वेद चिंतन विचार :पृथ्वी का अंत कहां है?
विनोबा भावे
अयम यज्ञो भुवनस्य नाभि: वैदिक ऋषि को जब किसी ने प्रश्न किया कि – पृथ्वी का अंत कहां है? तो उस बहादुर ऋषि ने सीधा जवाब दिया- यह मेरा यज्ञ त्रिभुवन का केंद्र, मध्य विंदु है और हम इस यज्ञ की भूमि वेदी यह ज्ञानभूमि, जहां से मुझे ज्ञान मिला है , वह संपूर्ण पृथ्वी का अंत है।
ऋषि यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ के लिए वेदी बनायी गयी थी । ऋषि ने कहा , सारी पृथ्वी का अंतस्थान वह वेदी है और यह यज्ञ सारे विश्व का केंद्र बिंदु है। ऐसा जब मनुष्य मानता है तब जीवन एक मिशन ,एक यज्ञ बन जाता है और वह पवित्र होता है।
पवित्र स्थान और कहीं है , हम जहां काम कर रहे हैं वह स्थान पवित्र नहीं, ऐसा अगर हम मानेंगे, तो ईश्वर- दर्शन की कुंजी खो बैठेंगे। जहाँ हमारा जन्म हुआ और जहां हमें सेवा की बुद्धि मिली, वही स्थान त्रिभुवन में अधिकाधिक पवित्र है, ऐसी अनुभूति होगी ,तभी परमेश्वर- दर्शन की कुंजी हाथ में आएगी ।
परंतु अगर कोई कहे कि जहां हम रहते हैं, वही पवित्र स्थान है और बाकी नहीं, तो वह गलत है। तब तो हम जीवन ही गवा देंगे। जहां हम रहते हैं, उसी स्थान में हमारा जीवन – सूत्र हमारे हाथ में आना चाहिए।