वाराणसी , काशी विश्वनाथ कोरिडोर : तोड़े गए मंदिरों की बहाली का अभियान 

 

लंका थाना एक कमरे में रखे शिवलिंग

साध्वी पूर्णाम्बा, वाराणसी से 

साध्वी पूर्णाम्बा

भारत की पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्रीमती इन्दिरा गाँधी के समय की परियोजना को,  जिसे इन्दिरा गाँधी सहित उनके बाद की अनेक सरकारें लागू नही कर पाई , वर्तमान सरकार ने कर दिखाया। यह  काशी में विश्वनाथ मन्दिर के चारों ओर स्थित मन्दिरों को तोड़कर एक आधुनिक स्वरूप देने की योजना है, जिसे कभी विश्वनाथ मन्दिर सुन्दरीकरण, विश्वनाथ कोरिडोर, गंगा पाथ-वे या विश्वनाथ धाम आदि नाम दिया गया। इस परियोजना में भगवान् विश्वनाथ को ही महत्वपूर्ण दर्शाये जाने की योजना हैं जबकि काशी में अनेक प्राचीन और पौराणिक मन्दिर हैं जिनका वर्णन स्कन्दपुराण में है। 

इस स्कन्द पुराण को स्थल पुराण भी कहते हैं। जिस प्रकार से आज के आधुनिक लोग नक्शे के आधार पर कहीं पर भी पहुँच जाते हैं उसी प्रकार भारतीय परम्परा में स्कन्द पुराण के आधार पर लोग उस स्थल विशेष पर पहुँच जाते हैं। इस पुराण के अन्तर्गत ही यह कथा आती है कि जब भगवान् विश्वनाथ काशी से दूर होने के कारण व्याकुल हो गये थे तब उनको पुनः इस स्थान पर बसाने में इन अनेक देवी-देवताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है जो काशी में भिन्न-भिन्न स्थानों पर विराजमान हैं। अतः इन सबका महत्व भगवान् विश्वनाथ से किसी भी रूप मे कम नहीं।

भारत माता लक्ष्मी माता

परन्तु भारत की मुख्य समस्या  यह है कि यहां पर शिक्षा में धर्मशास्त्रों के अध्ययन का समावेश नहीं है और धार्मिक स्थलों की व्यवस्था करने का अधिकार धर्म निरपेक्ष सरकारों को प्राप्त है। परिणामस्वरूप ऐसे अफसर नियुक्त होकर मन्दिर का प्रबन्धन देखते हैं जिनको धर्म का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं। जबकि होना यह चाहिए कि जिस प्रकार स्वास्थ्य के विषय मे चिकित्सक की सलाह ली जाती है उसी प्रकार धार्मिक विषयों में धर्मशास्त्रियों की सलाह ली जानी चाहिए पर काशी विश्वनाथ मन्दिर के सन्दर्भ में ऐसा नहीं हो रहा.

कृपया इसे भी देखें : https://mediaswaraj.com/shrikashivishwantah_corridor_varanasi/

विगत 2018 से ही मन्दिरों को तोड़ने का क्रम आरम्भ हुआ और यह कहा गया कि लोगों ने अपने घरों में मन्दिरों को छिपा लिया है जबकि भारत की पूजा-पद्धति कुछ ऐसी है कि प्रातः 4 बजे की मंगला आरती से लेकर रात्रि की शयन आरती तक की नियमित दिनचर्या स्थापित देवमूर्तियों के लिए उसी प्रकार उपचारित होती हैं जैसे कि एक 5 वर्ष के बच्चे की। कानून के अनुसार भी देव विग्रह को 5 वर्ष का ही मानकर उसकी सेवा बताई गयी है। अतः इस हेतु पुजारी को मन्दिर के आस-पास रहना आवश्यक होता है और जब पुजारी रहेंगे तो उनके साथ परिवारजन भी होने से स्नानादि का भी नियत स्थल होता ही है। 

टूटा हनुमान मंदिर

मन्दिर और घर साथ होने का एक अन्य कारण मुगलकालीन आक्रमण भी है। मन्दिर के शिखर को छिपाकर काशीवासियों ने कुछ इस तरह से घर बनाए जिससे उनके देवस्थान सुरक्षित रह सकें पर जिन लोगों को विपरीत परिस्थितियों में भी इन अमूल्य देवस्थानों के संरक्षण के लिए अभिनन्दित किया जाना चाहिए था, उन लोगों को प्रशासन द्वारा मन्दिर चोर कहा गया।

विगत 2018 से ही यह क्रम आरम्भ हुआ जिसमें मन्दिरों को तोड़कर फेंका गया और मूर्तियों को बिना किसी विधि-विधान के ही बडी निर्दयता से मलबे में फेंक दिया गया।अपनी नगरी को उजड़ता देख कुछ आस्तिकों ने यथाशक्ति विरोध किया तो कुछ लोगों ने सरकारी दबाव में आकर अपने भवन, मन्दिर आदि प्रशासन को दे दिए। कॉरिडोर क्षेत्र में आने वाले मोहल्लों के लोग पूज्य स्वामिश्रीः के पास आकर अपने भवनों, मन्दिरों  को बचाने का निवेदन करने लगे।

पूज्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज जो ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के प्रतिनिधि होने के साथ ही साथ परम धर्मसंसद् 1008 के प्रवर धर्माधीश भी हैं।  उनके निवेदन को स्वीकार कर उन्होंने टूटते हुए मन्दिरों  को बचाने के लिए मन्दिर प्रशासन से बात करनी चाही। उन्होंने मौखिक भी कहा, लिखित पत्र भी दिए, ईमेल और रजिस्ट्री से भी अपनी बात भेजी और प्रधानमंत्री कार्यालय में साक्षात् भी पत्र  रिसीव करवाया। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने मन्दिर न तोड़ने का मौखिक आश्वासन दिया पर जमीनी स्तर पर मन्दिर विध्वंस रुकता हुआ न देखकर स्वामिश्रीः ने मन्दिर बचाओ आन्दोलन आरम्भ किया। इस अभियान के अन्तर्गत अनेक कार्यक्रम हुए जिनमें  प्रमुख रूप से स्वामिश्रीः द्वारा स्वयं नंगे पैर ज्येष्ठ मास में पैदल चलकर काशी की अन्तर्गृही और पंचक्रोशी यात्रा रही।पूज्य स्वामिश्रीः के आन्दोलन का यह प्रभाव रहा कि लगभग 49 मन्दिर जो कोरिडोर क्षेत्र में आ रहे थे वे टूटने से बच गये पर आगे कब तक बचे रहेंगे यह कहना मुश्किल है।यह काशी की अन्तिम पंचक्रोशी यात्रा कही जाएगी क्योंकि अब पंचक्रोशी यात्रा के अन्तर्गत आने वाले अनेक मन्दिर तोड़  दिए गये हैं और मूर्तियों को गायब कर दिया गया है। 

जब कोरोना महामारी से पूरा देश संकट से जूझ रहा है ऐसे समय में भी मन्दिरों  को तोड़ने का कार्य चल रहा है। मन्दिर प्रशासन द्वारा काशी खण्डोक्त मन्दिरों को न हटाए जाने का सार्वजनिक कथन समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ था पर अब उस बात को भूलकर काशी खण्डोक्त मन्दिरों को तोड़ा  जा रहा है। मार्च महीने से अब तक भारत माता (लक्ष्मी) मन्दिर, दुर्मुख विनायक मन्दिर, प्रमोद विनायक मन्दिर, सरस्वती माता मंदिर, हनुमान जी के दो मंदिर अब नहीं बचे हैं। 

प्रमोद विनायक के टूटे मंदिर में पूजा

विश्वनाथ मन्दिर से जिन मूर्तियों को तोड़कर फेंका गया उन सबकी सूचना स्वामिश्रीः ने नगरवासियों सहित लंका थाना क्षेत्र में एफ आई आर के माध्यम से की। आज भी उन सभी विग्रहों की पूजा स्वामिश्रीः के नियुक्त पुजारी द्वारा नियमित रूप से की जा रही है। स्वामिश्रीः निरन्तर अपना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आन्दोलन, वक्तव्य और दैवीय अनुष्ठान के अतिरिक्त उन्होंने न्यायालय में भी अपना पक्ष रखा है। पूज्य स्वामिश्रीः का यह संकल्प है कि सरकार द्वारा तोड़े गए सभी मन्दिरों  को पुनः उसी स्थान पर स्थापित करेंगे जहाँ पर वे स्थापित थे।

थाना लंका में औपचारिक रपट लिखायी गयी

कृपया इसे भी देखें  https://mediaswaraj.com/varanasi_seer_oppses_demolition_of_durmukh_vinayak_temple/

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