14 जनवरी से ​काशी विश्वनाथ मंदिर में जूट की चप्पलें पहन सकेंगे श्रद्धालु

PM मोदी ने जूट की चप्पलें भिजवायीं

उत्तर प्रदेश में ठंड लगातार बढ़ रही है। इस बीच अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने वाले शिव भक्तों और भगवान भोलेनाथ की सेवा में जुटे लोगों की परेशानी को देखते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां कुछ जूट की चप्पलें भिजवायीं। ताकि कड़कड़ाती ठंड में भी ​भगवान भोलेनाथ के दर्शन को उत्सुक उनके श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो, जिसका लोगों ने स्वागत किया है। हालांकि, कुछ लोग कागज से बनी इन चप्पलों को पहनना विद्या की देवी मां सरस्वती का अपमान करना भी बता रहे हैं।

14 जनवरी से काशी विश्वनाथ मंदिर के भक्तों और श्रमिकों के उपयोग के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) खादी की यूज एंड थ्रो चप्पलें मुहैया करायेगी, ताकि मंदिर परिसर में भक्तों को नंगे पैर न चलना पड़े। देश में पहली बार शत प्रतिशत पर्यावरण अनुकूलित और कम लागत वाली बेहतरीन व प्रभावी चप्पलों के निर्माण की पहल को लोगों की खूब सराहना मिल रही है।​

इन चप्पलों की बिक्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की पार्किंग में मौजूद खादी बिक्री केंद्र से की जायेगी। इन हस्तनिर्मित कागज की चप्पलों की कीमत 50 रुपये प्रति जोड़ी होगी। मंदिर प्रशासन ने बयान दिया कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पता चला कि मंदिर में काम करने वाले अधिकांश लोग नंगे पैर अपना कर्तव्य निभाते हैं, तब उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर के कार्यकर्ताओं के लिए जूट की चप्पलें भेजीं क्योंकि मंदिर परिसर में चमड़े या रबर से बने जूते पहनने की मनाही है। इससे न केवल मंदिर की ​पवित्रता बनी रहेगी, बल्कि भक्तों को भी ठंड से राहत मिलेगी।

हाथ से बनीं कागज की इन चप्पलों के इस्तेमाल से मंदिर की पवित्रता बनी रहेगी। साथ ही, भक्तों को गर्मी और ठंड से भी बचाया जा सकेगा। प्राकृतिक रेशों से बनी ये चप्पलें प्रदूषण मुक्त भी होंगी।

केवीआईसी के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि हाथ से बनीं कागज की इन चप्पलों के इस्तेमाल से मंदिर की पवित्रता बनी रहेगी। साथ ही, भक्तों को गर्मी और ठंड से भी बचाया जा सकेगा। प्राकृतिक रेशों से बनी ये चप्पलें प्रदूषण मुक्त भी होंगी। उन्होंने आगे कहा, “ये हस्तनिर्मित कागज की चप्पलें मंदिर की पवित्रता बनाए रखेंगी। चप्पलें शत प्रतिशत पर्यावरण के अनुकूल सामग्री से बनी हैं। मंदिर परिसर में इन चप्पलों के उपयोग से खादी कारीगरों के लिए स्थायी रोजगार भी पैदा होगा।”

खादी ग्रामोद्योग की इस पहल की हर ओर खूब प्रशंसा हो रही है, लेकिन कुछ लोग इस पर आपत्ति भी जता रहे हैं। उनका कहना कि सनातन हिंदू धर्म के अनुसार, कागज में ज्ञान और विद्या की देवी मां सरस्वती का वास होता है। ऐसे में कागज से बनी चप्पलें पैर में पहनना मां सरस्वती का अपमान नहीं माना जायेगा? फिर, इन चप्पलों के निर्माण से पहले इस बात का ध्यान क्यों नहीं रखा गया?

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बदलते परिवेश में खादी की परिभाषा

आपको बता दें कि असल में जूट, पटसन और इसी प्रकार के पौधों के रेशे हैं। इसके रेशे बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है। जूट के रेशे से बोरे तथा पैकिंग के कपड़े बनते हैं। कालीन, दरियाँ, परदे, घरों की सजावट के सामान, अस्तर और रस्सियाँ भी बनती हैं। इसका डंठल जलाने के काम आता है और उससे बारूद के कोयले भी बनाए जा सकते हैं। डंठल का कोयला बारूद के लिये अच्छा होता है। डंठल से लुगदी भी प्राप्त होती है, जो कागज बनाने के काम आती है।

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