उत्तराखंड में पहाड़ों को मिटाकर बन रही आलवेदर रोड्स

 

हिमांशु जोशी

हिमांशु जोशी
हिमांशु जोशी

उत्तराखंड में आल वेदर रोड्स के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड कार्य शुरू हुआ था . इस सड़क को तीर्थाटन और पर्यटन के साथ ही सामरिक महत्व के लिहाज से महत्वपूर्ण बताया गया. इस परियोजना के लिए सारे नियम कायदों को ताक पर रख दिया गया। 

पहाड़ न दरके इसके लिए पत्थर लगा पहाड़ों पर बाउंड्री की गई, जाल बांध फ़िर सरिया लगा भी पहाड़ों को रोकने की ‘रॉक ट्रीटमेंट’ स्कीम चली. सड़क की चौड़ाई दस मीटर से अधिक ही रखी गई थी.

इस सड़क से पर्यावरण को होने वाले नुक़सान को देखते सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई पॉवर कमेटी गठित की, जिसके अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने अपनी रिपोर्ट में सड़क की चौड़ाई 12 मीटर रखना ठीक नही बताया था और इसको सिर्फ 5.5 मीटर तक ही रखने की सिफारिश की थी पर महत्वाकांक्षी सत्ता के आगे सब फीके थे और इसके बाद सड़क बारिश या उसके बिना भी कई बार किसी न किसी बाधा से बंद रहने लगी.

इस 1 मई एक्टिविस्ट अतुल सती द्वारा ऑल वेदर रोड की सच्चाई दिखाता यह ट्वीट खासा वायरल हुआ था. जिसमें उत्तराखंड घूमने आने वालों को ऑल वेदर रोड का कितना फायदा मिला यह साफ हो गया.

पिछले साल टनकपुर से पिथौरागढ़ जाने वाली सड़क रिकॉर्ड सात दिनों से अधिक समय तक बंद रही थी.टनकपुर से चंपावत की दूरी मात्र 70 किलोमीटर है पर पर सड़क बंद होने की वजह से रीठासाहिब के वैकल्पिक मार्ग से होता यह सफ़र 140 किलोमीटर का बन गया था.

ऑलवेदर ने कइयों को लीला

विकास के नाम पर बनाई जा रही इस सड़क के निर्माण के दौरान अब तक कई घरों के चिराग भी बुझ चुके हैं.साल 2018 में रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ मार्ग पर बांसवाड़ा के पास कार्य करने वाले  मजदूरों पर गिरी चट्टान से एक बड़ा हादसा हुआ था, जिसमें सात लोगों ने अपनी जान गंवाई.

मार्च 2020 में बद्रीनाथ हाईवे पर ऑल वेदर रोड कटिंग के दौरान एक और हादसा हुआ और चट्टान में दबने से तीन लोगों की मौत हो गई.अक्टूबर 2020 में घाट-पिथौरागढ़ हाइवे पर एक कैंटर के ऊपर मलबा गिर जाने से उसमें सवार दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई.

सड़क की नाकामी के कारण और निवारण

हिमालय के दो ढाल हैं: उत्तरी और दक्षिणी. दक्षिणी में भारत, नेपाल, भूटान हैं. उत्तराखण्ड को सामने रख हम दक्षिणी हिमालय को समझ सकते हैं. उत्तराखण्ड की पर्वत श्रृंखलाओं के तीन स्तर हैं- शिवालिक, उसके ऊपर लघु हिमालय और उसके ऊपर ग्रेट हिमालय. इन तीन स्तरों मे सबसे अधिक संवेदनशील ग्रेट हिमालय और मध्य हिमालय की मिलान पट्टी हैं.

इस संवेदनशीलता की वजह इस मिलान पट्टी में मौजूद गहरी दरारें हैं.बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामबाड़ा, गौरीकुण्ड, गुप्तकाशी, पिंडारी नदी मार्ग, गौरी गंगा और काली नदी – ये सभी इलाके दरारयुक्त हैं.

यहां भूस्खलन का होते रहना स्वाभाविक घटना है, किंतु इसकी परवाह किए बगैर किए निर्माण को स्वाभाविक कहना नासमझी कहलायेगी. यह बात समझ लेनी जरूरी है कि मलवे या सड़कों में यदि पानी रिसेगा, तो विभीषिका सुनिश्चित है.

दरारों से दूर रहना, हिमालयी निर्माण की पहली शर्त है. जल निकासी मार्गों की सही व्यवस्था को दूसरी शर्त मानना चाहिए. हमें चाहिए कि मिट्टी-पत्थर की संरचना कोे समझकर निर्माण स्थल का चयन करें, जल निकासी के मार्ग में निर्माण न करें. नदियों को रोकें नही और बहने दें.

जापान और ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसी दरारें हैं लेकिन सड़क मार्ग का चयन और निर्माण की उनकी तकनीक ऐसी है कि सड़कों के भीतर पानी रिसने की गुंजाइश नगण्य है इसलिए सड़कें बारिश में भी स्थिर रहती हैं.उत्तराखंड के पहाड़ों में सड़क बनाते समय उसके मलबे को नदियों में फेंका जा रहा है.

पहाड़ों में सड़क बनाने के सही तरीके को लेकर पर्यावरण के मुद्दों में सालों से गहरी नज़र रखते आ रहे वरिष्ठ पत्रकार विनोद पांडे ने बताया कि पहले पहाड़ों में सड़क ‘कट एंड फिल’ तकनीक से बनती थी. सड़क बनाने के लिए पहाड़ काट सड़क के लिए आधा हिस्सा छोड़ा जाता था और आधे में उसी के मलबे की दीवार दी जाती थी. हल्द्वानी- नैनीताल रोड इसका उदाहरण है.

नैनीताल रोड
हल्द्वानी-नैनीताल रोड

                      हल्द्वानी-नैनीताल रोड

जेसीबी आने के बाद से इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, पहाड़ काट उसका मलबा सड़क पर कहीं भी बेतरतीब तरीके से फेंक दिया जाता है. वो मलबा नीचे बह रही नदियों पर गिरता है और इससे जल प्रवाह में विघ्न आता है. सड़क बनाते समय पानी की निकासी का ध्यान भी नहीं दिया जाता और बाद में पानी अपना रास्ता खुद बनाते हुए भारी नुकसान भी करता जाता है.

सड़क की वजह से पर्यावरण को हो रहा नुकसान

टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि चार धाम सड़क को चौड़ा करने के लिए काटे जाने वाले 6000 देवदार के पेड़ों को चिह्नित करने पर ग्रामीण और कार्यकर्ता, राज्य वन विभाग के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि पारिस्थितिक रूप से कमजोर भागीरथी इको-सेंसिटिव जोन में इन पेड़ों की कटाई से क्षेत्र में ‘केदारनाथ जैसी आपदा’ आ सकती है.

 देहरादून के आशा रोड़ी में भी सड़क के चौड़ीकरण के नाम पर हज़ारों पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे पर्यावरण को सीधा नुकसान पहुंच रहा है. देशभर में इस साल भीषण गर्मी पड़ रही है और चार धाम में भी इस बार अप्रैल माह की जगह मार्च में ही बर्फ पिघलने लगी है. जल, जंगल और जमीन का अतिदोहन ही इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.

भूगर्भशास्त्री प्रोफ़ेसर खड्ग सिंह वल्दिया ने कहा था  जब बड़ी-बड़ी गाड़ियां, ट्रक व बसें पहाड़ के इन कमजोर रास्तों पर चलतीं हैं तो भी धरती की पुरानी दरारें माइक्रो भूकम्पों से थरथरातीं हैं, हर रोज लाखों की संख्या में उठने वाले ये माइक्रो भूकंप पहाड़ों को कमजोर करते चले जाते हैं.

इस बीच चारधाम परियोजना की निगरानी करने वाली सुप्रीम कोर्ट की हाई पॉवर कमेटी के चेयरमैन पद से रवि चोपड़ा ने भी इस साल की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया है.पर्यावरण विद रवि चोपड़ा ने अपने इस्तीफा-पत्र में कहा था कि यह विश्वास टूट सा गया है कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति इस बेहद नाजुक पारिस्थतिकी को संरक्षित कर सकती है. मैं अब और काम नहीं कर सकता, इसलिए इस समिति से मैं इस्तीफा दे रहा हूं.

पर्यटकों की परेशानी

पर्यटक सीज़न में पर्यटकों की भीड़ जगह-जगह बंद रहने वाली इस ऑल वेदर रोड वजह से परेशानी तो झेलती ही है, साथ में उत्तराखंड के क्षेत्रीय लोग भी इस वज़ह से परेशानी उठाते हैं. सड़क पर लगे लंबे जाम की वजह से उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले मरीजों के लिए और मुसीबत खड़ी हो जाती है.

नैनीताल में इस सोमवार को बगैर किसी अवकाश के भी पार्किंग फुल थी. फोटो- सोनाली मिश्रा

कई पर्यटक जब अपना महत्वपूर्ण समय और पैसा खर्च कर कुछ सुकून पाने की तलाश लिए मंजिल के करीब पहुंचते हैं तो उन्हें ट्रैफिक की वजह से वहां से वापस लौटा दिया जाता है.पर्यटकों का सामना कुछ इस तरह की सूचना से होता है.

नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे ज़मीनी सचाई को समझें और उत्तराखंड में पहाड़ों का नाश कर चौड़ी – चौड़ी आल वेदर रोड्स बनाने पर पुनर्विचार करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

2 − one =

Related Articles

Back to top button