेगा?
वह अक्षर ॐ माना गया । वही सब में रम रहिया राम है। नामानुभूति का प्रथम उदगार जो हमें वाग्मय में मिलता है, वह वेद है। ऋग्वेद में नाम शब्द तो सौ – एक बार आया होगा ,लेकिन सारे वेद का सार परमेश्वर – नाम ही है, ऐसी उपनिषदों ने घोषणा की है – सर्वे वेदा यत पदम आमनंति – सारे वेद ईश्वर के नाम का ही आमनन करते हैं।
इसी पर से वेद को आमनाय यानी परमेश्वर का नाम का आमनन करने वाला, ऐसी संज्ञा मिली है ।आमनन यानी विस्तृत मनन । मतलब,जब तक उस परम अक्षर का ज्ञान नहीं हुआ ,तब तक वेद का आधार लेना चाहिए। जिस परम अक्षर के आधार पर सारे वेद खड़े हैं, उसे ही नहीं पाया, तो वेद लेकर क्या करेंगे? और यदि उसे पा लिया है ,तो स्वभाविक ही वेद की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।